Wednesday, September 30, 2009

ब्लोगवाणी पे आरोप लगाने वालों के लिए प्रश्न


किसी पे आरोप लगाने से पहले पूरी पड़ताल कर लेनी चाहिए | मुझे लगता है कि जिस ब्लॉग के पोस्ट पर ब्लोगवानी बंद कि गई थी वो आलेख पूरी पड़ताल के बिना ही लिखी गई है | इसे समझाने के लिए ब्लोग्वानी प्रकरण से हट कर कुछ उदाहरण दे रहा हूँ :

* पिछले वर्ष गूगल से checkout करने पर $10 का discount मिलता था (one time only). मैंने अपने account से एक के बजाय २-3 transactions किया और सभी successful रहे और टोटल $30 का discount मुझे मिला, जबकि गूगल साफ़ कहता था ONLY ONE DISCOUNT WILL BE GIVEN (per a/c) | लगभग उसी समय मेरे साथी ने पहली बार google checkout try किया और उन्हें कोई discount नहीं मिला | और ऐसा कईयों के साथ हुआ था |  

अब आरोप लगाने वालों के हिसाब से सोचे तो google मेरे पे मेहरबान और मेरी साथी पे दुश्मनी उतार रहा था, आप क्या कहेंगे इसपे ?  

* और एक उदहारण देता हूँ इसी वर्ष microsoft - ebay cashback मैं कईयों को आसानी से discount मिला तो किसी का valid transaction होने के बावजूद कोई कैश बेक नहीं |  

क्या कहें की माइक्रोसॉफ्ट कुछ लोगों से दुश्मनी निकाल रहा है?  

* मेरे ब्लॉग पे कोई भी टिप्पणी आती है तो मुझे इ-मेल आती थी, अभी कुछ दिनों से किसी टिप्पणी पे इ-मेल आती है किसी पे नहीं |

क्या कहें google मुझसे पक्षपात कर रहा है?

आरोप लगाने वालें ने ये भी लिखा है कि किसी खास विचारधारा वालों की पसंद बढती रहती है | मैंने तो सलीम भाई के पोस्ट पे पसंद ज्यादातर ऊँची ही देखि है, हालाँकि कमेन्ट गिने चुने (२-४) होते हैं पर पसंद मैं आगे रहते हैं | कंप्यूटर का जानकार ये समझ सकता है कि पसंद कैसे उंचा रखा जा सकता है | यहाँ तो मुझे ये समझ मैं नहीं आया कि सलीम भाई कि बात कर रहे हैं या किसी और की, खुल के बताया तो नहीं है |

मेरी राय मैं कोई भी प्रोग्राम १००% परफेक्ट नहीं होता, खासकर web based प्रोग्राम तो नहीं ही | कई बार cookies, trojans, proxy, DHCP.... आदि से ऐसा कमाल और गोल-माल होता है की क्या बताऊँ | वैसे गूगल मैं सर्च करके भी थोडी बहुत जानकारी इसपे हासिल कर सकते हैं | ब्लोग्वानी पे जो आरोप उन्होंने लगाया है उसपे एक software programmer हंसेगा ही | हाँ आरोप लगानेवालों ने यदि ब्लोग्वानी के सारे सिक्यूरिटी पॉलिसी और प्रोग्राम को चेक करवाने के बाद ये सब आरोप लगाये होते तो मैं या एक सॉफ्टवेर का जानकार आरोप लगानेवाले का समर्थन कर सकता था | पर ऐसा तो उन्होंने किया ही नहीं, तो उनके आरोप की मिथ्या क्यों ना कहा जाए ?

और भी कई चीजें हैं जिसका उल्लेख नहीं किया है | आशा है पठाक और आरोप लगाने वाले मेरे विचार को अन्यथा नहीं लेंगे ... मैंने वही लिखा है जो सच है ... ब्लोग्वानी से मेरा कोई दूर-दूर तक का रिश्ता नाता नहीं है (सिवाय ब्लॉग लेखन के) | मेरा पिछ्ला पोस्ट देख सकते हैं, मैंने ब्लोग्वानी के बदलाव पे भी कई शंकाएँ जताई है |

वैसे भी हम भारतीय लोग किसी अच्छा काम करनेवालों की टांग खिचाई करने मैं पीछे नहीं रहते !

21 comments:

Unknown said...

:) agreed...

महेन्द्र मिश्र said...

"वैसे भी हम भारतीय लोग किसी अच्छा काम करनेवालों की टांग खिचाई करने मैं पीछे नहीं रहते"

सत्य वचन है पीढियों से इस कहावत को सुनते आये है .

Urmi said...

आपने बिल्कुल सही फ़रमाया है! मैं आपकी बातों से पूरी तरह से सहमत हूँ!

डा० अमर कुमार said...


" मैं मूरख तुम ज्ञानी "
इनका नाम और टैगलाइन ही डिस्क्लेमर है,
हो सकता है कि, अगली पोस्ट इसी पर हो कि एक मूरख के अज्ञान पर ब्लागवाणी के ज्ञानीजन क्यों इतना रियेक्ट कर गये ।
मैं समझता हूँ कि ऎसी बेतुकी आलोचनाओं की अँतिम परिणिती क्या हो सकती है, यह उदाहरण पेश करने के लिये ब्लागवाणी द्वारा यह झटका आवश्यक था ।

Khushdeep Sehgal said...

