Tuesday, December 15, 2009

हिन्दू आक्रामक हो या नहीं ?


हिन्दुओं के लिए दिन-ब-दिन जब परिस्थितियाँ विपरीत होती जा रही हों तो क्या इस अवस्था मैं भी हमारा सहनशील (वास्तविक तौर पे कायर) बने रहना उचित है? मैं समझता हूँ की आज की अवस्था में यदि हिन्दू आक्रामक हो कर दुस्प्रचारियों से लड़े तभी कुछ सुधार आएगा | आज हिन्दुओं का आक्रमणशील होना क्यों जरुरी है, जरा निम्न बिन्दुओं पे गौर करें :

* पिद्दी सा देश पाकिस्तान हमारी नाक मैं दम किये रहता है, क्यूँ ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - आक्रामक पाकिस्तान |

* भारत - ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट मैच, किसके जितने की संभावना ज्यादा है ? शायद  ऑस्ट्रेलिया, क्यूँ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - आक्रामक खेल |

* छोटी सेना लेकर मुहम्मद गौरी ने शक्तिशाली पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया | ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - आक्रामक मुहम्मद गौरी |

* हिन्दुस्तान लीवर का साबुन या अन्य उत्पाद बाजार मैं अब तक टिका है पर टाटा का साबुन और अन्य प्रसाधन उत्पाद गायब क्यूँ ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण हिन्दुस्तान लीवर का - आक्रामकप्रचार और मार्केटिंग |

* भारत - चीन युद्ध, चीन से हमारी सर्मनाक हार, क्यूँ ?   ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - चीन का आक्रामक होना |

* विश्व के उच्चतम तकनीक से लैस पाकिस्तान और अमेरिकी सेना तालिबान को वर्षों की लम्बी लड़ाई के बाद भी ख़तम नहीं कर पाया है, क्यूँ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - तालेबान का आक्रामक होना है |

* मैक्रोसोफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टम से कहीं अच्छा एपल का ऑपरेटिंग सिस्टम है, फिर भी बाजार मैं मैक्रोसोफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टमकी ही धूम है, क्यूँ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - मैक्रोसोफ्ट का आक्रामक प्रचार और मार्केटिंग होना है |
......

ऐसे हजारों उदाहरण हैं | ऐसा भी नहीं है की आक्रामक हो जाने भर से ही जीत निश्चित हो जाती है, पर ये भी उतना ही सत्य है की आक्रामकता के अभाव मैं अंततः विजय दूर भागती तो है ही , साथ ही आक्रामक लोग प्रतिदिन सर का दर्द बने रहते हैं |

क्रिस्चन मिसनरी दिनों-दिन बेहद सुनियोजित रणनीती से हिन्दुओं को हूक्स & क्रूक्स के सहारे धर्म परिवर्तन करवा रही है | जाकिर नायक जैसे इस्लामी प्रचारक भी आये दिन हिन्दू धर्मग्रंथों का खुल्लम खुल्ला मजाक उड़ा रहे हैं | ब्लॉग जगत को ही लीजिये सलीम खान, मुहम्मद उमर खैरान्वी, अंजुमन, कासिफ आरिफ जैसे लुच्छे रोज हमारी धर्म ग्रंथों का मजाक उड़ा रहा है | कोई हिन्दू यदि ब्लॉग के जरिये ही सही उनके साजिशों का पर्दाफास करता है तो कई सम्माननीय हिन्दू ब्लॉगर शांति-शांति या उनको ignore कीजिये या आलेख को कीचड़/मैले मैं पत्थर कहकर साजिशों का पर्दाफास करने वालों को हतोत्साहित करते हैं | सम्माननीय ब्लॉगर की सुने तो मतलब यही निकलता है की यदि कोई गन्दगी फैला रहा है तो उसे फैलाने दो आप गन्दगी फैलाने वालों को कुछ मत कहो | महात्मा गाँधी ने भी कहा था की "पाकिस्तान उनकी लाश पे ही बनेगा" .. पाकिस्तान उनके जीते-जी बन गया गाँधी जी देखते रह गए | संतों की भाषा संत और सज्जन ही समझते हैं, दानवों से दानवों की भाषा मैं ही बात की जानी चाहिए | अलबेला खत्री जी ने कुछ दिनों पहले बहुत सही अपील की थी वही अपील दुहराता हूँ  "पत्थर उठाओ और गन्दगी फैलानेवालों के ऊपर चलाओ" |

वरिष्ट और सम्माननीय ब्लोग्गरों से नम्र निवेदन है की आप वरिष्ट हैं और आप जाकिर नायक, सलीम खान ......जैसे लोगों की साजिशों का पर्दाफास करने में उर्जावान लेखकों का मार्गदर्शन कीजिये, प्रोत्साहन दीजिये | मोर्चे पे जवान ही लड़ता है  अब उर्जावान ब्लॉगर (जवान) को यदि वरिष्ट ब्लॉगर (कर्नल, लेफ्टिनेंट ...) से प्रोत्साहन नहीं मिलेगा तो जवान लडेगा कैसे?

Tuesday, December 8, 2009

प्रश्न : बच्चे मंदिर क्यूँ जाएँ/जाते हैं ? (Why a child go to Temple?)


प्रश्न : बच्चे मंदिर क्यूँ जाएँ/जाते हैं ?
वैसे ये प्रश्न सरल दिखता है पर, उत्तर मैं सारी बातों  का समावेश करने मैं समय लग सकता है और कुछ ना कुछ छुट ही जाता है | संयोग से आज ही किसी ने मेल द्वारा ये प्रश्न और उत्तर भेजा है | पहले तो आप अपना उत्तर लिख लीजिये, फिर आगे पढ़के देखिये कि आपसे कुछ छुट तो नहीं गया था | मैं तो १ मिनट सोचता रहा कि एक बालक को इसका सरल उत्तर कैसे दूं .... 
?
?
क्योंकि मंदिर ही एक ऐसा स्थान है जहाँ  
 ?
 ?
 पूजा
भावना 
श्रद्घा 
आरती 
अर्चना 
अराधना 
शांति 
ज्योति
प्रिती
तृप्ति और अंततः मुक्ति/मोक्ष 


कि प्राप्ती होती है |

Thursday, November 19, 2009

इसे कहते हैं सरकारी पैसों का सदुपयोग !!!!!!

दैनिक अखबारों के ऑनलाइन संस्करण पढ़ रहा था और इसी क्रम मैं मुझे टाईम्स ऑफ़ इंडिया (दिल्ली संस्करण ) मैं 9 दैनिक हिन्दुस्तान मैं 5 विज्ञापन इंदिरा गांधी जी को उनके जन्म दिवस पे समर्पित देखे (इस तरह के विज्ञापन लगभग सभी अखबारों मैं देखने को मिला )  |  विज्ञापन का स्क्रीन शाट बिना किसी काट छांट के निचे दिया है अब आप ही बताईये की ये सरकारी पैसों का सदुपयोग है या दुरूपयोग? किसानों को उचित गन्ने मूल्य पाने के लिए धरना प्रदर्शन और ना जाने क्या क्या नहीं करना पडेगा ... फिर भी उन्हें उचित मूल्य मिल पायेगा या नहीं, पता नहीं पर इस तरह के विज्ञापनों के खर्चने के लिए सरकार के पास पैसों की कोई कमी नहीं?

