Wednesday, September 30, 2009

ब्लोगवाणी पे आरोप लगाने वालों के लिए प्रश्न


किसी पे आरोप लगाने से पहले पूरी पड़ताल कर लेनी चाहिए | मुझे लगता है कि जिस ब्लॉग के पोस्ट पर ब्लोगवानी बंद कि गई थी वो आलेख पूरी पड़ताल के बिना ही लिखी गई है | इसे समझाने के लिए ब्लोग्वानी प्रकरण से हट कर कुछ उदाहरण दे रहा हूँ :

* पिछले वर्ष गूगल से checkout करने पर $10 का discount मिलता था (one time only). मैंने अपने account से एक के बजाय २-3 transactions किया और सभी successful रहे और टोटल $30 का discount मुझे मिला, जबकि गूगल साफ़ कहता था ONLY ONE DISCOUNT WILL BE GIVEN (per a/c) | लगभग उसी समय मेरे साथी ने पहली बार google checkout try किया और उन्हें कोई discount नहीं मिला | और ऐसा कईयों के साथ हुआ था |  

अब आरोप लगाने वालों के हिसाब से सोचे तो google मेरे पे मेहरबान और मेरी साथी पे दुश्मनी उतार रहा था, आप क्या कहेंगे इसपे ?  

* और एक उदहारण देता हूँ इसी वर्ष microsoft - ebay cashback मैं कईयों को आसानी से discount मिला तो किसी का valid transaction होने के बावजूद कोई कैश बेक नहीं |  

क्या कहें की माइक्रोसॉफ्ट कुछ लोगों से दुश्मनी निकाल रहा है?  

* मेरे ब्लॉग पे कोई भी टिप्पणी आती है तो मुझे इ-मेल आती थी, अभी कुछ दिनों से किसी टिप्पणी पे इ-मेल आती है किसी पे नहीं |

क्या कहें google मुझसे पक्षपात कर रहा है?

आरोप लगाने वालें ने ये भी लिखा है कि किसी खास विचारधारा वालों की पसंद बढती रहती है | मैंने तो सलीम भाई के पोस्ट पे पसंद ज्यादातर ऊँची ही देखि है, हालाँकि कमेन्ट गिने चुने (२-४) होते हैं पर पसंद मैं आगे रहते हैं | कंप्यूटर का जानकार ये समझ सकता है कि पसंद कैसे उंचा रखा जा सकता है | यहाँ तो मुझे ये समझ मैं नहीं आया कि सलीम भाई कि बात कर रहे हैं या किसी और की, खुल के बताया तो नहीं है |

मेरी राय मैं कोई भी प्रोग्राम १००% परफेक्ट नहीं होता, खासकर web based प्रोग्राम तो नहीं ही | कई बार cookies, trojans, proxy, DHCP.... आदि से ऐसा कमाल और गोल-माल होता है की क्या बताऊँ | वैसे गूगल मैं सर्च करके भी थोडी बहुत जानकारी इसपे हासिल कर सकते हैं | ब्लोग्वानी पे जो आरोप उन्होंने लगाया है उसपे एक software programmer हंसेगा ही | हाँ आरोप लगानेवालों ने यदि ब्लोग्वानी के सारे सिक्यूरिटी पॉलिसी और प्रोग्राम को चेक करवाने के बाद ये सब आरोप लगाये होते तो मैं या एक सॉफ्टवेर का जानकार आरोप लगानेवाले का समर्थन कर सकता था | पर ऐसा तो उन्होंने किया ही नहीं, तो उनके आरोप की मिथ्या क्यों ना कहा जाए ?

और भी कई चीजें हैं जिसका उल्लेख नहीं किया है | आशा है पठाक और आरोप लगाने वाले मेरे विचार को अन्यथा नहीं लेंगे ... मैंने वही लिखा है जो सच है ... ब्लोग्वानी से मेरा कोई दूर-दूर तक का रिश्ता नाता नहीं है (सिवाय ब्लॉग लेखन के) | मेरा पिछ्ला पोस्ट देख सकते हैं, मैंने ब्लोग्वानी के बदलाव पे भी कई शंकाएँ जताई है |

वैसे भी हम भारतीय लोग किसी अच्छा काम करनेवालों की टांग खिचाई करने मैं पीछे नहीं रहते !

Tuesday, September 29, 2009

ब्लोगवाणी का बदलाव - कई गलत चीजों को जन्म देने वाला है !

सबसे पहले ब्लोग्वानी प्रारंभ करने के लिए धन्यवाद और अपना आभार प्रकट करता हूँ ! इसके साथ साथ ब्लोग्वानी मैं जो बदलाव की बात की है उसपे चर्चा होनी ही चाहिए | और मुझे लगता है कहीं ऐसा ना हो की बदलाव गलत चीजों को जन्म दे दे. मैंने अपनी शंका निचे के शब्दों मैं रही है, शायद कई अन्य लोगों की शंका भी ऐसी ही हो  

BLOGVANI 1. ब्लागवाणी के प्रयोक्ता ही यह फैसला करेंगे कि कौन सा ब्लाग जोड़ना है और कौन सा छोड़ना.  
मेरी शंका : यहाँ पर शायद आप वोटिंग सिस्टम की बात कर रहे हैं | वोटिंग सिस्टम यहाँ फुल प्रूफ़ होना चाहिए | यहाँ ऐसा भी हो सकता है की वोट की संख्या के आधार पे कई बेहतरीन आलेख ब्लोग्वानी से जुड़ ही नहीं पाए | और आप तो शायद जानते ही हैं की हिंदी ब्लॉग्गिंग मैं किसी गंभीर विषय पे कितना भी अच्छा आलेख क्यों नहीं आया हो, टिप्पणी बहुत कम आते हैं| लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं ही होना चाहिए की गंभीर चर्चा वाले आलेख प्रकाशित (पोस्ट) ही ना हो?|  

