Friday, August 17, 2012

सनातन वर्ण व्यवस्था

ब्राह्मणोस्य मुखमासीत | बाहू राजन्यः कृतः |
उरू तदस्य यद्वैश्यह |   पद्भ्यां शुद्रो अजायत॥  

उपरोक्त पुरुष शुक्त श्लोक का अर्थ ये लगाया जाता है कि "मानस यग्य में उस विराट पुरुष द्वारा स्वें  का उत्सर्ग करने से उसके मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, जाँघों से वैश्य और चरणों से शुद्र ने जन्म लिया." और इस आधार पे कई जन्म से ब्राहमणों को श्रेष्ठ मान बैठने की भूल कर रहे हैं. उस पुरुष शुक्त में ऐसा कहीं नहीं कहा गया की विराट पुरुष के मुख से बना ब्राहमण अन्य से श्रेष्ठ है. 

वास्तव में किसी भी श्लोक, पद, कविता, दोहा के दो अर्थ निकाले जा सकते हैं : १. शाब्दिक अर्थ , २. भावार्थ. शाब्दिक अर्थ के सहारे श्लोक, पद, कविता, दोहा के वास्तविक ज्ञान/अर्थ तक नहीं पहुंचा जा सकता, क्यूँकी  शाब्दिक अर्थ हमेशा ही उसी शब्द और श्लोक तक सिमित रह जाता है. पर भावार्थ शब्द और श्लोक के वास्तविक अर्थ को लेते हुए पूरी कहानी कहती है. उपरोक्त श्लोक का भावार्थ कुछ इस प्रकार है : 

वेद वांग्मय में पुरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त आत्म तत्व की कल्पना आदि पुरुष यानी विराट पुरुष के रूप में हुई. जिसमें मुख को ब्राह्मण, भुजाओं को क्षत्रिय, जंघा को वैश्य और चरणों को शुद्र कहा गया. इसीलिए उस समय की सामाजिक व्यवस्था में शूद्रों को हीन माना गया जबकी वेदों का ये अभिप्राय नहीं था. 

वही पुरुष शुक्त ये भी कहता है की ये पृथ्वी भी शुद्र है क्यूंकि उस विराट पुरुष की नाभि से अन्तरिक्ष, मस्तक से धू लोक और चरणों से पृथ्वी. तो क्या पृथ्वी भी शुद्र है? 

शुद्र तो उनके चरण हैं जिनकी आँखें शुर्य हैं , जिसका मन चन्द्रमा है और जिसकी सासें हैं . ऐसे ब्रह्माण्ड को धारण करनेवाला शुद्र है. 

वर्ण का शाब्दिक अर्थ है रंग. शास्त्रों में त्रिगुण यानी सत्व, रजो और तमो नाम की मनःस्थिति/मनोदशा को वर्ण यानी रंगों की माध्यम से दर्शाया जाता है. सत्व सफ़ेद, राजस लाल, तमस को कृष्ण यानी काले रंग से अभिव्यक्त किया जाता है. जब मनुष्य अपने अस्तित्व के लिए कभी जंगली पशुओं से और कभी दुसरे समूहों की आक्रमण से लड़ रहा था, ऐसी व्यवस्था में जो सत्व गुण प्रधान थे, जिन्होंने समाज के बौद्धिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन का जिम्मा उठाया वे ब्रह्मण कहलाये. जो रजो गुण प्रधान थे, योद्धा थे वीर थे, युद्ध में कुशल और निपुण थे, जिन्होंने अपने समाज-समुदाय के रक्षा की जिम्मेदारी उठाई वे क्षत्रिय कहलाए. जो रजो और तमो गुण प्रधान थे, जिन्होंने समाज के पालन पोषण, भोजन और रोज-मर्रा की जरूरतों की जिम्मेदारी उठाई  वे वैश्य कहलाए. जो तमो गुण प्रधान थे जिन्होंने अपने समाज-समुदाय के सेवा की जिम्मेदारी उठाई वे शुद्र कहलाए. वर्ण की इस व्यवस्था का अपने प्राचीन रूप में अपने जन्म से कोई सम्बन्ध नहीं था.