तज्जुब तब और बढ़ जाता है जब लाल बहादुर शाष्त्री, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी .... आदि पूर्व प्रधानमंत्रियों के जन्म दिवस पे इस तरह के 9-10 पन्नों का विज्ञापन गायब रहता है

दैनिक हिन्दुस्तान मैं विज्ञापन

 











टाईम्स ऑफ़ इंडिया मैं विज्ञापन














Tuesday, November 17, 2009

हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन, हिन्दुओं के पैसे से .....


क्या आपने बिना जांच-पड़ताल के किसी संस्था को, जिसे आप जानते नहीं, को इन्टरनेट पे दान दिया है ? यदि हाँ, तो संभव है कि आपका पैसा क्रिश्चियन मिसनरी के पास गया हो और उन पैसे से धर्म परिवर्तन भी करवाया गया हो | मेरे एक मित्र ने वर्ल्ड वीजन को दान दे दिया होता यदि मैं समय पे पहुँच के उसे रोका ना होता | 'वर्ल्ड वीजन' (World Vision) एक ऐसी ही वैश्विक संस्था है जिसकी साखा  लगभग १०० देशों मैं फैली है | भारत में २५ राज्यों मैं इसके १६२ परियोजना निर्बाध गति से चल रही है |  'वर्ल्ड वीजन' (World Vision)  का विज्ञापन आपको अपने देश के प्रतिष्ठित अखबार ( एकोनिमिक टाईम्स, टाईम्स ऑफ़ इंडिया ....), समाचार चॅनल (CNN-IBN, NDTV) और इन्टरनेट पे आसानी से मिल जायेंगे | निचे के विज्ञापन चित्र मैंने इकनॉमिक टाईम्स से लिया है :



( लिंक http://adscontent2.indiatimes.com/photo.cms?photoID=5169038 )
| 'वर्ल्ड वीजन' का लोगो :



इनके प्रचार वाले लिंक पे क्लिक करके आप इन्हें मासिक, त्रेमासिक, या वार्षिक दान दे सकते हैं | donation वाले पेज या होम पेज से पता नहीं चलता कि ये क्रिश्चियन मिसनरी है, थोडा खंघालने पे ये मिला "We are christian" .."Motivated by our faith in Jesus Christ" (लिंक :   
http://www.worldvision.in/?Our+Core+Values) | और ये अपने बारे मैं इस प्रकार कहते हैं "वर्ल्ड विजन एक ईसाई मानवीय बच्चों के जीवन, परिवारों और गरीबी और अन्याय में रहने वाले समुदायों में स्थायी बदलाव बनाने के काम कर रहे संगठन है" |

थोडा खोज-बिन करने से एक बात तो साफ़ हो जाती है कि 'वर्ल्ड वीजन' एक क्रिश्चियन मिसनरी है जो जोर शोर से धर्म परिवर्तन कराती रही है | तहलका पत्राकार वी.के.शशिकुमार ने 'वर्ल्ड वीजन' की करतूतों का  वृस्तित रिपोर्ट "Preparing for the Harvest" (लिंक : http://www.tehelka.com/story_main.asp?filename=ts013004shashi.asp&id=1 ) लिखा | हालाँकि ये रिपोर्ट IBNLive (CNN-IBN) के लिए लिखा गया था पर आज-तक ये रिपोर्ट IBNLive पे प्रकाशित नहीं हुई | प्रकाशित होगी कैसे जब CNN-IBN में अमेरिकी चर्च "Southern Baptist Church" का भारी पैसा लगा हो ! सेकुलरों के प्रिय राजदीप सरदेसाई भी 'वर्ल्ड वीजन' को नियमित पैसा देते हैं | इस लिंक (वर्ल्ड वीजन' साईट) को क्लिक करके खुद ही देख लीजिये, राजदीप 'वर्ल्ड वीजन' के बारे मैं क्या कहते हैं :  

'वर्ल्ड वीजन' के भारतीय प्रकाशनों  या वेबसाइट पे धर्म परिवर्तन वाली बात को छुपा दिया जाता है पर विदेशी प्रकाशनों मैं भारत मैं इनके द्वारा किये जा रहे धर्म परिवर्तन कि प्रशंशा कि जाती है | September 2009 World Vision New Zealand’s report : “Held a vacation Bible school for 150 children from different villages. The children participated in games, Bible quizzes, drama and other activities. Organised a one-day spiritual retreat for 40 young people and a children’s Christmas party. Each of Dahod’s 45 villages chose five needy children to attend the party.” In Dumaria, Banka district, eastern Bihar, “the ADP (Area Development Programme ) supports local churches by running leadership-training courses for pastors and church leaders.”

बताईए भला बच्चों कि सेवा मैं बाईबिल स्कूल कि क्या आवश्यकता? बाइबल क्विज क्यूँ ?

मयुरभंज (उडीसा) वर्ल्ड वीजन रिपोर्ट : “Opposition to Christian workers and organisations flares up occasionally in this area, generally from those with vested interests in tribal people remaining illiterate and powerless. World Vision supports local churches by organising leadership courses for pastors and church leaders.”


चूँकि वर्ल्ड वीजन  लगभग हर अखबार, वेब साईट, पत्रिका, चेनल को विज्ञापन देते हैं इसलिए कोई इसके खिलाफ मुह नहीं खोलता | ऐसी स्थिति मैं हमें इन मिसनारियों कि काली करतूतों का पता कैसे चले? मुझे तो एक ही एक ही उपाय दिखता है और वो है ब्लॉग और इन्टरनेट का | लेकिन कितने लोग इन्टरनेट पे कुछ देख पाते हैं, इसलिए अपने देश, संस्कृति से प्रेम करने वालों को क्रिश्चियन मिसनरी के खिलाफ युद्ध स्तर पे मोर्चा खोलना होगा तभी कुछ बात बनेगी | ब्लोगरों से ये अनुरोध है कि विभिन्न मिसनरी की करतूतों का भंडा फोड़ कीजिये|

Wednesday, November 4, 2009

क्या इस रात की कोई सुबह नहीं ?


सभी कहते है - जब तक जीवन है, तब तक संघर्ष है |
संघर्षों के बिना संभव है जीवन? नहीं !
सोना तप कर ही तो खरा होता है और निखरता है |


किन्तु क्या संघर्षों की कोई सीमा नहीं ?
क्या ये अनंत भी हो सकते हैं ?


कब तक अपने ही घर में हमारी हिंदी दुत्कारी जाती रहेगी ?
कब हम देंगे उसे वो सम्मान जिसका हरण अंग्रेजीदा लोगों ने कर रक्खा है ?


कब तक हम हिंदी को यूँ ही बेइज्जत होते देखते रहेंगे ?
आखिर कब तक हिंदी प्रेमी संघर्ष करते रहेंगे ?
क्या इस रात की कोई सुबह नहीं ?
क्या हिंदी के मरने पर ही संघर्ष समाप्त होंगे ?


ये कैसा घोर पाप कर बैठे, हिंदी मृत्यु की कल्पना !
क्या हम संघर्षों से डर गए हैं ?
क्या डरकर अपने पूर्वजों से आँख मिला पायेंगे ?
नहीं ... नहीं ... हम कायर नहीं कहलायेंगे,
हम तो व्यथित हैं आपने ही भाईयों द्वारा माँ के अपमान पर |


हम तो हिंदी की सेवा का संकल्प ले बैठे हैं,
और संकल्प तो अगले जन्म मैं भी साथ जायेगी |
शायद अगले जन्म मैं संघर्ष ना हो, पर सेवा और प्रेम तो रहेगी !