BLOGVANI 2. सिर्फ ब्लागवाणी के सदस्य ही पसंद कर सकेंगे और यह सब देख सकेंगे कि पसंद किसने की थी ताकी .... हां यह जरूर है कि अब पसन्द/नापसन्द के साथ अनोनिमिटी नहीं रहेगी. यह शायद एक जरूरी पैनल्टी है.  
मेरी शंका : ब्लोग्वानी पे आने वाले हर कोई registered user नहीं होता और हो भी नहीं सकता | मैंने कुछ ऐसे भी लोग देखे हैं जो सीधे ब्लोग्वानी पे आकर लेख पढ़ कर चलते बनते हैं, वो कोई टिप्पणी भी नहीं करते | अब यदि एक पाठक (ब्लॉग लेखक नहीं) को आलेख अच्छा लगा तो वो अपनी पसंद ब्लोग्वानी पे दर्ज नहीं कर सकता |  

BLOGVANI 3. पसंद के साथ ही नापसंद भी लाया जायेगा जिसका प्रयोग भी सिर्फ ब्लागवाणी के सदस्य कर सकेंगे |  
मेरी शंका : हम भारतीय positive बातों के लिए एक जुट नहीं होते पर negative बातें हमें तुंरत एक जुट कर देती हैं | और यदि आपने नापसंद को जोड़ा तो एक ग्रुप बनाकर किसी के आलेख के वास्तविक पसंद को निचे ले आयेंगे | विश्वास कीजिये ये होगा ही | मैं सॉफ्टवेर industry मैं हूँ और पिछले १२ वर्षों से अलग अलग सिस्टम पे काम कर चुका हूँ | कई बड़ी बड़ी कंपनियों के प्रोजेक्ट्स पे काम किया हूँ अभी भी एक बड़ी कंपनी का प्रोजेक्ट्स ही देख रहा हूँ | कोई भी सॉफ्टवेर या प्रोग्राम १००% perfect नहीं हो सकता (including NASA, pentagon, Sony, Nintendo etc....). हेकर्स जब पेंटागन, सोनी, Nintendo और ना जाने कितने के चिप डिजाईन सिक्यूरिटी तक को समय समय पे धता बताते रहते हैं | इस हिसाब से क्या आपको लगता है की नापसंद का गलत उपयोग नहीं किया जायेगा ?  

आये दिन हिंदी ब्लॉग मैं व्यक्तिगत विवाद चलता रहता है और दो ग्रुप बन जाता है | उदाहरण देखिये - संगीता पूरी team vs प्रवीन जाखड team | अब इस अवस्था मैं एक ग्रुप वाले दुसरे ग्रुप वाले के आलेखों को नापसंद ही करेंगे |  

समय समय पर किसी भी सिस्टम मैं आवश्यक सुधार और बदलाव होना ही चाहिए, ब्लोग्वानी मैं भी ऐसा ही होना चाहिए | पर बदलाव से पहले उसके सारे positives & negatives पे अच्छी तरह चर्चा जरुर होनी चाहिए | किसी के आलोचना भर से ही डरकर या उन्हें कुछ दिखाने के लिए बदलाव को वास्तविक बदलाव नहीं बल्कि एक emotional भूल ही कही जायेगी | और ब्लोग्वानी के बदलाव का आधार ही इमोशनल दिख रहा है | 

परिवर्तन करना ही है तो पहले मन शांत कर लें, फिर लगभग एक-दो महीने बाद नए सिरे से सोचें की ब्लोग्वानी और हिंदी ब्लॉग्गिंग के भविष्य के लिए क्या बदलाव आवश्यक हैं | अभी तो मन अशांत ही दिख रहा है, और इस अशांत वातावरण मैं शुभ कार्यों का श्रीगणेश उचित नहीं लगता | आशा है ब्लोग्वानी की टीम इस दिशा मैं ध्यान देगी और समय रहते उचित फैसला करेगी | धन्यवाद !

Sunday, September 27, 2009

माँ : बेटा लड्डू खा लो ...


माँ : बेटा लड्डू खा लो ...

माँ : बेटा राजीव ये लड्डू खा लो, हनुमान जी का प्रसाद है |

राजीव : माँ मैंने कितनी बात तुम्हें कहा है कि मुझे मीठा बिलकुल पसंद नहीं, फिर क्यों मुझे बार-बार लड्डू खाने को कहती हो ?

माँ : ये तो भगवान का प्रसाद है बेटा | पूरा लड्डू ना सही आधा या एक टुकडा ही खा लो |

राजीव : नहीं मीठा खा ही नहीं सकता | इसे किसी और को खिला देना या phir भिखारी को दे देना |
........
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कुछ दिनों पश्चात राजीव अपनी पत्नी और पुत्र रोकी के साथ एक बर्थ डे पार्टी मैं ...  

यार राजीव today's cake is great, तुम नहीं खाओगे क्या? राजीव : जरुर, अभी खाता हूँ ..... this is really good. Can I have some more?.....  

अब राजीव का बेटा मनीष अपने पिता से पूछ बैठता है | पापा आपने तो दादी जी को कहा की आपको मीठा बिलकुल पसंद नहीं | फिर ढेर सारा केक कैसे खा गए ? 

राजीव : बेटा ... यदि मैं केक ना खाता तो उन्हें बुरा लग जाता इसलिए केक खा लिया ....

Thursday, September 24, 2009

केहुनी-मिलन (elbow shake) - Swine flu से बचने का तरिका ?