 जन्म से कोई ब्राह्मण, कोई क्षत्रिय, वैश्य या शुद्र नहीं होता - इसकी घोसना वेद व ऋषि याज्ञवल्क करते हैं, और समस्त ऋषि उनका समर्थन करते हैं. ... क्या कहा था ऋषि याज्ञवल्क ने, मिथिला के राजा जनक के सभा में ? विवाचार्य ने प्रश्न किया था - ब्रह्म को जान लेने की बाद  मनुष्य क्या बनता है और वह कैसे आचरण करता है ? ऋषि याज्ञवल्क ने कहा था ब्रह्म को जान लेने के बाद ही मनुष्य ब्राह्मण बनता है. और उसे जान लेने के बाद जो भूख-प्यास, शोक-मोह, जन्म-मृत्यु से परे है. ब्राह्मण पुत्र की कामना, धन की कामना और संसार की कामना से मुक्त हो भिक्षा पे निर्वाह करता है. ब्राह्मण वही है जो ब्रह्म को जानता है, बाकी सब मृत्यु और शोक के ग्रास हैं. 

जब वेद ये घोषणा कर रहे हैं, तो फिर कोई जन्म से श्रेष्ठ कैसे? वेद उस व्यवस्था के खिलाफ है जो प्रत्येक मनुष्य को सामाजिक और आध्यात्मिक उत्कर्ष का अवसर ना दे. हर मनुष्य को अपना कर्म चुनने का आधिकार होना चाहिए क्यूंकि वही पुरुषार्थ है. श्रम का विभाजन किसी एक वर्ण का आधिकार नहीं हो सकता. यदि भार्गव राम परसु उठा कर २१ बार क्षत्रिय का विनाश कर सकते हैं तो चन्द्रगुप्त (जिसे कई लोग शुद्र मानते थे) भी राज धर्म धारण कर सकता है. यदि विश्वरत विश्वामित्र ब्राह्मण बन सकते हैं चन्द्रगुप्त भी क्षत्रिय बन सकता है. यदि लोमहर्षण शुद्र व्यास पद पा सकते हैं  तो कर्ण को भी शास्त्र विद्या सिखने का आधिकार मिलना चाहिए. 

प्रत्येक व्यक्ती असीम संभावनाओं का स्वामी है और उन असीम संभावनाओं का द्वार खोलना ही वर्ण व्यवस्था का उद्देश्य होना चाहिए.

भगवान कृष्ण ने भी भगवदगीता में कहा है - 

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।तस्य कर्तारमपि मां विद्धयकर्तारमव्ययम्‌ ॥  - भगवद गीता ४.१३ 
भावार्थ :  ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र- इन चार वर्णों का समूह, गुण और कर्मों के विभागपूर्वक मेरे द्वारा रचा गया है। इस प्रकार उस सृष्टि-रचनादि कर्म का कर्ता होने पर भी मुझ अविनाशी परमेश्वर को तू वास्तव में अकर्ता ही जान॥
 ....
ब्राह्मण वे हैं जो सात्विक गुण प्रधान हैं,  
शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्‌ ॥
 - भगवद गीता १८.४२ 
भावार्थ :  अंतःकरण का निग्रह करना, इंद्रियों का दमन करना, धर्मपालन के लिए कष्ट सहना, बाहर-भीतर से शुद्ध (गीता अध्याय 13 श्लोक 7 की टिप्पणी में देखना चाहिए) रहना, दूसरों के अपराधों को क्षमा करना, मन, इंद्रिय और शरीर को सरल रखना, वेद, शास्त्र, ईश्वर और परलोक आदि में श्रद्धा रखना, वेद-शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन करना और परमात्मा के तत्त्व का अनुभव करना- ये सब-के-सब ही ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं॥
क्षत्रिय वे हैं जो रजो गुण प्रधान हैं.
शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्‌।
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्‌॥
- - भगवद गीता १८.४३ 
भावार्थ :  शूरवीरता, तेज, धैर्य, चतुरता और युद्ध में न भागना, दान देना और स्वामिभाव- ये सब-के-सब ही क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं॥
वैश्य वे हैं जो रजो और तमो गुण प्रधान हैं और शुद्र वे हैं जो तमो गुण प्रधान हैं.
कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्‌।
परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजम्‌॥
 
- भगवद गीता  - १८.४४ 
भावार्थ :  खेती, गोपालन और क्रय-विक्रय रूप सत्य व्यवहार ये वैश्य के स्वाभाविक कर्म हैं तथा सब वर्णों की सेवा करना शूद्र का भी स्वाभाविक कर्म है॥
.... 
वर्ण व्यवस्था में कोई हीन और कोई महान नहीं. जैसे मस्तक, भुजाओं, जाँघों और परों का एक व्यक्ती के कल्याण के लिए एक साथ मिल कर काम करना आवश्यक है, उसी प्रकार समाज के कल्याण के लिए सभी वर्णों की समान रूप से आवश्यकता है. 
जन्मना जायते शूद्रः
संस्कारात् भवेत् द्विजः |
वेद-पाठात् भवेत् विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः |  अत्री स्मृति १४१ 
जन्म से मनुष्य शुद्र, संस्कार से द्विज, वेद के पठान-पाठन से विप्र और जो ब्रह्म को जनता है वो ब्राह्मण कहलाता है.