आईये एक और संकल्प लेते हैं - Hi, Hello की जगह नमस्ते, नमस्कार का प्रचलन बढाते है |


जय हिंदी, जय भारत !

Wednesday, October 28, 2009

क्या हुआ बेटा? ...पापा 'आपके साथ रहना चाहता हूँ'

डायरी, एक दिन के लिए ही सही, लिखना आसान नहीं| खासकर तब, जब की डायरी लिखने वाले का पहला प्रयास हो | अपने एक दिन के गलत-सही सभी कार्यों को लेखनी मैं कि कोशिश कर रहा हूँ, गलती के लिए पहले ही क्षमा मांग लेता हूँ |


दिनांक : २४-अक्तूबर-२००९
प्रातः अलार्म के पांच बार बजाने के बाद, बिस्तर से उतरने का मन बनाया | लेटे-लेटे ही अपनी हथेलियों को देख "कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमुले ..." मंत्र पढा, बच्चों का चेहरा देखा (मैं प्रातः सबसे पहले बच्चे का ही चेहरा देखता हूँ) | यहाँ तक तो सब कुछ सामान्य था पर एक चौकानेवाली बात हुई - आज मेरे बड़े लड़के 'अक्षत' ने पैर छू कर प्रणाम किया | मैंने समझा शायद मेरी धर्म पत्नी ने इसे ऐसा करने को कहा होगा, पर मैं गलत था | पूछा क्या हुआ बेटा? बालक का सरल सुलभ जवाब - पापा 'आपके साथ रहना चाहता हूँ मैं' , मैं आपको नहीं खोना चाहता और मुझसे लिपट गया .... | अक्षत के आज के व्यवहार मेरी समझ से परे था, शायद सुबह सुबह मुझको किसी स्वप्न मैं देखा होगा .. और तो मुझे कोई कारण नहीं समझ आती | ... अक्षत के आज के व्यवहार पे थोडा गहराई से सोचना आरम्भ किया तो पाया कि, मैं भी कई बार ऐसी अवस्था से गुजर चुका हूँ ... बहुत दिनों बाद अचानक किसी दिन सपने मैं परिवार-सम्बन्धियों को देखा और सुबह-सुबह जल्दी ऑफिस जाने की आपा-धापी के बीच भी उन्हें फ़ोन लगा कर कुशल--क्षेम पूछने लगता हूँ | अपने आप को कोसता भी हूँ, यही फ़ोन मैं २-४ दिनों पहले भी कर सकता था पर क्यूँ नहीं किया और सपने का ऐसा क्या प्रभाव जो हमारी संवेदनशीलता, भावनाओं को जगा देता है?  

ऑफिस का काम निपटा कर हिंदी ब्लॉग पढने लगा ... टिप्पणी द्बारा अपनी उपथिति भी दर्ज करवा दी - मैं आया था आप भी मेरे ब्ग्लोग पे आ के टीप्पणी देना :). कुछ अच्छे आलेख मिले तो जरुर पर थोडा ढूंढना पडा | सोचता हूँ सभी अच्छे और सार्थक आलेख एक जगह हो तो कितना अच्छा हो ? जब सार्थक आलेखों से मन हटाना हो तो सामान्य अग्ग्रीगेटर के सहारे ब्लॉग के समुद्र मैं फिर से डुबकी | सुना है ब्लोगप्रहरी सार्थक आलेखों को एक जगह लाने की तैयारी कर रहा है, ये तो समय ही बतापायेगा की वो कितने सफल हो पाते हैं |

खैर ... शाम होते ही एक मित्र के घर गया, जहाँ भजन कीर्तन और भगवद गीता का प्रवचन था | पहले तो ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों मैं शामिल होने मैं संकोच होता था, यहाँ आने से पहले कभी भजन कीर्तन नहीं किया था सो थोडी संकोच स्वाभाविक रहती थी | समय के साथ ये संकोच जाता रहा और खुशी-खुशी भजन कीर्तन का आनंद लिया | भजन कीर्तन इतना अच्छा था कि कुछ समय के लिए चिंता - तनाव गायब | श्री दानवीर गोस्वामी ( वास्तविक नाम : Dr. Dane Holtzmanm, जी हाँ गोरी चमड़ी वाले अमेरिकन, उनका पूर्ण परिचय यहाँ देखा जा सकता है http://www.rvc.edu/about_danavir_goswami.html ) के भगवद गीता प्रवचन ने ऐसा असर छोडा कि कुछ नौजवान लोग भी गीता के वास्तविक ज्ञान को लेकर उत्सुक दिखे | ...प्रसाद ग्रहण कर सोने से पहले फिर से एक बार ब्लॉग ... ब्लॉग कि लत ही ऐसी है .. छोडे छुटती नहीं |

जब आज कि डायरी लिखने बैठा तब अहसास हुआ कि आज का दिन सफल था या बर्बाद? कई अच्छी बातें डायरी के सहारे याद आई ... | आज की आपाधापी युक्त तनाव से भरे जीवन मैं शायद आज की डायरी अगले दिन को कुछ नए अच्छे अंदाज़ मैं जीने कि प्रेरणा दे | वैसे आज का दिन शायद अच्छा ही होता रहा ... कोशिश करूंगा कि एक बुरे दिन को चुन कर भी डायरी लिखी जाए .. देखते हैं | फिलहाल तो आप ये बताईए कि मेरी ये डायरी कैसी लगी ?

Tuesday, October 20, 2009

धार्मिक स्थलों मैं फोटो खींचने की मनाही क्यूँ जायज है

राजकुमार जी ने आपने पोस्ट मैं मंदिर मैं फोटो खींचने की मनाही को गलत ठहराते हैं | उनकी पूरी पोस्ट यहाँ पढ़ी जा सकती है मंदिरों में फोटो खींचना क्यों मना है?  

उन्होने फोटो खींचने की मनाही को धार्मिक स्थलों के व्यापारिकरन से जोड़ा है | कुछ हद तक उनकी बात भी सही है और मेरा भी मानना है की धार्मिक स्थलों के व्यापारिकरन का विरोध होना ही चाहिए, पर गलत तरीके से फोटो खींचने के प्रचालन को बढावा देकर नहीं |  

जिस किसी भी मंदिर मैं फोटो खींचने की कोई मनाही नहीं रहती है, वहां अक्सर लोगों का नंगापन देखने को मिलता है | लगभग ९०% लोग अपना नितंभ (अपना पिछवाडा) भगवान की मूर्ति की तरफ करके ही फोटो खिंचवाते हैं | फोटो खिंचवाने वाला बड़ा और भगवान् पीछे छोटे | फोटो भगवन की मूर्ति के आगे बैठ कर या मूर्ति के बगल मैं खड़े रह कर भी खिंचवाई जा सकती है | पर ऐसा कोई करता नहीं, क्योंकि हर आदमी को भगवान् के फोटो से ज्यादा अपना फोटो बड़ा दिखाना है |  

भले ही गिने-चुने समझदार लोग सिर्फ भगवान् का फोटो खींचते हो और इसपे कोई मना करे तो बुरा जरुर लगेगा ... पर जरा दुसरे दृष्टिकोण से भी सोचें की मंदिर प्रशासन कितने लोगों को ये समझता फिरे की किस तरह की फोटो allowed होगी और किस तरह की नहीं ?  