बच्चे के रूटीन चेकउप के लिए आज डॉक्टर के पास गया | डॉक्टर ने हाथ मिलाने (hand shake) के बजाय अपनी केहुनी (elbow) आगे बढा दी | एक क्षण को अवाक रह गया की डॉक्टर साहब ये क्या कर रहे हैं, कहीं मुझसे कोई पुराना हिसाब-किताब तो चुकता करने के मुड मैं तो नहीं आ गए? मुझको अवाक देख उन्होंने कहा - give me your elbow. मैंने संकोच करते-करते शिष्टाचारवस ही सही अपना केहुनी (elbow) उनकी केहुनी से सटा तो दी | पर मन मैं एक नई आशंका ने जन्म ले लिया ...कहीं ये इलू-इलू वाला तो नहीं... क्या मैं ऐसा दिखता हूँ कि एक पुरुष डॉ. मुझसे ... छि-छि ... | हिम्मत कर, डॉ. साहब से पूछ ही लिया ये elbow-elbow क्या था, ...? बड़े प्रेम से उस अमेरिकन डॉ. ने elbow-elbow का अर्थ इस प्रकार समझाया :

* It is the newly suggested and advisable way of greeting people rather than handshakes. (हाथ मिलाने की अपेक्षा ये लोगों का सत्कार करने का एक नया और सुझावित तरिका है ) * Swine flu और अन्य कई संक्रामक बिमारी से बचने का एक कारगर/सुरक्षित तरीके के रूप मैं इसका इस्तेमाल अमेरिका, यूरोप .. आदि देशों मैं किया जाने लगा है |                                तो भाई अब यदि भारत मैं कोई आपसे केहुनी-मिलन (elbow shake) करना चाहे तो चौकियेगा नहीं | क्या पता भारत मैं भी केहुनी मिलन का प्रचलन आरम्भ हो गया हो और हमें पता ही नहीं ! वैसे भी अपन देशी लोग तो आँख मुंद कर कॉपी करने मैं माहिर हैं | चेतावनी : भूल से भी अपनी केहुनी किसी आर्जेन्टिना वालों से नहीं मिलाना, लेने के देने पड़ सकते हैं | हाँ यदि आपका विचार आर्जेन्टिना वाले की बेटी से शादी करने का है तो केहुनी से केहुनी जरुर मिला सकते हैं | वैसे हमारे पास केहुनी मिलन या हाथ मिलाने का एक सुन्दर और अजमाया हुआ विकल्प है - अपने दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम, नमस्कार या नमस्ते कहने का | कुछ अमेरिकन अब लोगों का अभिवादन नमस्ते की मुद्रा मैं भी कर रहे हैं |


पर imported thought (आयातित विचार) प्रेमी भारत मैं, किसी देशी विचार या हाव-भाव या हाथ जोड़ कर प्रणाम/नमस्ते को तरजीह देने की संभावना क्षीण ही लगती है | फिर भी ये एक अच्छा मौका है .....

Monday, September 21, 2009

सेकुलर भटनागर - श्री राम द्वापर युग (त्रेता नहीं) मैं अवतार लिए थे !!!



भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' साफ्टवेयर के सहारे रामायण काल की सूर्य/ चंद्रमा तथा अन्य ग्रहों की स्थिति तथा खगोलीय पद्धति से भगवान् राम की जन्म तिथि (आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर) 5114 ई.पू. निकाली है | तो भटनागर जी साफ्टवेयर के सहारे कह रहे हैं की भगवान् राम का जन्म द्वापर मैं हुआ था त्रेता मैं नहीं, क्योंकि 5114 ई.पू. तो द्वापर युग ही चल रहा था | लगभग सभी वैदिक विद्वान् उनके द्बारा दिए गए तिथि को गलत साबित किया है | आईये देखते हैं कैसे :
* वही रामायण (जिसपे भटनागर जी की गणना आधारित है) कहती है भगवन राम त्रेता युग मैं आये थे | कलि युग मैं ४,३२,००० (४ लाख ३२ हज़ार वर्ष), द्वापर मैं ८,६४,००० (८ लाख ६४ हज़ार) और त्रेता युग मैं १७,२८,००० (१७ लाख २८ हज़ार ) वर्ष हैं | reference :


http://www.encyclopediaofauthentichinduism.org/images/articles/devanagari/51.3.gif
http://www.encyclopediaofauthentichinduism.org/articles/51_the_bhartiya_chronology.htm
त्रेता युग, कलि और द्वापर के पहले था | तो भगवन राम का जन्म कलियुग के अबतक बीते वर्षों ५१०० + द्वापर युग के ८,६४,००० = ८, ६९, १०० (८ लाख ५९ हज़ार कम से कम ) तो अवश्य ही होगे | इसमें तो कोई दो राय होनी ही नहीं चाहिए | ये तो यहीं सिद्ध हो गया की भगवन का जन्म 5114 ई.पू. गलत है |
हिन्दुओं के सारे ग्रन्थ कलि युग मैं ४ लाख ३२ हज़ार, द्वापर मैं ८ लाख ६४ हज़ार और त्रेता युग मैं १७ लाख २८ हज़ार वर्ष ही बताते हैं | और लगभग सभी पुराण, महाभारत और अन्य ग्रन्थ स्पस्ट रूप से कहता है - भगवान् राम का जन्म लगभग १८ लाख वर्ष पूर्व हुआ था | जब सारे ग्रन्थ ये कह रहा है की राम का जन्म लगभग १८ लाख वर्ष पूर्व हुआ तो भटनागर साहब को मानने मैं क्या तकलीफ है? ये तो वही बात हुई की सारे ग्रंथों को नहीं मानता पर उसी ग्रन्थ से २-४ श्लोक निकाल के मैं अपने ढंग से अपनी कल्पना और अनुमान से गलत तिथि निकालूँगा | जब पुरे ग्रन्थ को नहीं मानते तो उसी ग्रन्थ से ग्रहों की स्थिति लेने की क्या आवश्यकता?
* 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' साफ्टवेयर को इतिहास के ग्रहों की स्थिति के लिए तैयार किया ही नहीं गया है | इतिहास मैं वर्णित ग्रहों , नक्षत्रों की स्थिति के आधार पे कोई निश्चित तिथि निकालने के लिए Archeoastronomy (as just like archeology it can help date events as described in literature. Also, it touches on ancient calendar systems, concepts of time and space, mathematics especially counting systems and geometry, navigation, and architecture.) का सहारा लिया जाता है | जब 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' साफ्टवेयर Archeoastronomy पे आधारित ही नहीं है तो ये इतिहास की सही सही तिथि कैसे बता सकती है ?
मुझे लगता है पुष्कर भटनागर ने भगवान् राम का गलत जन्म तिथि निकाल कर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश की है | लगता है पुष्कर भटनागर जी पूरी रामायण पढ़े बिना ही चल दिए भगवान् राम की जन्म तिथि निकालने |
NOTE: हमारे कुछ हिन्दू ब्लॉगर बंधू जाने अनजाने भटनागर जैसे लोगों का समर्थन कर देते हैं | हिन्दू ब्लॉगर बंधुओं से मेरा नम्र निवेदन है की वैदिक सभ्यता पर लिखने से पहले वैदिक सभ्यता की कुछ प्रमाणिक पुस्तक उठा कर जांच लें की आप जो लिखने जा रहे हैं वो सही है या नहीं |

Wednesday, September 16, 2009

अश्लील भित्तिचित्र और मूर्तियाँ मंदिर मैं क्यूँ? Why sexual statue or carvings in Hindu Temple?