गांधी जयंती के मौके पर आज रात 12 बजे मैं अपनी पोस्ट पर इस मसले पर... दूध का दूध और पानी का पानी...करने की कोशिश करूंगा...

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

ये सारे मुद्दे छिलने के लिए हैं
जितना छिलिये उतना कम है.

और क्या.

PD said...

hansne valon me ek main bhi hun.. :)

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

सत्य वचन्!!! लेकिन तकनीकी ज्ञान न होने के कारण हम भी कुछ कुछ उनके जैसा ही सोचने लगे थे......

रंजन said...

सही है...

Mishra Pankaj said...

राकेश भाई सकारात्मक सोच आपकी

अविनाश वाचस्पति said...

सहमत।

साफ्टवेयर न किसी का दोस्‍त होता है न दुश्‍मन
क्‍योंकि उसे इंसान ने बनाया तो है
पर वो इंसान नहीं है।

दर्पण साह said...

kai baar kai manch se kai tarah se keh chuka hoon....
blogvani ke baare main bhi aur chittajagat ke baare main bhi....

...ekdum sateek prashn.

haan ek prash aur : maan bhi lein ki blogvani pakshpaat karta hai to is pakshpaat ke liye blogvani ne litne employee rakh rakhe honge?(blogs aur post ki sankhya ko dekhkar ye prashn jayaj hai)

mera ek prashn blogvani se bhi hai?

aapne un tucche aur adharheen aaropon main hasne ke bajaiye (jaise aaj lagbhag sampoorn chittajagat hans raha hai) apna (ya hamara) blogvani band kyun kar diya?
kya koi uttar hai....

Unknown said...

यदि हमारे सारे ब्लॉगर बन्धु कम से कम इतना समझ लें कि कोई भी सॉफ्टवेयर हन्ड्रेड परसेंत परफैक्ट नहीं होता तो झगड़े उठने के अवसर ही समाप्त हो जायेंगे।

Anurag Harsh said...

पिछले दिनों ब्‍लॉगवाणी पर क्लिक किया तो पता चला कि बंद हो गया। ज्‍यादा तह में जाने का वक्‍त नहीं था। मेरे साथी सिद़धार्थ से भी इस बारे में बात नहीं कर पाया। ऐसा लगा कि कुछ अनुचित हुआ है इसी कारण ब्‍लॉगवाणी अचानक बंद हो गया। अन्‍यता इतना समृद्ध हो चुका ब्‍लॉगवाणी बन्‍द होने का सवाल ही नहीं। मैं फिर बात की तह में जाने के बजाय इतना ही कहूंगा कि हमें ब्‍लॉगवाणी से जो मिल रहा है, उससे फायदे का सौदा समझकर ही काम करना चाहिए। मेरे घर पर अब तक ब्‍लॉगवाणी का कोई पत्र शुल्‍क जमा कराने के लिए नहीं आया है। जब वो कुछ लिए बिना सेवा दे रहा है तो फिर कमियां क्‍यों निकाल रहे हों। अवधिया जी की बात से सहमत हूं कि कमी हर कहीं है अपनी नजर में भी। मैं ब्‍लॉगवाणी के पुन अवतरण पर आभार जताता हूं।

अविनाश वाचस्पति said...

@ दर्पण साह 'दर्शन'


कभी दिल्‍ली आना हो तो
दर्शन दीजिएगा
आपसे मिलकर अच्‍छा लगेगा
मन फूल सा महकेगा।

सागर नाहर said...

नहीं, सही बात तो यह है कि (ब्लॉगवाणी) मुफ्त में मिल रहा है इसलिये हजम नहीं हो रहा।

रंजना said...

ब्लोग्वानी को कतिपय ब्लोगरों के आक्षेपों के कारण बंद कर दिया गया,इसके अतिरिक्त बहुत कुछ नहीं जानती प्रकरण के सन्दर्भ में....

हाँ ,यह देख बड़ा ही दुःख होता है कि कुछ ब्लागर गन लिखने से बहुत अधिक दिखने और विवाद पालने पोसने में विश्वास रखते हैं....

मुझे यह साफ़ कृतघ्नता लगती है,कि जिस माध्यम (एग्रीगेटर) का उपयोग हम इतना कुछ पढने और दूसरों तक अपने आलेख के माध्यम से अपने विचारों को पहुँचने के लिए करते हैं,उस माध्यम की हमारे नजरों में कोई क़द्र नहीं......

श्यामल सुमन said...

आपके अंतिम वाक्य को पढ़कर एकाएक पहले की लिखी ये पंख्तियाँ याद आ गयीं-

नहीं लगाते पेड़ नया पर बाग जलाना सीख लिया।
दीप जलाना भूल गए और आग लगाना सीख लिया।
कम ही लोग बचे हैं सच्चे आज हमारे भारत में,
उनके श्वेत वस्त्र पे हमने दाग लगाना सीख लिया।।

ब्लागवाणी पुनः शुरू हुई यह खुशी की बात है। इसके निरन्तर उन्नयन की कामना के साथ-

सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blospot.com

Arvind Mishra said...

ठीक कह रहे हैं !

विवेक रस्तोगी said...

सही है, पर इन तकनीकी अनपढ़ों को कौन समझाये। :(

Naveen Tyagi said...

bilkul theek kaha .