एक दूसरा बड़ा कारण ये भी है की आम भारतीय किसी पर्यटन स्थल या अन्य जगहों का वास्तविक आनंद ना लेकर फोटो खींचने मैं ही मशगुल रहते हैं | खैर लोग फोटो खींचे या कुछ और करें ये तो उनका व्यक्तिगत मामला है | पर मंदिर जाने का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए इश्वर से सन्निकटता | इस सन्निकटता मैं मोबाइल फ़ोन या कैमरे की क्या आवश्यकता?  

आये दिन ये देखने को मिलता है की मंदिर मैं भी पूजा के समय भी मोबाइल फ़ोन पे लोग बात करते रहते हैं, इससे अन्य भक्तों को असुविधा होती है | क्या मंदिर मैं २०-१५ मिनट के लिए मोबाइल फ़ोन बंद नहीं रखा जा सकता ? यही कहानी कामो बेश कैमरे पे भी लागू होती है | भगवान् - भक्ति, पूजा पाठ छोड़ कर ज्यादातर लोग फोटो खींचने मैं ही मशगुल हो जाते हैं |

Wednesday, October 14, 2009

कामसूत्र विवेचन : आम धारणाओं से अलग

आम तौर पे कामसूत्र को सिर्फ़ काम और यौन क्रियाओं का पुस्तक माना जाता है | ये सत्य है कि काम क्रियाओं का विस्तार वर्णन है इस ग्रन्थ में, पर धर्म, अर्थ और मोक्ष पर भी चर्चा रोचक और सुन्दर है | आम धारणा (काम क्रियाओं) से हट कर महर्षि वात्सयायन रचित कामसूत्र को देखने का प्रयास है ये पोस्ट | कामसूत्र की कुछ मुख्य बातें बिन्दुवार रुप मैं इस प्रकार रखा है :  

• भारतीय सभ्यता की आधारशिला चतुर्वर्गिय – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है | मनुष्य की समस्त अभिलाषाएँ इन्हीं चारों के अन्तर्गत रहती हैं| इसमें मोक्ष अन्तिम लक्ष्य है | मनुष्य के शरीर के पोषन और संवर्धन के लिए अर्थ की; मन तुष्टि के लिए काम की; बुद्धि के लिये धर्म की और आत्मा के लिए मोक्ष की आवश्यकता पङती है | ये आवश्यकताएं अनिवार्य हैं, अपरिहार्य हैं | क्योंकि बिन भोजन-वस्त्र के शरीर कृश निष्क्रिय बन जाता है | काम बिना स्त्री का मन कुण्ठित – निकम्मा बन जाता है | बिना धर्म (सत्य, न्याय) के बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है | और बिन मोक्ष के आत्मा पतित बन जाता है |  

बिना शरीर के मोक्ष साधना नहीं हो सकती और मोक्ष साधना के बिना अर्थ, काम को सहयोग नहीं मिल सकता | इसलिए मोक्ष की सच्ची कामना रखकर ही अर्थ और काम का उपभोग करना चाहिए | बिना मोक्ष कामना के अर्थ और काम का उपभोग स्वार्थी और कामी लोग ही करते हैं | ऐसे लोगों को समाज, राष्ट्र का शत्रु बताया गया है | ये तो प्रकट ही है की जहां स्वार्थ और कामलोलुपता बढ जाती है, वहीं समाज और राष्ट का पतन हो जाता है |  

• महर्षि वात्सयायन कहते हैं, अर्थ सिद्धि के लिये तरह-तरह के उपाय करने पडते हैं इसलिये उन उपायों को बतानेवाले अर्थशास्त्र की आवश्यकता पडती है | सम्भोग के पराधीन होने के कारण स्त्री और पुरुष को उस पराधीनता से बचने के लिये कामशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता पड़ती है | महर्षि वात्सयायन ने कामसूत्र में मुख्यतया धर्म, अर्थ और काम की व्याख्या की है |  

• कामशास्त्र से ही ये जाना जाता है की संभोग का सर्वोत्तम और आध्यात्मिक उद्देश्य है – पति-पत्नी की आध्यात्मिकता, मनव प्रेम और परोपकार तथा उदात्त भावनाओं का विकास| हिंदू सभ्यता की बुनियाद वेद की शिक्षा ही है | संसार से उतना ही अर्थ और काम लिया जाय जिससे मोक्ष को सहायता मिले | मुमुक्षु को उतने ही भोग्य पदार्थ को लेना चाहिए जितने के ग्रहण करने से किसी प्राणी को कष्ट ना पहुंचे |  

• काम का प्रमुख भाग आकर्षण है अथवा आकर्षण का प्रमुख अंग काम है | यही आकर्षण जब बड़ों के प्रति होता है तो ये श्रद्धा, भक्ति आदि पुनीत भावों मैं दिखाई पड़ता है; यही आकर्षण बराबर वालों के प्रति मित्रता, प्रेम और सखाभाव के रुप मैं परिणत होता है | यही अपनों से छोटों के प्रति दया, अनुकम्पा के रुप मैं प्रकट होता है | वही काम, माता के स्तनों मैं वात्सल्य के रुप मैं, प्रेमी का आलिंगन करते समय कामरुप में और वही काम दिन-दुखियों के प्रति करुणा कृपा के रुप में अवतरित होता है |  

• सूर्य अपनी शक्ति से पृथ्वी का रस ग्रहण करता है और चन्द्रमा धरती पर सुधावर्षण करता है | सौरतत्व स्त्री का रज चन्द्रतत्व मय पुरुष के वीर्य को खींच कर अपने अन्दर धारण करता है | यही स्त्री - पुरुष के परस्पर आकर्षण का मुख्य कारण है |

Wednesday, October 7, 2009

सावधान : शंकराचार्य की अपील - कुरान बांटों और इस्लाम कबुल करो !!!

मैं बकवास कर रहा हूँ, ऐसा सोचने से पहले कृपया कर आप ये यू ट्यूब विडियो देख लीजिए : 

 

अब तो विश्वास हुआ? जब मुझ पर विश्वास हुआ है तो पुरी पोस्ट पढ ही लीजिये | इस विडियो को लगभग २ लाख २० हज़ार बार देखा गया है | और मेरा अनुमान है की कम से कम ४-५% हिन्दुओं ने (मुस्लिम तो शायद ७०%) इसे सच ही माना होगा | डॉ. जाकिर नायक जैसे लोग इन्ही ४-५% लोगों को इस्लाम काबुल करवाने का टारगेट बनाते हैं | जब ८-१० हज़ार लोग जो ये इस प्रकार के विडियो को सच मान लेते हैं, उसमे से कम से हज़ार दो हज़ार तो इस्लाम काबुल कर ही लेते होंगे | यही तो डॉ. जाकिर और उनके चेलों का उद्देश्य है |


जब हमारे शंकराचार्य ही कुरान का प्रचार कर रहे हैं तो हम भी कुरान की सरण में चलें, क्यों? चलिए लगे हाथों ये भी बता दूँ कि ये शंकराचार्य नकली हैं | ये विडियो भी देख ही लीजिए: 






हिन्दुओं के साथ ये धोखा किया है (और आगे भी करते रहेंगें), इस्लाम के जानेमाने विद्वान ज़ाकिर नायक ने | ज़ाकिर नायक या नकली बाबा ने ये नहीं बताया की किस मठ के शंकराचार्य हैं ये? वैसे ढेर सारे लोगों ने भी जाकिर नायक को खुली चुनौती दी है की बताएं ये ढोंगी किस मठ के शंकराचार्य हैं और जिसका जवाब आज तक ज़ाकिर साहब ने नहीं दिया है | ज़ाकिर साहब जवाब देने से हिचकिचा रहे हैं, चलिए मैं ही बता देता हूँ | ये गेरुआ वस्त्र पहना ढोंगी कोई और नहीं बल्कि ज़ाकिर नायक के मदरसे के शंकराचार्य हैं | मदरसे भी अब शंकराचार्य बनाने लगे हैं, ज़ाकिर नायक ने मदरसे मैं क्रांति ला दी है | इस क्रांति पे आप कुछ कहना चाहेंगे?  