इस विषय पे 2 दिनों पहले एक पोस्ट किया था, कई टिप्पणियों मैं महत्वपुर्ण तथ्य और प्रश्न थे जिसकी चर्चा पिछली पोस्ट मैं नहीं की गई थी | फिर रंजना दि (संवेदना संसार) ने - आलेख और प्रत्युत्तर में की गयी टिपण्णी को मिलकर एक पूरी पोस्ट करने का सुझाव दिया | और ये पोस्ट आपके सामने है | कुछ और भी छोटी-मोटी सुधार किया है| आपकी प्रतिक्रिया और सुझव से हमें अवश्य अवगत कराएं |
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हमारे कई मंदिरों मैं अश्लील मूर्तियाँ  और भित्तिचित्र मंदिर के प्रवेश द्वार या बाहरी दीवारों पर अंकित होती हैं | तिरुपति में भी बिलकुल मुख्य द्वार के ऊपर ही मिथुन भाव की अंकित मूर्ती देखा तो सहज ही ये प्रश्न दिमाग मैं आया - आखिर हमारे देवालयों मैं अश्लील मूर्तियाँ भित्तिचित्र क्यों होते हैं? इधर-उधर बहुत खोजा पर इसका वास्तविक उत्तर मिला महर्षि वात्सयायन रचित कामसूत्र में | बाजार में उपलब्ध कामसूत्र की लगभग सभी पुस्तक ६४ आसनों और चित्रों पर ही केन्द्रित होती हैं | और ज्यादातर पाठक कामसूत्र को ६४ आसनों और चित्रों के लिए ही तो खरीदता है | पर उन पुस्तकों में कामसूत्र का वास्तविक तत्व गायब रहता है | महर्षि वात्सयायन रचित कामसूत्र के श्लोक थोड़े क्लिष्ट हैं, सरलीकरण हेतु कई भारतीय विद्वानों ने इसपे टीका लिखी | पर सबसे प्रमाणिक टीका का सौभाग्य प्राप्त हुआ मंगला टिका को | और इस हिंदी पुस्तक में लेखक ने मंगला टिका के आधार पर व्याख्या की है | लेखक ने और भी अन्य विद्वानों की टीकाओं का भी सुन्दर समावेश किया है इस पुस्तक में | 

एक गृहस्थ के जीवन में संपूर्ण तृप्ति के बाद ही मोक्ष की कामना उत्पन्न होती है | संपूर्ण तृप्ति और उसके बाद मोक्ष, यही दो हमारे जीवन के लक्ष्य के सोपान हैं | कोणार्क, पूरी, खजुराहो, तिरुपति आदि के देवालयों मैं मिथुन मूर्तियों का अंकन मानव जीवन के लक्ष्य का प्रथम सोपान है | इसलिए इसे मंदिर के बहिर्द्वार पर ही अंकित/प्रतिष्ठित किया जाता है | द्वितीय सोपान मोक्ष की प्रतिष्ठा देव प्रतिमा के रूप मैं मंदिर के अंतर भाग मैं की जाती है | प्रवेश द्वार और देव प्रतिमा के मध्य जगमोहन बना रहता है, ये मोक्ष की छाया प्रतिक है | मंदिर के बाहरी द्वार या दीवारों पर उत्कीर्ण इन्द्रिय रस युक्त मिथुन मूर्तियाँ और भित्तिचित्र देव दर्शनार्थी को आनंद की अनुभूतियों को आत्मसात कर जीवन की प्रथम सीढ़ी - काम तृप्ति - को पार करने का संकेत कराती है | ये मिथुन मूर्तियाँ दर्शनार्थी को ये स्मरण कराती है की जिस व्यक्ती ने जीवन के इस प्रथम सोपान ( काम तृप्ति ) को पार नहीं किया है, वो देव दर्शन - मोक्ष के द्वितीय सोपान पर पैर रखने का अधिकारी नहीं | दुसरे शब्दों मैं कहें तो देवालयों मैं मिथुन मूर्तियाँ मंदिर मैं प्रवेश करने से पहले दर्शनार्थीयों से एक प्रश्न पूछती हैं - "क्या तुमने काम पे विजय पा लिया?" उत्तर यदि नहीं है, तो तुम सामने रखे मोक्ष ( देव प्रतिमा ) को पाने के अधिकारी नहीं हो | ये गृहस्थ को एक और अत्यावश्यक कर्तव्य कि ओर ध्यान आकर्षित कराती है - मोक्षप्राप्ति के प्रयास करने के पूर्व वंशवृद्धि का कर्तव्य | ये मिथुन मूर्तियाँ दर्शनार्थीयों को काम को लक्ष्य ना मानने की सलाह दे कर वास्तविक लक्ष्य मोक्ष (देव प्रतिमा) प्राप्ति की ओर इशारा भी करती है |
एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है - ब्रह्मचारियों, ऋषियों, साधु-संतों के लिए इससे क्या जवाब निकलेगा? ब्रह्मचारियों, ऋषियों, साधु-संतों से भी अश्लील मूर्तियाँ और भित्तिचित्र यही सवाल करती है - अश्लील मूर्तियाँ देखकर भी तुम्हारा ध्यान आध्यात्म और इश्वर मैं ही लगा है ना ? योग-साधना, भक्ती, वैराग्य आदि से तुमने काम पे विजय प्राप्त किया है या नहीं ? यदि नहीं तो तुम भी मोक्ष के अधिकारी नहीं हो | 
इस प्रकार ये मिथुन मूर्तियाँ मनुष्य को हमेशा इश्वर या मोक्ष को प्राप्ति के लिए काम से ऊपर उठने की प्रेरणा देता है | अश्लील भावों की मूर्तियाँ भौतिक सुख, भौतिक कुंठाओं और घिर्णास्पद अश्लील वातावरण (काम) मैं भी आशायुक्त आनंदमय लक्ष्य (मोक्ष) प्रस्तुत करती है | भारतीय कला का यह उद्देश्य समस्त विश्व के कला आदर्शों , उद्देश्यों एवं व्याख्या मानदंड से भिन्न और मौलिक है | 

