Friday, August 28, 2009

जीजस की जय - क्रिश्चियन मिसनरी के नायाब नुख्से



खर्र .... खर्र .... खुट.... एक कॉन्वेंट स्कूल का बस चलते - चलते अचानक रुक जाती है | शायद कोई तकनिकी गडबडी हो !

ड्राईवर जोसफ बस को स्टार्ट करने का प्रयास कर रहा है .. खर्र .... खर्र .... खुट.... लेकिन बस स्टार्ट नहीं होता |

अब सिस्टर मेरी बच्चों को संबोधित कर कहती है, बच्चों बस तो स्टार्ट नहीं हो रही है चलो तुमलोग अपने भगवान् का नाम लो ... "राम भगवान् की जय ... राम भगवान् की जय ... राम भगवान् की जय ...."

बस स्टार्ट करने की कोशिश फिर से की जाती है .. राम भगवान् की जय ... खर्र .... खर्र .... खुट..... बस स्टार्ट नहीं होती है |

सिस्टर मेरी - "बच्चों लगता है भगवान् राम ने हमारी सहायता नहीं की .. कोई बात नहीं अब जीजस की जय बोल कर देखते हैं, बोलो जीजस की जय .. जीजस की जय .. जीजस की जय .. जीजस की जय .."

जोसफ फिर से बस स्टार्ट करता है " जीजस की जय .... " बस स्टार्ट हो जाती है |

सिस्टर मेरी - "देखा बच्चो जीजस ने मुसीबत के समय कैसे हमारी सहायता की .. फिर से बोलो जीजस की जय .." बस सुरक्षित स्कूल पहुँच गया ...

बच्चे खुस... की जीजस ने सहायता कर हमारी बस स्टार्ट कर दी ..

सिस्टर मेरी और जोसफ शहर के मुख्य पादरी के पास जाकर पूरी घटना सुनाते हैं | THE BOSS SAYS WELL THAT WAS A GOOD JOB. NEXT YEAR YOUR SALRY WILL RISE, BECAUSE YOU DID A GREAT SERVICE TO THE LORD (हिंदी मैं - पादरी साहब कहते है , तुमलोगों ने अच्छा काम किया है | अगले साल तुमलोगों का वेतन बढ़ा दिया जाएगा | तुमलोगों ने गोड जीजस के लिए महान कार्य किया है )

Thursday, August 20, 2009

एक विकराल समस्या


मैं झारखण्ड (घाटशिला, जमशेदपुर) से हूँ, और मैंने बहुत करीब से क्रिश्चियन मिसनरी की घिनौनी करतूत देखी है | घाटशिला के निवर्तमान विधायक प्रदीप बालमुचू ने पिछले १५ वर्षों मैं सैकडों चर्च बनवाने मैं सहायता की है, और लाखों लोग हिन्दू से क्रिश्चियन मैं convert हुए हैं | कारण साफ़ है प्रदीप बालमुचू खुद ही क्रिश्चियन हैं (नाम पे मत जाइये) और उनको अपने देश की सर्वशाक्तीशाली महिला का वरदहस्त प्राप्त है | खैर ये तो एक छोटा सा उदाहरण है, जो मैंने अपनी आँखों से देखी है | हमारी आँखों के सामने ये सब हो रहा है और हम कुछ नहीं कर पा रहे | ज्यादातर लोग ये मानाने को तैयार ही नहीं की conversion इस स्तर पे हो रहा है, वो अपनी आँखें बंद कर बैठे हैं | कुछ लोग मानते भी हैं तो कहते हैं हिन्दुओं की गरीबी ही इसका एक मात्र कारण है | जब पूछता हूँ की क्या हमारे मुसलमान भाई हिन्दुओं से कम गरीब है, फिर वो क्यों नहीं Christianity को अपनाते ? एक तर्क ये भी दिया जाता है की क्रिश्चियन बनने मैं बुराई क्या है, सभी धर्म तो एक इश्वर को ही मानता है ? इसके उत्तर के लिए धर्म परिवर्तन क्यों , को समझना जरुरी है | धर्म इश्वर को पाने का एक मार्ग है, हिन्दू धर्म मैं रहते हुए क्या कभी गंभीरता से इश्वर को प्राप्त करने की चेष्टा की ? क्या हमने ये चेष्टा सिर्फ मंदिर जाकर पूजा-पाठ करने तक ही सिमित नहीं रखा ? क्या इश्वर प्राप्ति के लिए यही पर्याप्त हैं ? बिना सच्ची ज्ञान-भक्ती के इश्वर नहीं मिलने वाला चाहे तो कितना भी धर्म बदला जाए | लगभग ९९.९९% स्थितियों मैं धर्म परिवर्तन करने वालों को पता ही नहीं होता, उसे तो ये बताया जाता है की मंदिर छोड़ कर चर्च जाने भर से ही इश्वर की प्राप्ती हो जायेगी | और बाजार वाद का फंडा - " there is great offer going on, if you embrace Christianity now, you will get many free items - education, food, cloth, money, security... ". क्या ऐसा धर्म परिवर्तन जायज है ? कल को ये भी कहा जा सकता है की " change your religion you will get free tickets & nights with ..... in las vegas".