साभार : डॉ. चन्द्र प्रकाश द्वेवेदी निर्देशित "उपनिषद गंगा". 

Wednesday, August 4, 2010

बाबु आयेंगे ...

हमेशा की तरह आज भी मित्र से मिलने ही जा रहा था, फर्क सिर्फ इतना कि सायकिल के बजाय पैदल था | अचानक अंकल-अंकल की आवाज़ लगाता एक लड़का बदहवास मेरी और दौडा आ रहा था | मैं कुछ डर सा गया | वो संथाली-हिंदी मिला कर, बिना रुके, बोलता गया, मैं कुछ समझ ही नहीं पाया सिवाय इसके की "तुम मेरे साथ चलो, मेरे साथ चलो ना?" | मैंने जाने की हामी भरी और उसके पीछे-पीछे भागने लगा | वो एक बड़े नाले में कूद कर अपने सामर्थ्य से शिला को हटाने की कोशिश करने लगा | सामने का दृश्य देख एक क्षण समझ नहीं पाया कि क्या करूँ ? लगभग १० साल के एक बच्चे का सिर उद्घाटन शिला के निचे दबा और पूरा शारीर नाले में लटक रहा था | उसके शरीर से रक्त बहते-बहते नाले के पानी को लाल कर गया | शिला भारी थी, अकेले उठाने कि सारी कोशिशें व्यर्थ गई | जितना संभव हुआ थोडा शिला उठाये हुए ही लोगों से सहायता मँगाने लागा... कुछ गरीब लोग सहायता को दौड़े आये | वैसे, ऐसे मौकों पर गरीब ही सहायता को आगे आता है, ज्यादा पढ़े लिखे लोग ये सब देख कर भी इस लफड़े में नहीं पड़ने में ही अपनी भलाई समझते हैं |
खैर, घायल बच्चे को १०-१५ मिनट के अन्दर, पैदल ही, हस्पताल तक ले आया | हस्पताल पहुँचते-पहुँचते ना जाने कितनी बार मन ही मन भगवान् को पुकारता रहा, इसे बचा लो भगवन, मैं ये पूजा करूंगा ... लड्डू चढाउंगा... | रास्ते भर कुछ लोग ये आशंका व्यक्त कर रहे थे कि डॉक्टर इस गरीब का इलाज शायद ही करेगा | लोगों की आशंका निर्मूल नहीं थी, डॉक्टर ने पहले तो आना-कानी की पर बहुत समझाने-बुझाने पर किसी तरह इलाग को राजी हुआ | एक क्षण लगा अब चिंता की कोई बात नहीं | बाकी समय इश्वर का स्मरण हो ना हो ऐसे क्षणों में इश्वर ही एक सहारा होता है .. आँखें बंद कर इश्वर को याद करने लगा .... कम्पाउन्दर आकर कह गया उम्मीद नहीं के बराबर है इसे बड़े हस्पताल ले जाओ | लोगों की सलाह थी की इस एकलौते संतान के लंगडे पिता को साथ लेकर ही आगे चला जाय, पर लोगों की सलाह के विपरीत उसके लंगड़े पिता को लिए बिना ही मैं बड़ा हस्पताल आ गया | डॉक्टर अपना काम करने लगे... | आशा की किरण फिर से जगने लगी ... एक पल को लगा सब ठीक हो गया | पर ये आशा क्षणिक रही .... कुछ ही मिनटों मैं डॉक्टर जवाब दे गया - he is no more ....!
उस रात सोने की सारी कोशिशें व्यर्थ रही | रह-रह कर वही घटना दृश्य पटल पे सजीव हो उठती थी | ठीक तीसरे दिन उसका लंगडा पिता-माता मुझसे मिलने आए | काफी देर तक हम-लोग मौन ही रहे | आखिर कर उसकी पत्नी (दिवंगत की माँ) ने धीरे से कहा बाबु से जो बोलने आये हो बोलोगो नहीं, घबराओ नहीं बाबु अपने हैं.. बोल दो | वो फिर भी मौन रहा, मेरे बार-बार आग्रह पर बोला बाबु आपने बहुत कोशिश की..फिर भी हमारा एकलौता बेटा चला गया... शायद इश्वर को यही मंजूर था | लेकिन मेरे बेटे की ह्त्या की गई है, वो लोग हत्यारे हैं | मैं उसे समझाने की कोशिश करता रहा की इतने छोटे बच्चे को कौन
मारेगा? उद्घाटन शिला अपने आप उसके सर पे गिरी, मुझे उस लड़के ने यही बताया था | मैंने जोर देकर कहा - मुझे किसी दृष्टि से इसमें हत्या की संभावना नहीं लगती? मेरी बात पे गौर किये
बिना ही वो बोलता गया..."बाबु आप हाँ बोलो तो मैं उसके ऊपर केस-मुकदमा करूं | वो हत्यारे हैं, उन्हीं लोगों के करान ही मुझे अपना बेटा खोना पडा है | वो नाला, उद्घाटन शिला बस ५-६ महीने पहले ही बना था, क्या शिला इतना पुराना हो गया की अपने आप गिर जाए?" मैं समझ गया उसका इशारा एक प्रतिष्ठित आदिवासी ढेकेदार की ओर है | वो बार-बार आप जो बोलो मैं वही करूंगा की गुहार लगाता गया | वो मुझसे आँख मिला कर बात करने की चेष्टा किये जा रहा था पर मैं उससे आंख मिला कर बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया | "तुम्हें जो ठीक लगे वही करो , मैं तो साधारण परिवार का हूँ और अभी क्षात्र हूँ फिर भी पैसे से जो बन पडेगा सहायता करूंगा" कह कर विदा किया उसे |
अगले ही दिन आगे की पढाई के लिए भागलपुर जा रहा था पर मन बोझिल था माँ, पिताजी ने भी काफी समझाया पर जाने को मन नहीं मान रहा था | जाते समय अपने छोटे से कसबे के मित्र, सगे सम्बन्धी, अपना परिवार, खुबसूरत पहाड़ियों के छूटने का दर्द तो था पर रह रह कर उस मासूम का चेहरा और वो भयानक दृश्य ही मन मस्तिस्क पे हावी रहा |
भागलपुर आ कर धीरे धीरे उस सदमे से उबर सा गया | इस दौरान मुझे उनलोगों की कोई खबर मिली नहीं | अचानक एक दिन खबर मिली की लड़के की माँ दोषियों को साजा दिलाने मुझसे मिलना चाहती थी | ३ महीने तक तो वो इस आस मैं बैठी रही की मैं आउंगा और कुछ करूंगा .... पर अंततः उसकी हिम्मत जवाब दे गई | "बाबु आयेंगे ... दोषियों को सजा दिलाने में हमारी मदद करेंगे" यही अपूर्ण इच्छा लिए उसने अंतिम सांस ली !