प्रश्न किया जा सकता है की मिथुन चित्र जैसे अश्लील , अशिव तत्वों के स्थान पर अन्य प्रतिक प्रस्तुत किये जा सकते थे/हैं ? - ये समझना नितांत भ्रम है की मिथुन मूर्तियाँ , मान्मथ भाव अशिव परक हैं | वस्तुतः शिवम् और सत्यम की साधना के ये सर्वोताम माध्यम हैं | हमारी संस्कृति और हमारा वाड्मय इसे परम तत्व मान कर इसकी साधना के लिए युग-युगांतर से हमें प्रेरित करता आ रहा है  

मैथुनंग परमं तत्वं सृष्टी स्थित्यंत कारणम् 
मैथुनात जायते सिद्धिब्रर्हज्ञानं सदुर्लभम | 

देव मंदिरों के कमनीय कला प्रस्तरों मैं हम एक ओर जीवन की सच्ची व्याख्या और उच्च कोटि की कला का निर्देशन तो दूसरी ओर पुरुष प्रकृति के मिलन की आध्यात्मिक व्याख्या पाते हैं | इन कला मूर्तियों मैं हमारे जीवन की व्याख्या शिवम् है , कला की कमनीय अभिव्यक्ती सुन्दरम है , रस्यमय मान्मथ भाव सत्यम है | इन्ही भावों को दृष्टिगत रखते हुए महर्षि वात्सयायन मैथुन क्रिया, मान्मथ क्रिया या आसन ना कह कर इसे 'योग' कहा है |

Monday, September 14, 2009

अश्लील मूर्तियाँ/चित्र मंदिर मैं क्यूँ ? Why sexual statue or carvings in Hindu Temple?

हमारे कई मंदिरों मैं अश्लील मूर्तियाँ/चित्र मंदिर के प्रवेश द्वार या बाहरी दीवारों पर अंकित होती हैं | तिरुपति मं भी बिलकुल मुख्य द्वार के ऊपर मिथुन भाव की अंकित मूर्ती देखा तो सहज ही ये प्रश्न दिमाग मैं आया की आखिर हमारे देवालयों मैं अश्लील मूर्तियाँ/चित्र क्यों होते हैं? इधर-उधर बहुत छाना पर इसका वास्तविक और और सही उत्तर मिला मुझे महर्षि वात्सयायन रचित कामसूत्र में | वैसे तो बाजार में कामसूत्र पर सैकडों पुस्तक उपलब्ध हैं और लगभग सभी पुस्तकों में ढेर सारे लुभावने आसन चित्र भी मिलेंगे | पर उन पुस्तकों में कामसूत्र का वास्तविक तत्व गायब है | फिर ज्यादातर पाठक कामसूत्र को ६४ आसन के लिए ही तो खरीदता है, तो इसी हिसाब से लेखक भी आसन को खूब लुभावने चित्रों के साहरे पेश करता है | पर मुझे ऐसी कामसूत्र की पुस्तक हाथ लगी जिसमे एक भी चित्र नहीं है और इसे कामसूत्र की शायद सबसे प्रमाणिक पुस्तक मानी जाती है | महर्षि वात्सयायन रचित कामसूत्र के श्लोक थोड़े क्लिष्ट हैं, उनको सरल करने हेतु कई भारतीय विद्वानों ने इसपे टिका लिखी | पर सबसे प्रमाणिक टिका का सौभाग्य मंगला टिका को प्राप्त हुआ | और इस हिंदी पुस्तक में लेखक ने मंगला टिका के आधार पर व्याख्या की है | लेखक ने और भी अन्य विद्वानों की टीकाओं का भी सुन्दर समावेश किया है इस पुस्तक में |


एक गृहस्थ के जीवन में संपूर्ण तृप्ति के बाद ही मोक्ष की कामना उत्पन्न होती है | संपूर्ण तृप्ति और उसके बाद मोक्ष, यही दो हमारे जीवन के लक्ष्य के सोपान हैं | कोणार्क, पूरी, खजुराहो, तिरुपति आदि के देवालयों मैं मिथुन मूर्तियों का अंकन मानव जीवन के लक्ष्य का प्रथम सोपान है | इसलिए इसे मंदिर के बहिर्द्वार पर ही अंकित/प्रतिष्ठित किया जाता है | द्वितीय सोपान मोक्ष की प्रतिष्ठा देव प्रतिमा के रूप मैं मंदिर के अंतर भाग मैं की जाती है | प्रवेश द्वार और देव प्रतिमा के मध्य जगमोहन बना रहता है, ये मोक्ष की छाया प्रतिक है | मंदिर के बाहरी द्वार या दीवारों पर उत्कीर्ण इन्द्रिय रस युक्त मिथुन मूर्तियाँ देव दर्शनार्थी को आनंद की अनुभूतियों को आत्मसात कर जीवन की प्रथम सीढ़ी - काम तृप्ति - को पार करने का संकेत कराती है | ये मिथुन मूर्तियाँ दर्शनार्थी को ये स्मरण कराती है की जिस व्यक्ती ने जीवन के इस प्रथम सोपान ( काम तृप्ति ) को पार नहीं किया है, वो देव दर्शन - मोक्ष के द्वितीय सोपान पर पैर रखने का अधिकारी नहीं | दुसरे शब्दों मैं कहें तो देवालयों मैं मिथुन मूर्तियाँ मंदिर मैं प्रवेश करने से पहले दर्शनार्थीयों से एक प्रश्न पूछती हैं - "क्या तुमने काम पे विजय पा लिया?" उत्तर यदि नहीं है, तो तुम सामने रखे मोक्ष ( देव प्रतिमा ) को पाने के अधिकारी नहीं हो | ये मनुष्य को हमेशा इश्वर या मोक्ष को प्राप्ति के लिए काम से ऊपर उठने की प्रेरणा देता है |