ऐसा नहीं है की भारत मैं धर्म परिवर्तन ही एक मात्र समस्या है; गरीबी, अशिक्षा ... भी बड़ी समस्या है, जिसे सबों ने समस्या माना है और इस पे हमेशा चर्चा भी होती है | सरकार ने कई कदम उठाये हैं, हालांकी ज्यादातर असफल ही रहे हैं | फिर भी सरकार ने ये माना तो है और कुछ कदम (अपर्याप्त हे सही) उठाये तो हैं | पर धर्म परिवर्तन, संस्कृति पे वार को सरकार समस्या तक नहीं मान रही है, इसके खिलाफ कदम उठाना तो दूर की बात है | जब सरकार ही पिछले दरवाजे से धर्म परिवर्तन को बढावा दे तो क्या कहें | क्रिश्चियन मिसनरी के लिए तो बल्ले-बल्ले है - सैया भये कोतवाल अब डर काहे का ! आज की मीडिया का हिन्दू सभ्यता संस्कृति विरोधी चेहरा तो किसी से छुपा नहीं| इन परिस्थितियों मैं सारा भार धर्म एवं सभ्यता-संस्कृति के रक्षकों के कंधे पे ही आ गया है| आज की परिस्थितियाँ हिन्दुओं को निराशा करती है, पर निराश हो जाने भर से हमें अपने दायित्वों से छुटकारा नहीं मिलने वाला | इतिहास गवाह है महापुरुषों, ऋषियों ही नहीं वरन भगवान को भी धर्म - संस्कृति की रक्षा हेतु हमेशा संघर्ष करना पडा है | क्या हम महापुषों, ऋषियों या भगवान से भी बड़े हो गए जो हमें संघर्ष करना ही न पड़े ? या phir हम इतने बड़े और माडर्न हो गए की धर्म - संस्कृति की रक्षा को छोटा काम मानाने लगे ? जरुरत है अपने को मजबूत बना कर रखने का, ताकि ये दायित्व हमें बोझ ना लगे| कई मौके पे हम कह बैठते हैं भगवान हमसे रूठे हैं तभी तो इस संकट काल (कलि युग) मैं हमने जन्म लिया | आज का समय संकट का है, इसमें कोई दो राय नहीं | पर मैं ये नहीं मानता की भगवान की कृपा हम लोगों पे नहीं है | संकट उबारने के लिए हमेशा विश्वासपात्र को ही भेजा जाता है, तो ऐसा क्यों नहीं समझें की भगवान के हम विश्वासपात्र हैं, तभी तो इस संकट काल मैं उन्होंने हमें चुन कर भेजा है ! अब भगवान के विश्वास पात्र बने रहना है या विश्वाशाघाती ये तो अपने ऊपर है |

कई बुद्धिजीवी धर्म एवं सभ्यता-संस्कृति पे आए संकट को ब्लॉग जगत (सिर्फ ब्लॉग जगत पे ही ) अपनी लेखनी का विषय बना रहे है| इनकी सराहना भी की जाती रही है | पर "आपने बहुत अच्छा लिखा है ..." जैसी टिपण्णी भर देकर हम ये समझ बैठते है की हम अपना दायित्व बखूबी निभा रहे हैं| और कई तो ऐसे हैं जो अपने आप को सेकुलर दिखने के चक्कर मैं टिप्पणी भी नहीं करते | ब्लॉग पे आलेख और टिप्पणी से आगे बढ़ कर कार्य करनी की आवश्यकता है आज के समय मैं | अपने भी इर्द-गिर्द ऐसे सैकडों घटना घट रही हैं जहाँ हमारे योगदान की सख्त आवश्यकता है | ये योगदान विरोध के रूप मैं भी हो सकता है | विरोध लाठी डंडे से ही नहीं होता, नम्र बन कर भी विरोध प्रकट किया जा सकता है| एक सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था जहाँ रामायण की खिल्ली उडाई जा रही थी, मैं गुस्से मैं आ कर कुछ बोलने ही वाला था की तभी एक संभ्रांत सज्जन ने बड़े विनम्रता से आयोजकों को कहा की आप ऐसा कर हमारी भावना को ठेष पहुचा रहे हैं और मैं इसके लिए अदालत भी जा सकता हूँ | उसी क्षण आयोजकों ने माफ़ी मांग कर कार्यक्रम को रोक दिया | जरा सोचिये हम सभी सिर्फ साहस कर गलत का विरोध प्रकट करने लगें तो क्या स्थिति ऐसी ही बिगड़ी रहेगी?