Tuesday, December 15, 2009

हिन्दू आक्रामक हो या नहीं ?


हिन्दुओं के लिए दिन-ब-दिन जब परिस्थितियाँ विपरीत होती जा रही हों तो क्या इस अवस्था मैं भी हमारा सहनशील (वास्तविक तौर पे कायर) बने रहना उचित है? मैं समझता हूँ की आज की अवस्था में यदि हिन्दू आक्रामक हो कर दुस्प्रचारियों से लड़े तभी कुछ सुधार आएगा | आज हिन्दुओं का आक्रमणशील होना क्यों जरुरी है, जरा निम्न बिन्दुओं पे गौर करें :

* पिद्दी सा देश पाकिस्तान हमारी नाक मैं दम किये रहता है, क्यूँ ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - आक्रामक पाकिस्तान |

* भारत - ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट मैच, किसके जितने की संभावना ज्यादा है ? शायद  ऑस्ट्रेलिया, क्यूँ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - आक्रामक खेल |

* छोटी सेना लेकर मुहम्मद गौरी ने शक्तिशाली पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया | ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - आक्रामक मुहम्मद गौरी |

* हिन्दुस्तान लीवर का साबुन या अन्य उत्पाद बाजार मैं अब तक टिका है पर टाटा का साबुन और अन्य प्रसाधन उत्पाद गायब क्यूँ ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण हिन्दुस्तान लीवर का - आक्रामकप्रचार और मार्केटिंग |

* भारत - चीन युद्ध, चीन से हमारी सर्मनाक हार, क्यूँ ?   ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - चीन का आक्रामक होना |

* विश्व के उच्चतम तकनीक से लैस पाकिस्तान और अमेरिकी सेना तालिबान को वर्षों की लम्बी लड़ाई के बाद भी ख़तम नहीं कर पाया है, क्यूँ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - तालेबान का आक्रामक होना है |

* मैक्रोसोफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टम से कहीं अच्छा एपल का ऑपरेटिंग सिस्टम है, फिर भी बाजार मैं मैक्रोसोफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टमकी ही धूम है, क्यूँ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - मैक्रोसोफ्ट का आक्रामक प्रचार और मार्केटिंग होना है |
......

