Thursday, August 20, 2009

एक विकराल समस्या


मैं झारखण्ड (घाटशिला, जमशेदपुर) से हूँ, और मैंने बहुत करीब से क्रिश्चियन मिसनरी की घिनौनी करतूत देखी है | घाटशिला के निवर्तमान विधायक प्रदीप बालमुचू ने पिछले १५ वर्षों मैं सैकडों चर्च बनवाने मैं सहायता की है, और लाखों लोग हिन्दू से क्रिश्चियन मैं convert हुए हैं | कारण साफ़ है प्रदीप बालमुचू खुद ही क्रिश्चियन हैं (नाम पे मत जाइये) और उनको अपने देश की सर्वशाक्तीशाली महिला का वरदहस्त प्राप्त है | खैर ये तो एक छोटा सा उदाहरण है, जो मैंने अपनी आँखों से देखी है | हमारी आँखों के सामने ये सब हो रहा है और हम कुछ नहीं कर पा रहे | ज्यादातर लोग ये मानाने को तैयार ही नहीं की conversion इस स्तर पे हो रहा है, वो अपनी आँखें बंद कर बैठे हैं | कुछ लोग मानते भी हैं तो कहते हैं हिन्दुओं की गरीबी ही इसका एक मात्र कारण है | जब पूछता हूँ की क्या हमारे मुसलमान भाई हिन्दुओं से कम गरीब है, फिर वो क्यों नहीं Christianity को अपनाते ? एक तर्क ये भी दिया जाता है की क्रिश्चियन बनने मैं बुराई क्या है, सभी धर्म तो एक इश्वर को ही मानता है ? इसके उत्तर के लिए धर्म परिवर्तन क्यों , को समझना जरुरी है | धर्म इश्वर को पाने का एक मार्ग है, हिन्दू धर्म मैं रहते हुए क्या कभी गंभीरता से इश्वर को प्राप्त करने की चेष्टा की ? क्या हमने ये चेष्टा सिर्फ मंदिर जाकर पूजा-पाठ करने तक ही सिमित नहीं रखा ? क्या इश्वर प्राप्ति के लिए यही पर्याप्त हैं ? बिना सच्ची ज्ञान-भक्ती के इश्वर नहीं मिलने वाला चाहे तो कितना भी धर्म बदला जाए | लगभग ९९.९९% स्थितियों मैं धर्म परिवर्तन करने वालों को पता ही नहीं होता, उसे तो ये बताया जाता है की मंदिर छोड़ कर चर्च जाने भर से ही इश्वर की प्राप्ती हो जायेगी | और बाजार वाद का फंडा - " there is great offer going on, if you embrace Christianity now, you will get many free items - education, food, cloth, money, security... ". क्या ऐसा धर्म परिवर्तन जायज है ? कल को ये भी कहा जा सकता है की " change your religion you will get free tickets & nights with ..... in las vegas".

ऐसा नहीं है की भारत मैं धर्म परिवर्तन ही एक मात्र समस्या है; गरीबी, अशिक्षा ... भी बड़ी समस्या है, जिसे सबों ने समस्या माना है और इस पे हमेशा चर्चा भी होती है | सरकार ने कई कदम उठाये हैं, हालांकी ज्यादातर असफल ही रहे हैं | फिर भी सरकार ने ये माना तो है और कुछ कदम (अपर्याप्त हे सही) उठाये तो हैं | पर धर्म परिवर्तन, संस्कृति पे वार को सरकार समस्या तक नहीं मान रही है, इसके खिलाफ कदम उठाना तो दूर की बात है | जब सरकार ही पिछले दरवाजे से धर्म परिवर्तन को बढावा दे तो क्या कहें | क्रिश्चियन मिसनरी के लिए तो बल्ले-बल्ले है - सैया भये कोतवाल अब डर काहे का ! आज की मीडिया का हिन्दू सभ्यता संस्कृति विरोधी चेहरा तो किसी से छुपा नहीं| इन परिस्थितियों मैं सारा भार धर्म एवं सभ्यता-संस्कृति के रक्षकों के कंधे पे ही आ गया है| आज की परिस्थितियाँ हिन्दुओं को निराशा करती है, पर निराश हो जाने भर से हमें अपने दायित्वों से छुटकारा नहीं मिलने वाला | इतिहास गवाह है महापुरुषों, ऋषियों ही नहीं वरन भगवान को भी धर्म - संस्कृति की रक्षा हेतु हमेशा संघर्ष करना पडा है | क्या हम महापुषों, ऋषियों या भगवान से भी बड़े हो गए जो हमें संघर्ष करना ही न पड़े ? या phir हम इतने बड़े और माडर्न हो गए की धर्म - संस्कृति की रक्षा को छोटा काम मानाने लगे ? जरुरत है अपने को मजबूत बना कर रखने का, ताकि ये दायित्व हमें बोझ ना लगे| कई मौके पे हम कह बैठते हैं भगवान हमसे रूठे हैं तभी तो इस संकट काल (कलि युग) मैं हमने जन्म लिया | आज का समय संकट का है, इसमें कोई दो राय नहीं | पर मैं ये नहीं मानता की भगवान की कृपा हम लोगों पे नहीं है | संकट उबारने के लिए हमेशा विश्वासपात्र को ही भेजा जाता है, तो ऐसा क्यों नहीं समझें की भगवान के हम विश्वासपात्र हैं, तभी तो इस संकट काल मैं उन्होंने हमें चुन कर भेजा है ! अब भगवान के विश्वास पात्र बने रहना है या विश्वाशाघाती ये तो अपने ऊपर है |