As usual our secular brothers will call me wrong or keep quiet. Oh, I fogot seculars may also say Fake Sankaracharyaa is right.  

नोट: अंग्रेजी मैं लिखने के लिए क्षमा चाहूँगा, क्या करूँ सेकुलर ज्यादातर विदेशी भाषा प्रिय है तो उन्हें अंग्रेजी ज्यादा अच्छी समझ मैं आएगी | 

क्षमा चाहूँगा यदि किसी बंधू ने इस विषय पे पहले ही पोस्ट की हो | पर मुझे लगता है कि हर महीने - दो महीने मैं इसपे एक आलेख आना चाहिए | 

Sunday, October 4, 2009

हमास प्रायोजित शादी, क्या ऐसा होता है?

तस्वीरों को देख अनुमान लगाईये, इन मासूम बच्चियों का हाथ किसने पकड़ रक्खा है ? शायद बाप, चाचा, बड़ा भाई, या कोई और सम्बन्धी ही होगा ..., नहीं ... ये रिश्ता कोई और है | १० वर्षों से भी कम उम्र कि लड़कियों का हाथ पकडे कोई और नहीं बल्कि उसका दुल्हा है, जी हाँ | क्या अब भी तस्वीरें खुबसूरत लग रही हैं?




ये सारी तस्वीरें गाजा मैं उस हमास (Islamic Resistance Movement) प्रायोजित विवाह समारोह से ली गई हैं जिसमे ४५० जोडों की शादी कराई गई (अगस्त २००९) | हमास नेता महमूद जहार ने खुद ही दूल्हा-दुल्हन जोड़ी को बधाई दी | हमास की तरफ से हर दुल्हे को $500 (५०० डालर) और दुल्हन को white gown भेंट किया गया |

हमास नेता इब्राहिम सलाफ के मुताबिक - "हमास की तरफ से ये शादी का उपहार उन वीर जवानों के लिए है जो इस्राईल के खिलाफ युद्ध मैं बहादुरी से लड़े हैं" |  

यू ट्यूब विडियो लिंक : http://www.youtube.com/watch?v=RYmtaXQHEtw  

International Center for Research on Women का अनुमान है की लगभग ५ करोड़ child brides दुनिया के सभी देशों मैं हैं, जिसमे ज्यादातर देश इस्लामिक देश ही हैं | 

नोट : क्या इस तरह की खबरों को ब्लॉग का विषय बनाया जाना चाहिए? ये प्रश्न तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब ये देखता हूँ की आज की मीडिया मैं इसे खबर नहीं के बराबर आती हैं | आपकी राय महत्वपूर्ण है |

Wednesday, September 30, 2009

ब्लोगवाणी पे आरोप लगाने वालों के लिए प्रश्न


किसी पे आरोप लगाने से पहले पूरी पड़ताल कर लेनी चाहिए | मुझे लगता है कि जिस ब्लॉग के पोस्ट पर ब्लोगवानी बंद कि गई थी वो आलेख पूरी पड़ताल के बिना ही लिखी गई है | इसे समझाने के लिए ब्लोग्वानी प्रकरण से हट कर कुछ उदाहरण दे रहा हूँ :

* पिछले वर्ष गूगल से checkout करने पर $10 का discount मिलता था (one time only). मैंने अपने account से एक के बजाय २-3 transactions किया और सभी successful रहे और टोटल $30 का discount मुझे मिला, जबकि गूगल साफ़ कहता था ONLY ONE DISCOUNT WILL BE GIVEN (per a/c) | लगभग उसी समय मेरे साथी ने पहली बार google checkout try किया और उन्हें कोई discount नहीं मिला | और ऐसा कईयों के साथ हुआ था |  

अब आरोप लगाने वालों के हिसाब से सोचे तो google मेरे पे मेहरबान और मेरी साथी पे दुश्मनी उतार रहा था, आप क्या कहेंगे इसपे ?  

* और एक उदहारण देता हूँ इसी वर्ष microsoft - ebay cashback मैं कईयों को आसानी से discount मिला तो किसी का valid transaction होने के बावजूद कोई कैश बेक नहीं |  

क्या कहें की माइक्रोसॉफ्ट कुछ लोगों से दुश्मनी निकाल रहा है?  

* मेरे ब्लॉग पे कोई भी टिप्पणी आती है तो मुझे इ-मेल आती थी, अभी कुछ दिनों से किसी टिप्पणी पे इ-मेल आती है किसी पे नहीं |

क्या कहें google मुझसे पक्षपात कर रहा है?

आरोप लगाने वालें ने ये भी लिखा है कि किसी खास विचारधारा वालों की पसंद बढती रहती है | मैंने तो सलीम भाई के पोस्ट पे पसंद ज्यादातर ऊँची ही देखि है, हालाँकि कमेन्ट गिने चुने (२-४) होते हैं पर पसंद मैं आगे रहते हैं | कंप्यूटर का जानकार ये समझ सकता है कि पसंद कैसे उंचा रखा जा सकता है | यहाँ तो मुझे ये समझ मैं नहीं आया कि सलीम भाई कि बात कर रहे हैं या किसी और की, खुल के बताया तो नहीं है |

मेरी राय मैं कोई भी प्रोग्राम १००% परफेक्ट नहीं होता, खासकर web based प्रोग्राम तो नहीं ही | कई बार cookies, trojans, proxy, DHCP.... आदि से ऐसा कमाल और गोल-माल होता है की क्या बताऊँ | वैसे गूगल मैं सर्च करके भी थोडी बहुत जानकारी इसपे हासिल कर सकते हैं | ब्लोग्वानी पे जो आरोप उन्होंने लगाया है उसपे एक software programmer हंसेगा ही | हाँ आरोप लगानेवालों ने यदि ब्लोग्वानी के सारे सिक्यूरिटी पॉलिसी और प्रोग्राम को चेक करवाने के बाद ये सब आरोप लगाये होते तो मैं या एक सॉफ्टवेर का जानकार आरोप लगानेवाले का समर्थन कर सकता था | पर ऐसा तो उन्होंने किया ही नहीं, तो उनके आरोप की मिथ्या क्यों ना कहा जाए ?

और भी कई चीजें हैं जिसका उल्लेख नहीं किया है | आशा है पठाक और आरोप लगाने वाले मेरे विचार को अन्यथा नहीं लेंगे ... मैंने वही लिखा है जो सच है ... ब्लोग्वानी से मेरा कोई दूर-दूर तक का रिश्ता नाता नहीं है (सिवाय ब्लॉग लेखन के) | मेरा पिछ्ला पोस्ट देख सकते हैं, मैंने ब्लोग्वानी के बदलाव पे भी कई शंकाएँ जताई है |

वैसे भी हम भारतीय लोग किसी अच्छा काम करनेवालों की टांग खिचाई करने मैं पीछे नहीं रहते !