ऐसे हजारों उदाहरण हैं | ऐसा भी नहीं है की आक्रामक हो जाने भर से ही जीत निश्चित हो जाती है, पर ये भी उतना ही सत्य है की आक्रामकता के अभाव मैं अंततः विजय दूर भागती तो है ही , साथ ही आक्रामक लोग प्रतिदिन सर का दर्द बने रहते हैं |

क्रिस्चन मिसनरी दिनों-दिन बेहद सुनियोजित रणनीती से हिन्दुओं को हूक्स & क्रूक्स के सहारे धर्म परिवर्तन करवा रही है | जाकिर नायक जैसे इस्लामी प्रचारक भी आये दिन हिन्दू धर्मग्रंथों का खुल्लम खुल्ला मजाक उड़ा रहे हैं | ब्लॉग जगत को ही लीजिये सलीम खान, मुहम्मद उमर खैरान्वी, अंजुमन, कासिफ आरिफ जैसे लुच्छे रोज हमारी धर्म ग्रंथों का मजाक उड़ा रहा है | कोई हिन्दू यदि ब्लॉग के जरिये ही सही उनके साजिशों का पर्दाफास करता है तो कई सम्माननीय हिन्दू ब्लॉगर शांति-शांति या उनको ignore कीजिये या आलेख को कीचड़/मैले मैं पत्थर कहकर साजिशों का पर्दाफास करने वालों को हतोत्साहित करते हैं | सम्माननीय ब्लॉगर की सुने तो मतलब यही निकलता है की यदि कोई गन्दगी फैला रहा है तो उसे फैलाने दो आप गन्दगी फैलाने वालों को कुछ मत कहो | महात्मा गाँधी ने भी कहा था की "पाकिस्तान उनकी लाश पे ही बनेगा" .. पाकिस्तान उनके जीते-जी बन गया गाँधी जी देखते रह गए | संतों की भाषा संत और सज्जन ही समझते हैं, दानवों से दानवों की भाषा मैं ही बात की जानी चाहिए | अलबेला खत्री जी ने कुछ दिनों पहले बहुत सही अपील की थी वही अपील दुहराता हूँ  "पत्थर उठाओ और गन्दगी फैलानेवालों के ऊपर चलाओ" |

वरिष्ट और सम्माननीय ब्लोग्गरों से नम्र निवेदन है की आप वरिष्ट हैं और आप जाकिर नायक, सलीम खान ......जैसे लोगों की साजिशों का पर्दाफास करने में उर्जावान लेखकों का मार्गदर्शन कीजिये, प्रोत्साहन दीजिये | मोर्चे पे जवान ही लड़ता है  अब उर्जावान ब्लॉगर (जवान) को यदि वरिष्ट ब्लॉगर (कर्नल, लेफ्टिनेंट ...) से प्रोत्साहन नहीं मिलेगा तो जवान लडेगा कैसे?

Tuesday, December 8, 2009

प्रश्न : बच्चे मंदिर क्यूँ जाएँ/जाते हैं ? (Why a child go to Temple?)


प्रश्न : बच्चे मंदिर क्यूँ जाएँ/जाते हैं ?
वैसे ये प्रश्न सरल दिखता है पर, उत्तर मैं सारी बातों  का समावेश करने मैं समय लग सकता है और कुछ ना कुछ छुट ही जाता है | संयोग से आज ही किसी ने मेल द्वारा ये प्रश्न और उत्तर भेजा है | पहले तो आप अपना उत्तर लिख लीजिये, फिर आगे पढ़के देखिये कि आपसे कुछ छुट तो नहीं गया था | मैं तो १ मिनट सोचता रहा कि एक बालक को इसका सरल उत्तर कैसे दूं .... 
?
?
क्योंकि मंदिर ही एक ऐसा स्थान है जहाँ  
 ?
 ?
 पूजा
भावना 
श्रद्घा 
आरती 
अर्चना 
अराधना 
शांति 
ज्योति
प्रिती
तृप्ति और अंततः मुक्ति/मोक्ष 


कि प्राप्ती होती है |

Thursday, November 19, 2009

इसे कहते हैं सरकारी पैसों का सदुपयोग !!!!!!