कई बुद्धिजीवी धर्म एवं सभ्यता-संस्कृति पे आए संकट को ब्लॉग जगत (सिर्फ ब्लॉग जगत पे ही ) अपनी लेखनी का विषय बना रहे है| इनकी सराहना भी की जाती रही है | पर "आपने बहुत अच्छा लिखा है ..." जैसी टिपण्णी भर देकर हम ये समझ बैठते है की हम अपना दायित्व बखूबी निभा रहे हैं| और कई तो ऐसे हैं जो अपने आप को सेकुलर दिखने के चक्कर मैं टिप्पणी भी नहीं करते | ब्लॉग पे आलेख और टिप्पणी से आगे बढ़ कर कार्य करनी की आवश्यकता है आज के समय मैं | अपने भी इर्द-गिर्द ऐसे सैकडों घटना घट रही हैं जहाँ हमारे योगदान की सख्त आवश्यकता है | ये योगदान विरोध के रूप मैं भी हो सकता है | विरोध लाठी डंडे से ही नहीं होता, नम्र बन कर भी विरोध प्रकट किया जा सकता है| एक सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था जहाँ रामायण की खिल्ली उडाई जा रही थी, मैं गुस्से मैं आ कर कुछ बोलने ही वाला था की तभी एक संभ्रांत सज्जन ने बड़े विनम्रता से आयोजकों को कहा की आप ऐसा कर हमारी भावना को ठेष पहुचा रहे हैं और मैं इसके लिए अदालत भी जा सकता हूँ | उसी क्षण आयोजकों ने माफ़ी मांग कर कार्यक्रम को रोक दिया | जरा सोचिये हम सभी सिर्फ साहस कर गलत का विरोध प्रकट करने लगें तो क्या स्थिति ऐसी ही बिगड़ी रहेगी?

भगवन कृष्ण ने जब गोवर्धन पर्वत उठाया था उनके साथ साथ सभी ग्वाल-बाल लाठी से ठेक लगाए थे | क्या ग्वाल-बाल की लाठी से ही पर्वत उठा था, नहीं उन्होंने तो बस अपना कार्य किया था| वैसे ही आज भी हमें अपना धर्म सेवा का कार्य इमानदारी से करना है, बाकी तो भगवान हमारे साथ हैं ही |

सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं
कोशिश है की सूरत बदलनी चाहिए | - दुष्यंत कुमार

ये भजन मुझे हमेसा ऊर्जा देता है, आपको भी सुनाते हैं | youtube लिंक (निचे दिया गया है) मैं चार क्षंद ही हैं, अंत की ५ मैंने अपनी तरफ से जोड़े हैं :
कौन कहते हैं भगवान आते नहीं
तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान खाते नहीं
बेर सबरी के जैसे खिलाते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान सोते नहीं
मा यशोदा के जैसे सुलाते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान नाचते नहीं
गोपियों की तरह तुम नचाते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान देते नहीं
सुदामा के जैसे तुम मांगते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान रास्ता दिखाते नहीं
सुर (दास) के जैसा तुम पुकारते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान दिल मैं रहते नहीं
हनुमान जैसे दिल मैं तुम बसाते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान सखा बनते नहीं
अर्जुन जैसा उन्हें तुम मनाते नहीं |

कौन कहते हैं भगवान रक्षा करते नहीं
प्रहलाद जैसी भक्ती तुम करते नहीं |

16 comments:

Anonymous said...