Tuesday, September 29, 2009

ब्लोगवाणी का बदलाव - कई गलत चीजों को जन्म देने वाला है !

सबसे पहले ब्लोग्वानी प्रारंभ करने के लिए धन्यवाद और अपना आभार प्रकट करता हूँ ! इसके साथ साथ ब्लोग्वानी मैं जो बदलाव की बात की है उसपे चर्चा होनी ही चाहिए | और मुझे लगता है कहीं ऐसा ना हो की बदलाव गलत चीजों को जन्म दे दे. मैंने अपनी शंका निचे के शब्दों मैं रही है, शायद कई अन्य लोगों की शंका भी ऐसी ही हो  

BLOGVANI 1. ब्लागवाणी के प्रयोक्ता ही यह फैसला करेंगे कि कौन सा ब्लाग जोड़ना है और कौन सा छोड़ना.  
मेरी शंका : यहाँ पर शायद आप वोटिंग सिस्टम की बात कर रहे हैं | वोटिंग सिस्टम यहाँ फुल प्रूफ़ होना चाहिए | यहाँ ऐसा भी हो सकता है की वोट की संख्या के आधार पे कई बेहतरीन आलेख ब्लोग्वानी से जुड़ ही नहीं पाए | और आप तो शायद जानते ही हैं की हिंदी ब्लॉग्गिंग मैं किसी गंभीर विषय पे कितना भी अच्छा आलेख क्यों नहीं आया हो, टिप्पणी बहुत कम आते हैं| लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं ही होना चाहिए की गंभीर चर्चा वाले आलेख प्रकाशित (पोस्ट) ही ना हो?|  

BLOGVANI 2. सिर्फ ब्लागवाणी के सदस्य ही पसंद कर सकेंगे और यह सब देख सकेंगे कि पसंद किसने की थी ताकी .... हां यह जरूर है कि अब पसन्द/नापसन्द के साथ अनोनिमिटी नहीं रहेगी. यह शायद एक जरूरी पैनल्टी है.  
मेरी शंका : ब्लोग्वानी पे आने वाले हर कोई registered user नहीं होता और हो भी नहीं सकता | मैंने कुछ ऐसे भी लोग देखे हैं जो सीधे ब्लोग्वानी पे आकर लेख पढ़ कर चलते बनते हैं, वो कोई टिप्पणी भी नहीं करते | अब यदि एक पाठक (ब्लॉग लेखक नहीं) को आलेख अच्छा लगा तो वो अपनी पसंद ब्लोग्वानी पे दर्ज नहीं कर सकता |  

BLOGVANI 3. पसंद के साथ ही नापसंद भी लाया जायेगा जिसका प्रयोग भी सिर्फ ब्लागवाणी के सदस्य कर सकेंगे |  
मेरी शंका : हम भारतीय positive बातों के लिए एक जुट नहीं होते पर negative बातें हमें तुंरत एक जुट कर देती हैं | और यदि आपने नापसंद को जोड़ा तो एक ग्रुप बनाकर किसी के आलेख के वास्तविक पसंद को निचे ले आयेंगे | विश्वास कीजिये ये होगा ही | मैं सॉफ्टवेर industry मैं हूँ और पिछले १२ वर्षों से अलग अलग सिस्टम पे काम कर चुका हूँ | कई बड़ी बड़ी कंपनियों के प्रोजेक्ट्स पे काम किया हूँ अभी भी एक बड़ी कंपनी का प्रोजेक्ट्स ही देख रहा हूँ | कोई भी सॉफ्टवेर या प्रोग्राम १००% perfect नहीं हो सकता (including NASA, pentagon, Sony, Nintendo etc....). हेकर्स जब पेंटागन, सोनी, Nintendo और ना जाने कितने के चिप डिजाईन सिक्यूरिटी तक को समय समय पे धता बताते रहते हैं | इस हिसाब से क्या आपको लगता है की नापसंद का गलत उपयोग नहीं किया जायेगा ?  

आये दिन हिंदी ब्लॉग मैं व्यक्तिगत विवाद चलता रहता है और दो ग्रुप बन जाता है | उदाहरण देखिये - संगीता पूरी team vs प्रवीन जाखड team | अब इस अवस्था मैं एक ग्रुप वाले दुसरे ग्रुप वाले के आलेखों को नापसंद ही करेंगे |  

समय समय पर किसी भी सिस्टम मैं आवश्यक सुधार और बदलाव होना ही चाहिए, ब्लोग्वानी मैं भी ऐसा ही होना चाहिए | पर बदलाव से पहले उसके सारे positives & negatives पे अच्छी तरह चर्चा जरुर होनी चाहिए | किसी के आलोचना भर से ही डरकर या उन्हें कुछ दिखाने के लिए बदलाव को वास्तविक बदलाव नहीं बल्कि एक emotional भूल ही कही जायेगी | और ब्लोग्वानी के बदलाव का आधार ही इमोशनल दिख रहा है | 

परिवर्तन करना ही है तो पहले मन शांत कर लें, फिर लगभग एक-दो महीने बाद नए सिरे से सोचें की ब्लोग्वानी और हिंदी ब्लॉग्गिंग के भविष्य के लिए क्या बदलाव आवश्यक हैं | अभी तो मन अशांत ही दिख रहा है, और इस अशांत वातावरण मैं शुभ कार्यों का श्रीगणेश उचित नहीं लगता | आशा है ब्लोग्वानी की टीम इस दिशा मैं ध्यान देगी और समय रहते उचित फैसला करेगी | धन्यवाद !

Sunday, September 27, 2009

माँ : बेटा लड्डू खा लो ...


माँ : बेटा लड्डू खा लो ...

माँ : बेटा राजीव ये लड्डू खा लो, हनुमान जी का प्रसाद है |

राजीव : माँ मैंने कितनी बात तुम्हें कहा है कि मुझे मीठा बिलकुल पसंद नहीं, फिर क्यों मुझे बार-बार लड्डू खाने को कहती हो ?

माँ : ये तो भगवान का प्रसाद है बेटा | पूरा लड्डू ना सही आधा या एक टुकडा ही खा लो |

राजीव : नहीं मीठा खा ही नहीं सकता | इसे किसी और को खिला देना या phir भिखारी को दे देना |
........
........
कुछ दिनों पश्चात राजीव अपनी पत्नी और पुत्र रोकी के साथ एक बर्थ डे पार्टी मैं ...  

यार राजीव today's cake is great, तुम नहीं खाओगे क्या? राजीव : जरुर, अभी खाता हूँ ..... this is really good. Can I have some more?.....  

अब राजीव का बेटा मनीष अपने पिता से पूछ बैठता है | पापा आपने तो दादी जी को कहा की आपको मीठा बिलकुल पसंद नहीं | फिर ढेर सारा केक कैसे खा गए ? 

राजीव : बेटा ... यदि मैं केक ना खाता तो उन्हें बुरा लग जाता इसलिए केक खा लिया ....

Thursday, September 24, 2009

केहुनी-मिलन (elbow shake) - Swine flu से बचने का तरिका ?