मंदिर मैं अश्लील भावों की मूर्तियाँ भौतिक सुख, भौतिक कुंठाओं और घिर्णास्पद अश्लील वातावरण मैं भी आशायुक्त आनंदमय लक्ष्य प्रस्तुत करती है | भारतीय कला का यह उद्देश्य समस्त विश्व के कला आदर्शों , उद्देश्यों एवं व्याख्या मानदंड से भिन्न और मौलिक है |


प्रश्न किया जा सकता है की मिथुन चित्र जैसे अश्लील , अशिव तत्वों के स्थान पर अन्य प्रतिक प्रस्तुत किये जा सकते थे/हैं ? - ये समझना नितांत भ्रम है की मिथुन मूर्तियाँ , मान्मथ भाव अशिव परक हैं | वस्तुतः शिवम् और सत्यम की साधना के ये सर्वोताम माध्यम हैं | हमारी संस्कृति और हमारा वाड्मय इसे परम तत्व मान कर इसकी साधना के लिए युग-युगांतर से हमें प्रेरित करता आ रहा है –


मैथुनंग परमं तत्वं सृष्टी स्थित्यंत कारणम्
मैथुनात जायते सिद्धिब्रह्म्ज्ञान सदुर्लाभम |


देव मंदिरों के कमनीय कला प्रस्तरों मैं हम एक ओर जीवन की सच्ची व्याख्या और उच्च कोटि की कला का निर्देशन तो दूसरी ओर पुरुष प्रकृति के मिलन की आध्यात्मिक व्याख्या पाते हैं | इन कला मूर्तियों मैं हमारे जीवन की व्याख्या शिवम् है , कला की कमनीय अभिव्यक्ती सुन्दरम है , रस्यमय मान्मथ भाव सत्यम है | इन्ही भावों को दृष्टिगत रखते हुए महर्षि वात्सयायन मैथुन क्रिया, मान्मथ क्रिया या आसन ना कह कर इसे 'योग' कहा है |

Friday, September 11, 2009

विलियम शेक्सपीयर सांप्रदायिक था, क्या?


महान विलियम शेक्सपीयर के लेखन के विभिन्न पहलुओं पर काफी चर्चा हुई है | पर शायद एक ऐसा पहलु  भी है, जिस पर हिंदी जगत मैं बहुत कम चर्चा हुई है | शेक्सपीयर के प्रशंसकों को ये आलेख थोडा अटपटा जरुर लगेगा | जो भी हो, किसी की भावना को ठेंस पहुँचती है तो मैं पहले से ही क्षमा मांग लेता हूँ , पर मेरी गुजारिश है की इसपे गौर जरुर करें |  

किसी लेखक का पूर्वाग्रही और सांप्रदायिक होने नयी बात नहीं | इतिहास के पन्नो मैं आपको कई बड़े विचारक - लेखक पूर्वाग्रही और सांप्रदायिक मिलेंगे, उन्ही लेखकों मैं से एक थे सर विलियम शेक्सपीयर | विश्व प्रसिद्द The Merchant Of Venice नाटक मैं उन्होंने एक पात्र चुना Shylock, निहायत शैतान, निर्दयी और बदला लेने के लिए किसी भी सीमा तक निचे गिरने वाला सूदखोर | Shylock यहूदी (Jew) धर्म का अनुयायी होता है | Antonio एक सहृदय सुन्दर पात्र पर इसाई धर्मावलम्बी | Shylock अपने इसाई मित्र Antonio को उधार मैं पैसे देता है, पर एक वीभत्स शर्त के साथ - Antonio, Shylock को ये अधिकार देता है की यदि Antonio उधार का पैसा वापस नहीं कर पाता है तो Shylock एंटोनियो के ह्रदय से मांस का टुकडा निकाल सकता है | जब दिवालिया घोषित एंटोनियो पैसा वापस नहीं कर पाता है तो Shylock एंटोनियो से शर्त के मुताबिक उसके ह्रदय से मांस का टुकडा माँगता है | ...... इसे लिखते समय आखिर विलियम शेक्सपीयर की मनोदशा क्या रही होगी ? क्यों एक यहूदी पात्र Shylock को इतना क्रूर और इसाई पात्र Antonio को दयालु सहृदय दिखाया ? इस यहूदी पात्र को दयालु और Antonio ( इसाई ) को क्रूर दिखा सकते थे | या कम से कम दोनों ही पात्रों (Shylock और Antonio) को इसाई तो दिखा ही सकते थे ! या फिर वो एंटोनियो और Shylock पात्रों के धर्म को ही छुपा जाते !

आगे देखिये - Shylock की बेटी Jessica, Antonio के मित्र Lorenzo के साथ भागकर इसाई धर्म स्वीकार कर लेती है | 


जब 'The Merchant Of वेनिस' विद्यालयों मैं पढाया जाता है तो यहूदी Antonio के चरित्र बताते समय शिक्षक के चेहरे का भाव कैसा रहता होगा ? शिक्षार्थी के कोमल मन मैं कैसी भावनाएं आती होंगी यहूदी Antonio के बारे मैं ? फिर Jessica का इसाई धर्म स्वीकारना, क्या ये बच्चों को इसाई धर्म के प्रति प्रेम और यहूदी धर्म के प्रति घोर घृणा नहीं सीखा रहा है ?