भाई, हम एक हजार साल तक गुलाम रहे हैं, हजार वर्षों की गुलामी का असर ६२ वर्षों में जाने से रहा. धर्म परिवर्तन धड़ल्ले से, खुले आम हो रहा है. वोट बैंक की राजनीति मुंह पर ताला मार देती है. गरीबी को कारण बताना तो नाटक है. समस्या से मुंह छुपाने के लिए कुछ तो कहना ही पडेगा. लेकिन, एक बहुत बडी वजह जो इस के पीछे है, उसे हम भूल जाते हैं- ये है स्वार्थ. यह स्वार्थ परिवर्तन करने वालों और कराने वालों दोनों पर ही हावी है. जब तक हम इससे छुटकारा नहीं पाएंगे, धर्म ही नहीं, देश भी खतरे में रहेगा.

विवेक सिंह said...

यदि सभी धर्मों को समान समझा जाता है तो किसी भी प्रकार के धर्म परिवर्तन पर रोक लगनी चाहिये !

जीत भार्गव said...

पहली बात तो ये है कि हिन्दुत्व या हिन्दू जाती को बचाने की फुरसत या धन किसे निकालना है? आजकल तो सेलिब्रिटी भी विभिन्न कार्यक्रमों से मिलने वाला धन किसी ऐसे एनजीओ को देते हैं जो परोक्ष रूप से हिन्दुओं का बाप्तिस्मा करने में लगे हैं. आम आदमी को मंदिर जाने से ही फुर्सत नहीं. थोडा संपन्न हुआ तो निन्यानवे के चक्कर में ही फंसा रहता है. बुजुर्ग हुए तो चार धाम की यात्रा पर निकल लिए. रही बात अम्बानी जैसों की तो इन्हें अपने कारोबारी फायदों के लिए हिन्दू समाज के धुर विरोधियों से गलबहियां करनी पड़ती हैं. बाकी बच्चा मीडिया, जिसे या तो अंग्रेज या अमेरिका चलाता है या फिर उनकी मानस-संताने. बाकी जो बचे हैं उन्हें गल्फ से शेख खैरात देते हैं या कोइ आस्ट्रेलियन या इतालवी मिशनरी. आपके लिए कोइ आवाज बुलंद भी करता है तो यह सब मिलकर उसे साम्प्रदायिक या अछूत घोषित कर देंगे. देखा जाए तो हिन्दुओं का कोइ दुश्मन है तो हिन्दुओं का सत्ता-संपदा लालच, या फिर उदासीनता अथवा मूढ़ता ही है. वरना दुनिया की सबसे संपन्न कौम के लोगों को ही सिर्फ रोटी कपडा देकर धर्मान्तरित करने का दुस्साहस कौन कर सकता है?
आपने लेख में व्यवहारिक धरातल पर बढिया विश्लेषण किया है. काश हम नींद से जागें...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सारगर्भित लेख......बहुत बहुत बधाई....

Anonymous said...

राकेशजी मसला सारा गरीबी का है। आपने एक जगह का नाम सुना होगा झाबुआ मध्‍यप्रदेश में है। यहां भी ईसाइयों ने कई आदिवासी और भील भाइयों को ईसाई बनाया है। जंगल में रहने वाले थोडे आधुनिक हुए तो उनके सामने रुपया ही सबसे बड़ा संकट था। इसी का लालच देकर इन्‍होंने कई हजार लोगों का धर्मांतरण कराया। एक समय मध्‍यप्रदेश में सरकारी नौकरी लेना होता ईसाई बन जाओ की तर्ज पर नौकरी राह पर पड़ी थी। अगर धर्मांतरण जबरदस्‍ती की चीज नहीं किसी धर्म के प्रति लोगों की आस्‍था और झुकाव है। इसलिए जब तक गरीब आदिवासी चाहे वे झारखंड के हो या झाबुआ के, वे अपना धर्म बदलते रहेंगे। लेकिन इस आड़ में कई हिंदुवादी संगठन उत्‍पात मचा रहे हैं। हमें इस बुरे पहलु पर भी विचार करना होगा। सिर्फ ईसाइयों को ही दोष देना ठीक नहीं है।
धर्मेन्‍द्र चौहान
http://dharmendrabchouhan.blogspot.com/

Anonymous said...

Waakai gambheer.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

राकेश सिंह जी!
धर्म परिवर्तन के लिए तो हर व्यक्ति स्वतन्त्र है, लोभ के बल पर धर्म परिवर्तन चिन्ता का विषय है। ऐसा नही होना चाहिए।
लेकिन लोभ-लालच के बल पर धर्म परिवर्तन के खिलाफ तो आवाज उठनी ही चाहिए।

बेरोजगार said...

मेरे ब्लॉग पर आप आये , आप का स्वागत है!