भगवन कृष्ण ने जब गोवर्धन पर्वत उठाया था उनके साथ साथ सभी ग्वाल-बाल लाठी से ठेक लगाए थे | क्या ग्वाल-बाल की लाठी से ही पर्वत उठा था, नहीं उन्होंने तो बस अपना कार्य किया था| वैसे ही आज भी हमें अपना धर्म सेवा का कार्य इमानदारी से करना है, बाकी तो भगवान हमारे साथ हैं ही |

सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं
कोशिश है की सूरत बदलनी चाहिए | - दुष्यंत कुमार

ये भजन मुझे हमेसा ऊर्जा देता है, आपको भी सुनाते हैं | youtube लिंक (निचे दिया गया है) मैं चार क्षंद ही हैं, अंत की ५ मैंने अपनी तरफ से जोड़े हैं :
कौन कहते हैं भगवान आते नहीं
तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान खाते नहीं
बेर सबरी के जैसे खिलाते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान सोते नहीं
मा यशोदा के जैसे सुलाते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान नाचते नहीं
गोपियों की तरह तुम नचाते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान देते नहीं
सुदामा के जैसे तुम मांगते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान रास्ता दिखाते नहीं
सुर (दास) के जैसा तुम पुकारते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान दिल मैं रहते नहीं
हनुमान जैसे दिल मैं तुम बसाते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान सखा बनते नहीं
अर्जुन जैसा उन्हें तुम मनाते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान रक्षा करते नहीं
प्रहलाद जैसी भक्ती तुम करते नहीं |

Wednesday, August 12, 2009

लाल फ़ोन - लॉन्ग distance कॉल

मथुरा मैं एक साधारण पुजारी रहता था | पुजारी जी को वेटिकेन (इटली) मैं पोप से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | पोप के ऑफिस जाकर नमस्कार किया और लगे बतियाने | उनकी नजर एक लाल फ़ोन पर पड़ी, संकोच करते-करते पूछा - पोप जी ये लाल फ़ोन क्या है ?

पोप - "ये मेरा और भगवान् का hotline है | जब कभी कोई दिक्कत होती है, इसी फ़ोन से भगवान् से बात कर लेता हूँ |"
पुजारी - "क्या मैं भी भगवान् से बात कर सकता हूँ"
पोप - "हाँ कर सकते हैं "

पुजारी जी ने फ़ोन उठाया और लगे बतियाने भगवान् से | पहले प्रणाम किया , बोले मैं आपसे बात करके बहुत खुस हूँ भगवन | पुजारी जी ठहरे साधारण व्यक्ती , कुछ ज्यादा था नहीं उनके पास बात करने को सो २-३ मिनट मैं ही फ़ोन रख दिया | पोप को धन्यवाद दिया | पोप ने कहा - "By the way फ़ोन कॉल का चार्ज हुआ $७५.००" | पुजारी जी थोडा चकरा गए, हिम्मत कर पूछा "२-३ मिनट कॉल का $७५? "

पोप - "पुजारी जी आप जानते ही हैं लॉन्ग distance का चार्ज | यहाँ से भगवान् जी काफी दूर रहते हैं, इसलिए चार्ज ज्यादा आ गया"
पुजारी जी लगे अपना बटुवा खंघालने, जैसे तैसे जोड़-तोड़ कर बिल चुकाया और चलते बने |

कुछ महीनों बाद पोप भारत भ्रमण पे थे, मथुरा की उसी पुजारी जी से मिलने आ गए | पोप को पुजारी के पास वैसा ही लाल फ़ोन देखकर आश्चर्य हुआ, पूछ बैठे - "पुजारी जी ये लाल फ़ोन क्या है ?"