एक तर्क ये भी दिया जा सकता है की Antonio और Shylock दोनों ही काल्पनिक पात्र हैं | पर क्रूर पात्र Shylock जिसे उन्होंने यहूदी दिखाया - भी तो उनके दिमाग की ही उपज थी ! आगे चलकर उन्होंने यदि किसी यहूदी को सहृदय दयालु बताया हो तो शेक्सपीयर को पूर्वाग्रही सांप्रदायिक कहना उचित नहीं होगा | पर दयालु सहृदय यहूदी पात्र शेक्सपीयर ने दिखाया है तो बताएं .... नहीं तो एक शंका तो मन मैं आती ही है की - शेक्सपीयर वास्तव मैं पूर्वाग्रही सांप्रदायिक था !  


हिटलर ने शेक्सपीयर के इसी क्रूर काल्पनिक पात्र Shylock का प्रचार कर यहूदियों पर अत्याचार किया | इतना ही नहीं २० वीं शताब्दी तक अंग्रेजी भाषा साहित्य मैं यहूदियों (Jews) को कमोबेश Shylock  की तरह ही दुराचारी, व्यभिचारी, लोभी चित्रित किया जाता था |

Wednesday, September 9, 2009

मिरज़ दंगों की असलियत

वैसे तो मैंने कल ही इसी विषय पे एक छोटी सी पोस्ट की थी, पर उसमे दो ही youtube link थे | बाकी के सारे लिंक काफी देर से डाला था तो सोचा की नए लिंक के साथ क्यों ना एक नयी पोस्ट डाल दूँ !  वैसे भी अपनी सेकुलर मीडिया तो इसपे चुप है, जनता को सच से रु-बा-रु कराने का बीडा हम ब्लोग्गरों को ही उठाना पडेगा | TV चैनल्स रोज झूठ को हजारों बार दिखाते हैं, मैंने सत्य को थोड़े विस्तार से दुबारा करने की कोशिश की है | अपने पाठकों से क्षमा भी चाहुगा की ब्लॉग की परंपरा के विपरीत जाकर एक ही विषय पर दुबारा पोस्ट किया है | क्या करें ऐसी घटना पर मीडिया जगत का मौन मन मैं कई शंकाओं को जन्म दे रहा है | youtube विडियो देखने के बाद एक सवाल मन मैं बार बार रहा है - क्या भारत मैं अब हिन्दुओं की भावनाओं का कोई कद्र नहीं ? क्या मिश्र की महान सभ्यता की तरह ही हिन्दू सभ्यता को पतन की ओर धकेला जा रहा है ? 


हिन्दू जागृति ने भी घटना का पूरा विवरण दिया है : http://www.hindujagruti.org/news/7785.html

इसी विषय पे सुरेश जी ने भी विस्तार से लिखा है : http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2009/09/miraj-riots-ganesh-mandal-mumbai.html

 एक ज्वलंत आलेख अनिल जी ने भी लिखा है : http://anilpusadkar.blogspot.com/2009/09/blog-post_09.html

Tuesday, September 8, 2009

आधिकारिक सरकारी नीति 'तुष्टिकरण' का परिणाम - मिरज दंगा

मिरज (महारास्ट्र) -पुलिस अधीक्षक ने अपने ही पुलिस वाहन पे मुस्लिम दहसतगर्दो को झंडा फहराने की अनुमति दी | कुछ देर के बाद मुस्लिम दहसतगर्दो ने गणपति पंडाल पे हमला बोल दिया | पुलिस ने आनन-फानन मैं टूटी हुई गणपति प्रतिमा का विसर्जन करवाया | ऐसा तो होना ही है जब तुष्टिकरण को आधिकारिक सरकारी नीति बना दिया गया है | youtube link : http://www.youtube.com/watch?v=nsX6LYdNBNw  
http://www.youtube.com/watch?v=o-J0mD8naAg
http://www.youtube.com/watch?v=mCEQBAqkK78
 http://www.youtube.com/watch?v=ib-RvVtQsQc
http://www.youtube.com/watch?v=Ut7HebM1Eck
http://www.youtube.com/watch?v=GsXGL6HWskU
http://www.youtube.com/watch?v=gQq0-ZEGLZ4



पूरी रिपोर्ट विस्तार से आप यहाँ भी पढ़ सकते हैं : http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2009/09/miraj-riots-ganesh-mandal-mumbai.html
IMPORTANT NOTE : हो सकता है भारत सरकार ने इनमें से कुछ वीडियो को प्रतिबन्धित करने की कोशिश की हो |

Thursday, September 3, 2009

पैगम्बर मुहम्मद कल्कि अवतार नहीं - स्वच्छता वाले सलीम मियां को जवाब


सबसे पहले ये बता दूं की ये लेख मैंने क्यूँ लिखा? हिंदी ब्लॉग जगत मैं डॉ. जाकिर के चेलों (स्वच्छता वाले सलीम खान) द्वारा लगभग हर सप्ताह एक दो ब्लॉग "पैगम्बर मुहम्मद ही कल्कि अवतार हैं" लिखते रहे हैं | हमने कई जवाब भी दिए पर वो कहाँ सुननेवाले ! गूगल पे हिंदी मैं सर्च करो तो वही स्वच्छता वाले (वास्तव मैं अस्वच्छ) सलीम खान ही सबसे आगे आते हैं और उसका कोई सही जवाब देता हुआ ब्लॉग नहीं मिला | इसलिए सोचा के झूठे प्रचार का जवाब देना ही चाहिए | मैं संस्कृत का ज्ञानी नहीं इसलिए संस्कृत शब्दों और श्लोकों के अर्थ के लिए उचित reference देने की कोशिश की है |

क्या पैगम्बर मुहम्मद कल्कि अवतार हैं ? उत्तर : नहीं, निम्न बिन्दुओं पे गौर करें :

* हिन्दू धर्म ग्रंथों मैं कलि युग का काल ४,३२,००० (चार लाख बत्तीस हज़ार वर्ष) बताया गया है | कलि युग के अंत मैं ही भगवान् स्वयेम कल्कि के रूप मैं पृथ्वी पे अवतार लैंगे (ref: भागवतम 2.7.३८ -
http://srimadbhagavatam.com/2/7/38/en ) | कलि युग का आरम्भ लगभग 3102 BC माना गया है (ref : http://www.harekrsna.com/sun/features/04-09/features1345.htm) | अब तक कलि युग के लगभग पॉँच हज़ार वर्ष ही बीते हैं, कल्कि अवतार आने मैं अभी लाखों वर्ष बाकी हैं | क्या यहीं ये साबित नहीं हो जाता की मुहम्मद साहब कल्कि अवतार हैं ही नहीं !