दैनिक अखबारों के ऑनलाइन संस्करण पढ़ रहा था और इसी क्रम मैं मुझे टाईम्स ऑफ़ इंडिया (दिल्ली संस्करण ) मैं 9 दैनिक हिन्दुस्तान मैं 5 विज्ञापन इंदिरा गांधी जी को उनके जन्म दिवस पे समर्पित देखे (इस तरह के विज्ञापन लगभग सभी अखबारों मैं देखने को मिला )  |  विज्ञापन का स्क्रीन शाट बिना किसी काट छांट के निचे दिया है अब आप ही बताईये की ये सरकारी पैसों का सदुपयोग है या दुरूपयोग? किसानों को उचित गन्ने मूल्य पाने के लिए धरना प्रदर्शन और ना जाने क्या क्या नहीं करना पडेगा ... फिर भी उन्हें उचित मूल्य मिल पायेगा या नहीं, पता नहीं पर इस तरह के विज्ञापनों के खर्चने के लिए सरकार के पास पैसों की कोई कमी नहीं?

तज्जुब तब और बढ़ जाता है जब लाल बहादुर शाष्त्री, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी .... आदि पूर्व प्रधानमंत्रियों के जन्म दिवस पे इस तरह के 9-10 पन्नों का विज्ञापन गायब रहता है

दैनिक हिन्दुस्तान मैं विज्ञापन

 











टाईम्स ऑफ़ इंडिया मैं विज्ञापन














Tuesday, November 17, 2009

हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन, हिन्दुओं के पैसे से .....


क्या आपने बिना जांच-पड़ताल के किसी संस्था को, जिसे आप जानते नहीं, को इन्टरनेट पे दान दिया है ? यदि हाँ, तो संभव है कि आपका पैसा क्रिश्चियन मिसनरी के पास गया हो और उन पैसे से धर्म परिवर्तन भी करवाया गया हो | मेरे एक मित्र ने वर्ल्ड वीजन को दान दे दिया होता यदि मैं समय पे पहुँच के उसे रोका ना होता | 'वर्ल्ड वीजन' (World Vision) एक ऐसी ही वैश्विक संस्था है जिसकी साखा  लगभग १०० देशों मैं फैली है | भारत में २५ राज्यों मैं इसके १६२ परियोजना निर्बाध गति से चल रही है |  'वर्ल्ड वीजन' (World Vision)  का विज्ञापन आपको अपने देश के प्रतिष्ठित अखबार ( एकोनिमिक टाईम्स, टाईम्स ऑफ़ इंडिया ....), समाचार चॅनल (CNN-IBN, NDTV) और इन्टरनेट पे आसानी से मिल जायेंगे | निचे के विज्ञापन चित्र मैंने इकनॉमिक टाईम्स से लिया है :



( लिंक http://adscontent2.indiatimes.com/photo.cms?photoID=5169038 )
| 'वर्ल्ड वीजन' का लोगो :



इनके प्रचार वाले लिंक पे क्लिक करके आप इन्हें मासिक, त्रेमासिक, या वार्षिक दान दे सकते हैं | donation वाले पेज या होम पेज से पता नहीं चलता कि ये क्रिश्चियन मिसनरी है, थोडा खंघालने पे ये मिला "We are christian" .."Motivated by our faith in Jesus Christ" (लिंक :   
http://www.worldvision.in/?Our+Core+Values) | और ये अपने बारे मैं इस प्रकार कहते हैं "वर्ल्ड विजन एक ईसाई मानवीय बच्चों के जीवन, परिवारों और गरीबी और अन्याय में रहने वाले समुदायों में स्थायी बदलाव बनाने के काम कर रहे संगठन है" |

थोडा खोज-बिन करने से एक बात तो साफ़ हो जाती है कि 'वर्ल्ड वीजन' एक क्रिश्चियन मिसनरी है जो जोर शोर से धर्म परिवर्तन कराती रही है | तहलका पत्राकार वी.के.शशिकुमार ने 'वर्ल्ड वीजन' की करतूतों का  वृस्तित रिपोर्ट "Preparing for the Harvest" (लिंक : http://www.tehelka.com/story_main.asp?filename=ts013004shashi.asp&id=1 ) लिखा | हालाँकि ये रिपोर्ट IBNLive (CNN-IBN) के लिए लिखा गया था पर आज-तक ये रिपोर्ट IBNLive पे प्रकाशित नहीं हुई | प्रकाशित होगी कैसे जब CNN-IBN में अमेरिकी चर्च "Southern Baptist Church" का भारी पैसा लगा हो ! सेकुलरों के प्रिय राजदीप सरदेसाई भी 'वर्ल्ड वीजन' को नियमित पैसा देते हैं | इस लिंक (वर्ल्ड वीजन' साईट) को क्लिक करके खुद ही देख लीजिये, राजदीप 'वर्ल्ड वीजन' के बारे मैं क्या कहते हैं :  