बच्चे के रूटीन चेकउप के लिए आज डॉक्टर के पास गया | डॉक्टर ने हाथ मिलाने (hand shake) के बजाय अपनी केहुनी (elbow) आगे बढा दी | एक क्षण को अवाक रह गया की डॉक्टर साहब ये क्या कर रहे हैं, कहीं मुझसे कोई पुराना हिसाब-किताब तो चुकता करने के मुड मैं तो नहीं आ गए? मुझको अवाक देख उन्होंने कहा - give me your elbow. मैंने संकोच करते-करते शिष्टाचारवस ही सही अपना केहुनी (elbow) उनकी केहुनी से सटा तो दी | पर मन मैं एक नई आशंका ने जन्म ले लिया ...कहीं ये इलू-इलू वाला तो नहीं... क्या मैं ऐसा दिखता हूँ कि एक पुरुष डॉ. मुझसे ... छि-छि ... | हिम्मत कर, डॉ. साहब से पूछ ही लिया ये elbow-elbow क्या था, ...? बड़े प्रेम से उस अमेरिकन डॉ. ने elbow-elbow का अर्थ इस प्रकार समझाया :

* It is the newly suggested and advisable way of greeting people rather than handshakes. (हाथ मिलाने की अपेक्षा ये लोगों का सत्कार करने का एक नया और सुझावित तरिका है ) * Swine flu और अन्य कई संक्रामक बिमारी से बचने का एक कारगर/सुरक्षित तरीके के रूप मैं इसका इस्तेमाल अमेरिका, यूरोप .. आदि देशों मैं किया जाने लगा है |                                तो भाई अब यदि भारत मैं कोई आपसे केहुनी-मिलन (elbow shake) करना चाहे तो चौकियेगा नहीं | क्या पता भारत मैं भी केहुनी मिलन का प्रचलन आरम्भ हो गया हो और हमें पता ही नहीं ! वैसे भी अपन देशी लोग तो आँख मुंद कर कॉपी करने मैं माहिर हैं | चेतावनी : भूल से भी अपनी केहुनी किसी आर्जेन्टिना वालों से नहीं मिलाना, लेने के देने पड़ सकते हैं | हाँ यदि आपका विचार आर्जेन्टिना वाले की बेटी से शादी करने का है तो केहुनी से केहुनी जरुर मिला सकते हैं | वैसे हमारे पास केहुनी मिलन या हाथ मिलाने का एक सुन्दर और अजमाया हुआ विकल्प है - अपने दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम, नमस्कार या नमस्ते कहने का | कुछ अमेरिकन अब लोगों का अभिवादन नमस्ते की मुद्रा मैं भी कर रहे हैं |


पर imported thought (आयातित विचार) प्रेमी भारत मैं, किसी देशी विचार या हाव-भाव या हाथ जोड़ कर प्रणाम/नमस्ते को तरजीह देने की संभावना क्षीण ही लगती है | फिर भी ये एक अच्छा मौका है .....

Monday, September 21, 2009

सेकुलर भटनागर - श्री राम द्वापर युग (त्रेता नहीं) मैं अवतार लिए थे !!!



भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' साफ्टवेयर के सहारे रामायण काल की सूर्य/ चंद्रमा तथा अन्य ग्रहों की स्थिति तथा खगोलीय पद्धति से भगवान् राम की जन्म तिथि (आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर) 5114 ई.पू. निकाली है | तो भटनागर जी साफ्टवेयर के सहारे कह रहे हैं की भगवान् राम का जन्म द्वापर मैं हुआ था त्रेता मैं नहीं, क्योंकि 5114 ई.पू. तो द्वापर युग ही चल रहा था | लगभग सभी वैदिक विद्वान् उनके द्बारा दिए गए तिथि को गलत साबित किया है | आईये देखते हैं कैसे :
* वही रामायण (जिसपे भटनागर जी की गणना आधारित है) कहती है भगवन राम त्रेता युग मैं आये थे | कलि युग मैं ४,३२,००० (४ लाख ३२ हज़ार वर्ष), द्वापर मैं ८,६४,००० (८ लाख ६४ हज़ार) और त्रेता युग मैं १७,२८,००० (१७ लाख २८ हज़ार ) वर्ष हैं | reference :


http://www.encyclopediaofauthentichinduism.org/images/articles/devanagari/51.3.gif
http://www.encyclopediaofauthentichinduism.org/articles/51_the_bhartiya_chronology.htm
त्रेता युग, कलि और द्वापर के पहले था | तो भगवन राम का जन्म कलियुग के अबतक बीते वर्षों ५१०० + द्वापर युग के ८,६४,००० = ८, ६९, १०० (८ लाख ५९ हज़ार कम से कम ) तो अवश्य ही होगे | इसमें तो कोई दो राय होनी ही नहीं चाहिए | ये तो यहीं सिद्ध हो गया की भगवन का जन्म 5114 ई.पू. गलत है |
हिन्दुओं के सारे ग्रन्थ कलि युग मैं ४ लाख ३२ हज़ार, द्वापर मैं ८ लाख ६४ हज़ार और त्रेता युग मैं १७ लाख २८ हज़ार वर्ष ही बताते हैं | और लगभग सभी पुराण, महाभारत और अन्य ग्रन्थ स्पस्ट रूप से कहता है - भगवान् राम का जन्म लगभग १८ लाख वर्ष पूर्व हुआ था | जब सारे ग्रन्थ ये कह रहा है की राम का जन्म लगभग १८ लाख वर्ष पूर्व हुआ तो भटनागर साहब को मानने मैं क्या तकलीफ है? ये तो वही बात हुई की सारे ग्रंथों को नहीं मानता पर उसी ग्रन्थ से २-४ श्लोक निकाल के मैं अपने ढंग से अपनी कल्पना और अनुमान से गलत तिथि निकालूँगा | जब पुरे ग्रन्थ को नहीं मानते तो उसी ग्रन्थ से ग्रहों की स्थिति लेने की क्या आवश्यकता?
* 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' साफ्टवेयर को इतिहास के ग्रहों की स्थिति के लिए तैयार किया ही नहीं गया है | इतिहास मैं वर्णित ग्रहों , नक्षत्रों की स्थिति के आधार पे कोई निश्चित तिथि निकालने के लिए Archeoastronomy (as just like archeology it can help date events as described in literature. Also, it touches on ancient calendar systems, concepts of time and space, mathematics especially counting systems and geometry, navigation, and architecture.) का सहारा लिया जाता है | जब 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' साफ्टवेयर Archeoastronomy पे आधारित ही नहीं है तो ये इतिहास की सही सही तिथि कैसे बता सकती है ?
मुझे लगता है पुष्कर भटनागर ने भगवान् राम का गलत जन्म तिथि निकाल कर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश की है | लगता है पुष्कर भटनागर जी पूरी रामायण पढ़े बिना ही चल दिए भगवान् राम की जन्म तिथि निकालने |
NOTE: हमारे कुछ हिन्दू ब्लॉगर बंधू जाने अनजाने भटनागर जैसे लोगों का समर्थन कर देते हैं | हिन्दू ब्लॉगर बंधुओं से मेरा नम्र निवेदन है की वैदिक सभ्यता पर लिखने से पहले वैदिक सभ्यता की कुछ प्रमाणिक पुस्तक उठा कर जांच लें की आप जो लिखने जा रहे हैं वो सही है या नहीं |

Wednesday, September 16, 2009

अश्लील भित्तिचित्र और मूर्तियाँ मंदिर मैं क्यूँ? Why sexual statue or carvings in Hindu Temple?