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

धर्मेन्द्र जी गरीबी एक बड़ा कारन है धर्म परिवर्तन का पर मसला सारा गरीबी का नहीं है | हमारे मुस्लमान भाई भी गरीब हैं वो क्यों नहीं धर्म परिवर्तन कर लेते हैं ? इसका उत्तर देने से वो सारे लोग कतराते हैं जो हिन्दुओं की गरीबी को ही धर्म परिवर्तन का एक-मात्र कारण मानते हैं |

रही बात हन्दू संगठनों की तो मैंने अब तक किसी हिंदुवादी संगठन का उत्‍पात झारखण्ड मैं नहीं देखा, बीजेपी के राज मैं भी नहीं | झाबुआ मैं यदि कुछ विशेष हुआ हो तो इसका ज्ञान नहीं है मुझे, शायद खबर आई नहीं या मैंने miss किया होगा | पर पुरे देश मैं एक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़ दें तो मुझे हिंदूवादी संगठनों की भूमिका मैं कोई गलती नहीं दिखती है | अब यदि कोई लोगों को मुर्ख बनाकर या जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करे तो क्या हिन्दू संगठन चुप-चाप हाथ पे हाथ धरे बैठे ?

लोगों को क्यूँ ऐसा लगने लगा है की मीडिया हिन्दू विरोधी हो गई है ? क्योंकी मीडिया को हिन्दुओं की हर चीज बुरी लगती है | इनके पीछे का कारन है आज की मीडिया बिकी हुई है सच से उसका कोई लेना देना नहीं |

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बिल्कुल सही मुद्दे को लेकर आपने बड़े ही सुंदर रूप से आलेख किया है ! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई !

दर्पण साह said...

Accha lekh...
..aur uske baad gehan research karti hui tippaniya.
main tehra kum gyani par itna zarror jaanta hoon:
cheezein tab hi bikti hain..
..zab koi kharidaar ho.

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

दर्पण जी आपने कुछ हद तक सही ही कहा है की "चीज़ें तभी बिकती है जब खरीदार हो " . लोगों को मुर्ख तभी बनाया जा सकता है जब लोग मुर्ख बन जाएँ |

kshama said...

Missionaries ने काम भी बहुत किया है...मेरी खुशकिस्मती रही,की, ऐसा करने वाला कोई मिला नहीं...जबकि, काफी करीबी संपर्क में रहते हुए काम किया..

आपने जिस रचना से रु-b-रु कराया, वो बेहतरीन है...एक ऊर्जा

kshama said...

Ek urjaa kaa anubhav hua..Kshama chahtee hun..shayad copy theek se nahee hua..

स्वप्न मञ्जूषा said...

अरे सिर्फ गरीब नहीं बबुआ... हमरे घर कनाडा में भी आये रहे हमको इसाई बनाने का वास्ते भैया..कहने लगे की जबतक आपका बप्तिस्मा नहीं होता आपके लिए स्वर्ग का द्वार नहीं खुलेगा.. जिसने भी बप्तिस्मा लिया उसके सारे पाप माफ़ हो जाते हैं...मुक्ति की बस एक ही शर्त है इसाई बनना...
हम कहे की भगवान् तो सबसे प्यार बिना शर्त के करते हैं तो इ शर्त कब लगा दिए भाई.....
उ थोडा घबडाये.....कहने लगे नहीं ऐसा कोई शर्त नहीं है लेकिन बाईबल में अय्ही लिखा है.....
हम कहे की चलिए आपका बात मान लेते हैं .....की जिसका भी बप्तिस्मा हुआ है उ सब लोग स्वर्ग जाएगा ठीक हां कहे हाँ.....हम कहे माने की कनाडा अमेरिका में जितना भी क्रिश्चियन हैं सब जायेंगे ....बोले हाँ सब जायेंगे ...तब हम कहे माने की यहाँ का जेल में जितना क्रिमिनल ठूसे हुए हैं उ भी जायेंगे.....अब उ हमर मुंह बकर-बकर देख रहे थे.....हम कहे जब बप्तिस्मा सब बात का इलाज है और कन्फेशन दवा तो फिर इतना कानून का का ज़रुरत है महाराज छो दीजिये सब अपराधी उ स्वर्ग जैयेबे कर रहे हैं आप कहे को बिना मतलब टांग अडा रहे हैं भैया .....और अब आप हमारे घर से रवानगी का राय लीजिये दोबारा झलक मत दिखियेगा....नमस्ते.....तब से गए हैं दोबारा नहीं आये हैं.
are bhai Jesus khud 30 saal ka umar mein baptisma liye the to uske pahile kaa u theek admi nahi the ....koi pooche in logon se...
bahut sahi kaam kar rahe ho Rakesh...

didi

जगदीश त्रिपाठी said...

समस्याएं तो बहुत सी हैं, लेकिन संस्कृति पर प्रहार सबसे बड़ी समस्या है। जहां भी हिंदू अल्पसंख्यक होते हैं, अलगाववाद सिर उठा कर खड़ा हो जाता है।