* डॉ. जाकिर और अन्य मुस्लिम विचारक जिन हिन्दू धर्म ग्रंथों का सन्दर्भ दे रहे हैं, उन्ही ग्रंथों में राम, कृष्ण.... को साक्षात भगवन का अवतार बताया गया है | क्या हमारे मुसलमान भाई कल्कि अवतार से पहले की अवतारों (राम, कृष्ण....) को भगवान् मानते हैं ? ये प्रश्न जैसे ही पूछता हूँ इनके बड़े-बड़े विचारक बेशर्मी से कहते हैं, नहीं हम तो सिर्फ मुहम्मद साहब को ही अवतार मानते हैं और इससे पहले की सारे अवतार झूठे हैं | मतलब की आप हमारे मुहम्मद साहब को कल्कि अवतार मान कर इस्लाम कबुल कर लो, हम तो आपके अवतारों राम, कृष्ण ... को मानते भी नहीं !!! अब बताईये इस्लाम के बड़े-बड़े विचारकों को क्या कहा जाए ?

* भागवतम (12.2.१७ -
http://srimadbhagavatam.com/12/2/17/en) कहता है : भगवान् विष्णु खुद कल्कि के रूप मैं धरती पे अवतार लेंगे | मतलब भगवान् विष्णु = कल्कि अवतार | पर डॉ. जाकिर और उनके चेले कहते हैं की मुहम्मद साहब तो पैगम्बर हैं, अल्लाह कोई और है | जबकी हिन्दू ग्रन्थ साफ़ कहता है : कल्कि अवतार कोई पैगम्बर नहीं बल्कि भगवान् विष्णु का अवतार होगा | एक कम बुद्धि वाला इंसान भी ये बात भली भांती समझता है, फिर डॉ. जाकिर और सलीम भाई जैसे इस्लाम जगत के बड़े विद्वानों ने क्यों नहीं समझा इसे अबतक? समझेंगे भी कैसे इनके पथ निर्देशक खुद ही गलत रास्ते पे जो दौड़ रहे हैं |

* कई जगहों पे वेदों का उदाहरण दे कर कहते हैं की वेदों मैं मुहम्मद साहब के बारे मैं फलां-फलां बातें बतायी गई है | वस्तुतः वेदों मैं कुल १,००,००० (एक लाख) ऋचाएं/मन्त्र थी , घटते घटते आज सिर्फ २०-२१ हजार ही उपलब्ध रह गई हैं | एक पढ़ा-लिखा इंसान (भले ही उसे कितनी भी अच्छी संस्कृत क्यों ना आती हो) इन २०-२१ हजार रिचाओं को अपने बल बूते नहीं समझ सकता, ये ग्यानी जन कह गए हैं | वेदों को समझने के लिए गुरु-शिष्य परम्परा आवाश्यक है | शायद यही कारण है की वेद कभी गीता, महाभारत, रामायण या अन्य पुराण की तरह आम जन के लिए सहज उपलब्ध भी नहीं हुआ और ना ही इसे ऐसे पढा जाता है |
डॉ. जाकिर और उनके चेलों (स्वच्छता वाले सलीम मियां) से ये पूछना चाहता हूँ की आपने वेद के २०-२१,००० ऋचाएं बिना गुरु (कोई गुरु हो तो बताएं) के ही पढ़ कर समझ भी लिया वो भी ४-५ वर्षों मैं ही ? आपके कुरान मैं लगभग ६२३६ आयात ही हैं, तो आपने कुरान से कई गुना ज्यादा समय वेद पढने मैं लगाया , वाह क्या बात है ? अब जबकी मुस्लिम विद्वान् हिन्दू ग्रन्थ पढने मैं ज्यादा समय देते हैं तो कोई पागल हिन्दू ही इनके कुरान को पढ़ेगा, क्यूँ ?

* वेद के किसी भी मन्त्र मैं मुहम्मद शब्द का उल्लेख तक नहीं है, फिर भी बड़े बेशर्मी से ये कहते हैं नराशंस शब्द का अर्थ मुहम्मद और अहमद है | नराशंस शब्द का वास्तविक अर्थ जानने के लिए youtube लिंक देख सकते हैं :
http://www.youtube.com/watch?v=AHOv-v-EfkE | जाकिर और उनके चेलों (सलीम खान) के हिसाब से संस्कृत के बड़े बड़े पडित - ज्ञानी किसी को संस्कृत नहीं आती, सबसे बड़े ज्ञाता तो सलीम मियां और जाकिर नायक हैं !

* पैगम्बर मुहम्मद पे भविष्य पुराण क्या कहता है जानने के लिए गूगल मैं search करें, अंग्रेजी मैं ढेर सारी सामग्री मिल जायेगी | bhavishyapuran नाम से (शायद) एक ब्लॉग भी है जहाँ इसपर सामग्री उपलब्ध है |

स्वच्छता वाले सलीम भाई के गुरु डॉ. ज़ाकिर नायक के बारे मैं कुछ मुसलमान भाई क्या राय रखते हैं, देखने के लिए youtube लिंक पे क्लिक करें
youtube लिंक
http://www.youtube.com/watch?v=JL52VoKUj78 - (NDTV रिपोर्ट )


(इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेश पहुचाना नहीं अपितु डॉ. जाकिर और अन्य मुस्लिम भाईयों (स्वच्छ हिंदोस्ता वाले सलीम खान, और ना जाने कौन कौन ..) द्वारा कल्कि अवतार पे किये जा रहे झूठे प्रचारों से लोगों को अवगत करना है | )
 

Tuesday, September 1, 2009

८२३ वर्षों बाद - अगस्त २००९ एक अद्भुत माह |


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२००९ अगस्त मैं
५ शनिवार
५ रविवार
५ शोमवार
एक ही महीने मैं ! ऐसा ८२३ वर्षों मैं एक बार ही होता है |