Wednesday, July 15, 2009

माइकल जेक्सन या उस्ताद जी

पिछले दिनों माइकल जेक्सन की मृत्यु (जून २५)  के आसपास ही एक महान शास्त्रीय संगीतग्य उस्ताद अली अकबर खान (सरोद वादक) का देहावसान (जून १९) अमेरिका मैं हुआ | शास्त्रीय संगीतग्य के जानकारों को छोड़ दें तो उस्ताद साहब की मृत्यु की खबर शायद ही आम लोगों तक पहुंची हो | जिधर देखो उधर देश की सारे अखबार, न्यूज़ चेनल विशेषकर अंग्रेजी भाषा वाले बस माइकल जेक्सन पे ध्यान केन्द्रित किये हुए थे | उस्ताद जी के लिए एक श्रद्धांजली सभा दिल्ली में आयोजित कि गई थी जिसमे देश के प्रख्यात कलाकारों ने भाग लिया पर अगले दिन के समाचार पत्रों मैं भी मुख्याप्रिस्ट पर इसे जगह नहीं मिली, मुख्याप्रिस्ट पर तो जेक्सन साहब विराजमान थे | इस तरह  उस्ताद साहब की खबर को बस कुछ पंगातियों मैं किसी कोने मैं दबा दिया गया | वाह, क्या विकाश किया है हमने ! हमारे लिए तो शायाद अपनी संस्कृति के प्रती उदासीनता ही विकाश की पहली सिड़ी है !

क्या जेक्सन जी उस्ताद साहब से ज्यादा महान थे ? जेक्सन साहब ने अकूत संपत्ति अर्जित की फीर भी सर से पाँव तक कर्ज मैं डूबे थे, बिना DRUGS - दवाइयों के नींद ही नहीं आती थी, कई बार यौन शोषण के केस मैं भी फसे | साहब की मृत्यु भी शायद DRUGS & दवाइयों के overdose से हुई | वैसे पॉप सिंगर मैं DRUGS आदि का सेवन आम बात है | ज्यादातर  पॉप सिंगर की तरह ही जेक्सन भी शायद ही कभी कला या आर्ट का ख्याल रखते थे | पॉप सिंगर तो येन-केन-प्रकरेन बस अपने show को सफल बनाने मैं लगे रहते हैं, चाहे इसके लिए उन्हें दर्शकों के सामने थोडी देर के लिए अपने को ही मुर्ख क्यों ना बनाना पड़े | DRUGS और अभद्र भाषा तो इनके लिए आम बात है | 

drugs , यौन शोषण, अभद्र भाषा से परे हमारे शास्त्रीय संगीतग्य अपनी पुरी जिन्दगी संगीत साधना और कला मैं लगा देते हैं | संगीत को इतना पवित्र बना देते हैं की इश्वर की पूजा भी संगीत से ही करने लगते हैं | ये जब भी गाते-बजाते हैं इश्वर को समर्पित ह्रदय से निकली आवाज़ होती है | इनके लिए धन या फेम का महत्व नहीं के बराबर होता है | ये अपने श्रोताओं मैं भगवान् का अंश देख कर अपने सुर-संगीत से पूजा करते हैं | 

इस दुर्दशा का मुख्या कारण है हमारी सिक्षा पद्धती | ऐसे कितने सिक्षर्थी है जो महान कवि कालिदास को, संस्कृत या अन्य भाषाओँ मैं अनुदित, पढ़ा है ? क्या कभी अर्थशास्त्र के उच्च कक्षाओं मैं भी कौटिल्य अर्थशाश्त्र की चर्चा भी होती है ? बड़े-बड़े स्कूलों मैं चले जाएँ और शिक्षार्थियों से शास्त्रीय संगीतग्य का नाम बताने को कहिये, एक का भी नाम बता दें तो बड़ी बात होगी | श्री मुरली मनोहर जोशी जी  ने इसी कमी को देखकर स्कूलों मैं भारतीय संस्कृति को पाठ्यक्रम मैं सामिल करने का प्रयास किया तो सेकुलर मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने इसे तुंरत सांप्रदायिक करार दे दिया | इन सेकुलार्स के लिए भारतीय संस्कृति ही कोम्मुनल है | वस्तुतः अन्दर से ये सेकुलर और तथाकथित बुद्धिजीवि लोग डरे हुए हैं कि भारतीय संस्कृति का जोर चला तो इनकी दूकान बंद हो जायेगी | इन संस्कारहीन, असांस्कृतिक लोगों को कोई पूछने वाला ही नहीं रहेगा | जब तक पश्चिम का प्रभाव है  अंग्रेजीदा लोग समारे सर चढ़ कर नाच लें, जैसे ही भारतीय संस्कृति का प्रभाव बढा ये  कहीं के नहीं रहेंगे |

(हिन्दी और लड़ाई का दूसरा भाग एक-दो दिनों मैं पोस्ट करूँगा )

5 comments:

Udan Tashtari said...

चलो, एक सोच यह भी देख ली..भविष्य उचित रहे, यही कामना है.

Atmaram Sharma said...

दुनिया का यही (तथाकथित) चलन है. सचमुच खेद है कि उस्ताद के बारे में प्रिंट मीडिया ने बहुत कम प्रकाशित किया. रही बात शिक्षा के पुरातन स्वरूप को वर्तमान संदर्भों में लागू करने की तो यह मसला थोड़ा उलझा हुआ है. हमें पुरातन ग्यान को आज के हिसाब से जरूरी बदलाव के साथ स्वीकारना होगा, वरना वह प्रासांगिक नहीं रहेगा. आदि... आदि.. ऐसे तमाम तर्क भी है.

हरकीरत ' हीर' said...

अन्दर से ये सेकुलर और तथाकथित बुद्धिजीवि लोग डरे हुए हैं कि भारतीय संस्कृति का जोर चला तो इनकी दूकान बंद हो जायेगी | इन संस्कारहीन, असांस्कृतिक लोगों को कोई पूछने वाला ही नहीं रहेगा ...

आपका ख्याल दुरुस्त है ....!

जगदीश त्रिपाठी said...

उस्ताद जी सादगी और पवित्रता की प्रतिमूर्ति थे। और जैक्सन? उनके बारे में क्या कहें। लेकिन अंग्रेजीदां लोगों को तो वही पसंद हैं न।

दर्पण साह said...

West v/s East !!


Manoj kumar ji ki Poorab aur paschim...


badhiya post.

kuch typo mistake jaanch leven...

'मुख्याप्रिस्ट' aadi