'वर्ल्ड वीजन' के भारतीय प्रकाशनों  या वेबसाइट पे धर्म परिवर्तन वाली बात को छुपा दिया जाता है पर विदेशी प्रकाशनों मैं भारत मैं इनके द्वारा किये जा रहे धर्म परिवर्तन कि प्रशंशा कि जाती है | September 2009 World Vision New Zealand’s report : “Held a vacation Bible school for 150 children from different villages. The children participated in games, Bible quizzes, drama and other activities. Organised a one-day spiritual retreat for 40 young people and a children’s Christmas party. Each of Dahod’s 45 villages chose five needy children to attend the party.” In Dumaria, Banka district, eastern Bihar, “the ADP (Area Development Programme ) supports local churches by running leadership-training courses for pastors and church leaders.”

बताईए भला बच्चों कि सेवा मैं बाईबिल स्कूल कि क्या आवश्यकता? बाइबल क्विज क्यूँ ?

मयुरभंज (उडीसा) वर्ल्ड वीजन रिपोर्ट : “Opposition to Christian workers and organisations flares up occasionally in this area, generally from those with vested interests in tribal people remaining illiterate and powerless. World Vision supports local churches by organising leadership courses for pastors and church leaders.”


चूँकि वर्ल्ड वीजन  लगभग हर अखबार, वेब साईट, पत्रिका, चेनल को विज्ञापन देते हैं इसलिए कोई इसके खिलाफ मुह नहीं खोलता | ऐसी स्थिति मैं हमें इन मिसनारियों कि काली करतूतों का पता कैसे चले? मुझे तो एक ही एक ही उपाय दिखता है और वो है ब्लॉग और इन्टरनेट का | लेकिन कितने लोग इन्टरनेट पे कुछ देख पाते हैं, इसलिए अपने देश, संस्कृति से प्रेम करने वालों को क्रिश्चियन मिसनरी के खिलाफ युद्ध स्तर पे मोर्चा खोलना होगा तभी कुछ बात बनेगी | ब्लोगरों से ये अनुरोध है कि विभिन्न मिसनरी की करतूतों का भंडा फोड़ कीजिये|

Wednesday, November 4, 2009

क्या इस रात की कोई सुबह नहीं ?


सभी कहते है - जब तक जीवन है, तब तक संघर्ष है |
संघर्षों के बिना संभव है जीवन? नहीं !
सोना तप कर ही तो खरा होता है और निखरता है |


किन्तु क्या संघर्षों की कोई सीमा नहीं ?
क्या ये अनंत भी हो सकते हैं ?


कब तक अपने ही घर में हमारी हिंदी दुत्कारी जाती रहेगी ?
कब हम देंगे उसे वो सम्मान जिसका हरण अंग्रेजीदा लोगों ने कर रक्खा है ?


कब तक हम हिंदी को यूँ ही बेइज्जत होते देखते रहेंगे ?
आखिर कब तक हिंदी प्रेमी संघर्ष करते रहेंगे ?
क्या इस रात की कोई सुबह नहीं ?
क्या हिंदी के मरने पर ही संघर्ष समाप्त होंगे ?


ये कैसा घोर पाप कर बैठे, हिंदी मृत्यु की कल्पना !
क्या हम संघर्षों से डर गए हैं ?
क्या डरकर अपने पूर्वजों से आँख मिला पायेंगे ?
नहीं ... नहीं ... हम कायर नहीं कहलायेंगे,
हम तो व्यथित हैं आपने ही भाईयों द्वारा माँ के अपमान पर |


हम तो हिंदी की सेवा का संकल्प ले बैठे हैं,
और संकल्प तो अगले जन्म मैं भी साथ जायेगी |
शायद अगले जन्म मैं संघर्ष ना हो, पर सेवा और प्रेम तो रहेगी !




आईये एक और संकल्प लेते हैं - Hi, Hello की जगह नमस्ते, नमस्कार का प्रचलन बढाते है |


जय हिंदी, जय भारत !