इस विषय पे 2 दिनों पहले एक पोस्ट किया था, कई टिप्पणियों मैं महत्वपुर्ण तथ्य और प्रश्न थे जिसकी चर्चा पिछली पोस्ट मैं नहीं की गई थी | फिर रंजना दि (संवेदना संसार) ने - आलेख और प्रत्युत्तर में की गयी टिपण्णी को मिलकर एक पूरी पोस्ट करने का सुझाव दिया | और ये पोस्ट आपके सामने है | कुछ और भी छोटी-मोटी सुधार किया है| आपकी प्रतिक्रिया और सुझव से हमें अवश्य अवगत कराएं |
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हमारे कई मंदिरों मैं अश्लील मूर्तियाँ  और भित्तिचित्र मंदिर के प्रवेश द्वार या बाहरी दीवारों पर अंकित होती हैं | तिरुपति में भी बिलकुल मुख्य द्वार के ऊपर ही मिथुन भाव की अंकित मूर्ती देखा तो सहज ही ये प्रश्न दिमाग मैं आया - आखिर हमारे देवालयों मैं अश्लील मूर्तियाँ भित्तिचित्र क्यों होते हैं? इधर-उधर बहुत खोजा पर इसका वास्तविक उत्तर मिला महर्षि वात्सयायन रचित कामसूत्र में | बाजार में उपलब्ध कामसूत्र की लगभग सभी पुस्तक ६४ आसनों और चित्रों पर ही केन्द्रित होती हैं | और ज्यादातर पाठक कामसूत्र को ६४ आसनों और चित्रों के लिए ही तो खरीदता है | पर उन पुस्तकों में कामसूत्र का वास्तविक तत्व गायब रहता है | महर्षि वात्सयायन रचित कामसूत्र के श्लोक थोड़े क्लिष्ट हैं, सरलीकरण हेतु कई भारतीय विद्वानों ने इसपे टीका लिखी | पर सबसे प्रमाणिक टीका का सौभाग्य प्राप्त हुआ मंगला टिका को | और इस हिंदी पुस्तक में लेखक ने मंगला टिका के आधार पर व्याख्या की है | लेखक ने और भी अन्य विद्वानों की टीकाओं का भी सुन्दर समावेश किया है इस पुस्तक में | 

एक गृहस्थ के जीवन में संपूर्ण तृप्ति के बाद ही मोक्ष की कामना उत्पन्न होती है | संपूर्ण तृप्ति और उसके बाद मोक्ष, यही दो हमारे जीवन के लक्ष्य के सोपान हैं | कोणार्क, पूरी, खजुराहो, तिरुपति आदि के देवालयों मैं मिथुन मूर्तियों का अंकन मानव जीवन के लक्ष्य का प्रथम सोपान है | इसलिए इसे मंदिर के बहिर्द्वार पर ही अंकित/प्रतिष्ठित किया जाता है | द्वितीय सोपान मोक्ष की प्रतिष्ठा देव प्रतिमा के रूप मैं मंदिर के अंतर भाग मैं की जाती है | प्रवेश द्वार और देव प्रतिमा के मध्य जगमोहन बना रहता है, ये मोक्ष की छाया प्रतिक है | मंदिर के बाहरी द्वार या दीवारों पर उत्कीर्ण इन्द्रिय रस युक्त मिथुन मूर्तियाँ और भित्तिचित्र देव दर्शनार्थी को आनंद की अनुभूतियों को आत्मसात कर जीवन की प्रथम सीढ़ी - काम तृप्ति - को पार करने का संकेत कराती है | ये मिथुन मूर्तियाँ दर्शनार्थी को ये स्मरण कराती है की जिस व्यक्ती ने जीवन के इस प्रथम सोपान ( काम तृप्ति ) को पार नहीं किया है, वो देव दर्शन - मोक्ष के द्वितीय सोपान पर पैर रखने का अधिकारी नहीं | दुसरे शब्दों मैं कहें तो देवालयों मैं मिथुन मूर्तियाँ मंदिर मैं प्रवेश करने से पहले दर्शनार्थीयों से एक प्रश्न पूछती हैं - "क्या तुमने काम पे विजय पा लिया?" उत्तर यदि नहीं है, तो तुम सामने रखे मोक्ष ( देव प्रतिमा ) को पाने के अधिकारी नहीं हो | ये गृहस्थ को एक और अत्यावश्यक कर्तव्य कि ओर ध्यान आकर्षित कराती है - मोक्षप्राप्ति के प्रयास करने के पूर्व वंशवृद्धि का कर्तव्य | ये मिथुन मूर्तियाँ दर्शनार्थीयों को काम को लक्ष्य ना मानने की सलाह दे कर वास्तविक लक्ष्य मोक्ष (देव प्रतिमा) प्राप्ति की ओर इशारा भी करती है |
एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है - ब्रह्मचारियों, ऋषियों, साधु-संतों के लिए इससे क्या जवाब निकलेगा? ब्रह्मचारियों, ऋषियों, साधु-संतों से भी अश्लील मूर्तियाँ और भित्तिचित्र यही सवाल करती है - अश्लील मूर्तियाँ देखकर भी तुम्हारा ध्यान आध्यात्म और इश्वर मैं ही लगा है ना ? योग-साधना, भक्ती, वैराग्य आदि से तुमने काम पे विजय प्राप्त किया है या नहीं ? यदि नहीं तो तुम भी मोक्ष के अधिकारी नहीं हो | 
इस प्रकार ये मिथुन मूर्तियाँ मनुष्य को हमेशा इश्वर या मोक्ष को प्राप्ति के लिए काम से ऊपर उठने की प्रेरणा देता है | अश्लील भावों की मूर्तियाँ भौतिक सुख, भौतिक कुंठाओं और घिर्णास्पद अश्लील वातावरण (काम) मैं भी आशायुक्त आनंदमय लक्ष्य (मोक्ष) प्रस्तुत करती है | भारतीय कला का यह उद्देश्य समस्त विश्व के कला आदर्शों , उद्देश्यों एवं व्याख्या मानदंड से भिन्न और मौलिक है | 

प्रश्न किया जा सकता है की मिथुन चित्र जैसे अश्लील , अशिव तत्वों के स्थान पर अन्य प्रतिक प्रस्तुत किये जा सकते थे/हैं ? - ये समझना नितांत भ्रम है की मिथुन मूर्तियाँ , मान्मथ भाव अशिव परक हैं | वस्तुतः शिवम् और सत्यम की साधना के ये सर्वोताम माध्यम हैं | हमारी संस्कृति और हमारा वाड्मय इसे परम तत्व मान कर इसकी साधना के लिए युग-युगांतर से हमें प्रेरित करता आ रहा है  

मैथुनंग परमं तत्वं सृष्टी स्थित्यंत कारणम् 
मैथुनात जायते सिद्धिब्रर्हज्ञानं सदुर्लभम | 

देव मंदिरों के कमनीय कला प्रस्तरों मैं हम एक ओर जीवन की सच्ची व्याख्या और उच्च कोटि की कला का निर्देशन तो दूसरी ओर पुरुष प्रकृति के मिलन की आध्यात्मिक व्याख्या पाते हैं | इन कला मूर्तियों मैं हमारे जीवन की व्याख्या शिवम् है , कला की कमनीय अभिव्यक्ती सुन्दरम है , रस्यमय मान्मथ भाव सत्यम है | इन्ही भावों को दृष्टिगत रखते हुए महर्षि वात्सयायन मैथुन क्रिया, मान्मथ क्रिया या आसन ना कह कर इसे 'योग' कहा है |