पुजारी - " ये मेरा भगवान् से hotline है |'
पोप - " क्या मैं गोड से बात कर सकता हूँ ? मुझे ढेर सारी बात करनी है उनसे "
पुजारी - " अवश्य बात कीजिये |"

पोप ने फ़ोन लगाया, लगे बतियाने | ढेर सारी बाते करनी थी पोप को | वेटिकेन की परेशानी , चर्च के प्रोब्लेम्स और अमेरिका मैं legal charges against churches पे गहन मंत्रणा करने लगे | पंद्रह से ३०, ३० से ४० मिनट बीत गए , अंततः एक घंटे बाद फ़ोन रखा | पुजारी को धन्यवाद देकर कहा " गोड से इतने प्रोब्लेम्स पे बात करके काफी अच्छा महसूस कर रहा हूँ | कॉल का चार्ज कितना हुआ ?" पुजारी बोला २ रुपये | " २ रुपये वो भी एक घंटा बात करने का ?" - पोप ने कहा |
पुजारी - "पोप जी क्या आप नहीं जानते यहाँ भगवान् का hotline लोकल कॉल है ?"



Friday, August 7, 2009

सुगना मुंडा की निश्चिंतता ...

सुगना मुंडा, जाती से आदिवासी और मुसाबनी प्रखंड (झारखण्ड) के एक रिमोट गाँव का निवासी, पिछले पॉँच वर्षों से घाटशिला कारावास मैं | जाहिर है कुछ न कुछ संगीन अपराध तो किया ही होगा | अपराध तो उसने किया था - लगभग ५ वर्ष पहले एक मुर्गा चोरी किया था ! चौकाने वाली बात मुर्गा चोरी की साजा ५ वर्ष ? असल मैं उसे अब तक साजा सुनाई ही नहीं गई है | कारावास के पहले ४ वर्षों मैं सुगना के केस मैं कोई सुवाई हुई नहीं | वकीलों को देने को पैसे नहीं, सो उसने कभी अपील ही नहीं की | ४ वर्षों मैं कारावास जीवन का ऐसा अभ्यस्थ हो गया की अब वो बाहर आना ही नहीं चाहता | कहता है बहार जाकर क्या करूंगा , कम से कम यहाँ खाना तो मिल रहा है |

लगभग साड़े चार वर्षों के बाद सुनवाई की बारी आयी ...., लेकिन इस समय तक सुगना ने कुछ और सोच रखा था , उसने magistrate को उलटा-सीधा कह दिया, magistrate ने भी आवेश मैं उसे सजा ही नहीं सुनाई | साजा सुनाया जाता तो बा-मुस्किल ये ६-८ महीने का होता और वो तुंरत बहार निकल जाता | सुगना ने ये सब जान बुझ कर किया ताकि जेल मैं उसे दो वक़्त की रोटी मिलती रहे |

पता नहीं अगली सुनवाई कब होगी ? क्या पता अगली सुनवाई की उसे आस भी है या नहीं ? उसके चेहरे पे कोई पश्चाताप, उदासी या विद्रोह का भाव भी नहीं झलकता | उसके जीवन मैं एक अजीब सी निश्चिंतता दिखाई देती है |


(ये कहानी है सच्ची, पात्र के नाम याद नहीं इसलिए एक अलग नाम दे दिया है)

Monday, August 3, 2009

बजरंगवली की जगह ....

क्या करूँ मज़बूरी समझो, सत्य बोला तो सांप्रदायिक कहलाउंगा
ना बाबा सांप्रदायिक नहीं कहलाना, मुझे तो सेकुलर बन के रहना है |

सत्य नहीं बोलूंगा, मौन धारण कर लूंगा, झूठ भी बोल सकता हूँ
पर सांप्रदायिक नहीं कहलाउंगा

अब बताओ सेकुलर बनने के आसान तरीके
क्या कहा स्तुति करनी होगी, लो अभी स्तुति गाल करता हूँ
जय हो ..., जय हो ... तुम्ही तो हो भारत के भाग्य विधाता, हम सब के पालन हार |

क्यों अब तो सेकुलर बन गए ना? क्या कहा अभी तो मैं सेकंड क्लास का सेकुलर बना हूँ ?
नहीं मुझे तो फस्ट क्लास सेकुलर बन के रहना है, कुछ कान मैं मन्त्र बताओ |
अच्छा ..मजार पे चादर चढानी होगी, भारतीय सभ्यता संस्कृति को गरियाना होगा ...
चलो ये भी कर लिया, अब तो मैं फस्ट क्लास सेकुलर बन गया ना ?

सेकुलर भाइयों से बधाई खूब मिली है, लगता है जीवन सफल हो गया
चलो आज ही सवा सेर लड्डू बजरंगवली को चढाता हूँ ...
किसी ने सुना तो नहीं ... , गलती हो गई भाई बजरंगवली की जगह दरगाह पे चादर चढा के आता हूँ |