Wednesday, October 28, 2009

क्या हुआ बेटा? ...पापा 'आपके साथ रहना चाहता हूँ'

डायरी, एक दिन के लिए ही सही, लिखना आसान नहीं| खासकर तब, जब की डायरी लिखने वाले का पहला प्रयास हो | अपने एक दिन के गलत-सही सभी कार्यों को लेखनी मैं कि कोशिश कर रहा हूँ, गलती के लिए पहले ही क्षमा मांग लेता हूँ |


दिनांक : २४-अक्तूबर-२००९
प्रातः अलार्म के पांच बार बजाने के बाद, बिस्तर से उतरने का मन बनाया | लेटे-लेटे ही अपनी हथेलियों को देख "कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमुले ..." मंत्र पढा, बच्चों का चेहरा देखा (मैं प्रातः सबसे पहले बच्चे का ही चेहरा देखता हूँ) | यहाँ तक तो सब कुछ सामान्य था पर एक चौकानेवाली बात हुई - आज मेरे बड़े लड़के 'अक्षत' ने पैर छू कर प्रणाम किया | मैंने समझा शायद मेरी धर्म पत्नी ने इसे ऐसा करने को कहा होगा, पर मैं गलत था | पूछा क्या हुआ बेटा? बालक का सरल सुलभ जवाब - पापा 'आपके साथ रहना चाहता हूँ मैं' , मैं आपको नहीं खोना चाहता और मुझसे लिपट गया .... | अक्षत के आज के व्यवहार मेरी समझ से परे था, शायद सुबह सुबह मुझको किसी स्वप्न मैं देखा होगा .. और तो मुझे कोई कारण नहीं समझ आती | ... अक्षत के आज के व्यवहार पे थोडा गहराई से सोचना आरम्भ किया तो पाया कि, मैं भी कई बार ऐसी अवस्था से गुजर चुका हूँ ... बहुत दिनों बाद अचानक किसी दिन सपने मैं परिवार-सम्बन्धियों को देखा और सुबह-सुबह जल्दी ऑफिस जाने की आपा-धापी के बीच भी उन्हें फ़ोन लगा कर कुशल--क्षेम पूछने लगता हूँ | अपने आप को कोसता भी हूँ, यही फ़ोन मैं २-४ दिनों पहले भी कर सकता था पर क्यूँ नहीं किया और सपने का ऐसा क्या प्रभाव जो हमारी संवेदनशीलता, भावनाओं को जगा देता है?  

ऑफिस का काम निपटा कर हिंदी ब्लॉग पढने लगा ... टिप्पणी द्बारा अपनी उपथिति भी दर्ज करवा दी - मैं आया था आप भी मेरे ब्ग्लोग पे आ के टीप्पणी देना :). कुछ अच्छे आलेख मिले तो जरुर पर थोडा ढूंढना पडा | सोचता हूँ सभी अच्छे और सार्थक आलेख एक जगह हो तो कितना अच्छा हो ? जब सार्थक आलेखों से मन हटाना हो तो सामान्य अग्ग्रीगेटर के सहारे ब्लॉग के समुद्र मैं फिर से डुबकी | सुना है ब्लोगप्रहरी सार्थक आलेखों को एक जगह लाने की तैयारी कर रहा है, ये तो समय ही बतापायेगा की वो कितने सफल हो पाते हैं |

खैर ... शाम होते ही एक मित्र के घर गया, जहाँ भजन कीर्तन और भगवद गीता का प्रवचन था | पहले तो ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों मैं शामिल होने मैं संकोच होता था, यहाँ आने से पहले कभी भजन कीर्तन नहीं किया था सो थोडी संकोच स्वाभाविक रहती थी | समय के साथ ये संकोच जाता रहा और खुशी-खुशी भजन कीर्तन का आनंद लिया | भजन कीर्तन इतना अच्छा था कि कुछ समय के लिए चिंता - तनाव गायब | श्री दानवीर गोस्वामी ( वास्तविक नाम : Dr. Dane Holtzmanm, जी हाँ गोरी चमड़ी वाले अमेरिकन, उनका पूर्ण परिचय यहाँ देखा जा सकता है http://www.rvc.edu/about_danavir_goswami.html ) के भगवद गीता प्रवचन ने ऐसा असर छोडा कि कुछ नौजवान लोग भी गीता के वास्तविक ज्ञान को लेकर उत्सुक दिखे | ...प्रसाद ग्रहण कर सोने से पहले फिर से एक बार ब्लॉग ... ब्लॉग कि लत ही ऐसी है .. छोडे छुटती नहीं |

जब आज कि डायरी लिखने बैठा तब अहसास हुआ कि आज का दिन सफल था या बर्बाद? कई अच्छी बातें डायरी के सहारे याद आई ... | आज की आपाधापी युक्त तनाव से भरे जीवन मैं शायद आज की डायरी अगले दिन को कुछ नए अच्छे अंदाज़ मैं जीने कि प्रेरणा दे | वैसे आज का दिन शायद अच्छा ही होता रहा ... कोशिश करूंगा कि एक बुरे दिन को चुन कर भी डायरी लिखी जाए .. देखते हैं | फिलहाल तो आप ये बताईए कि मेरी ये डायरी कैसी लगी ?