Sunday, July 5, 2009

बाबा और आस्था

मित्रों के साथ बैठे थे, वही आलतू-फालतू शौपिंग, दफ्तर, सिनेमा, क्रिकेट... की बातें हो रही थी |  एक सन्दर्भ निकला और बात-चीत के दिशा धर्मं-अध्यात्म की ओर मुड़ने लगी | वैसे धर्म-अध्यात्म आम तौर पे चर्चा का विषय नहीं होता | कभी-कभार गलती से चर्चा या बातचीत की गाडी इस मार्ग पे आ जाये तो सबको ये एहसास होते देर नहीं लगती की गाड़ी गलत लाइन पे चली गई है, और इसे तुंरत गलत लाइन (धर्मं-अध्यात्म) से सही लाइन ( शौपिंग, दफ्तर, सिनेमा, क्रिकेट ....) पे वापस ले आया जाता | आपने यदि धर्मं-अध्यात्म वाली लाइन पे गाड़ी थोडी चला दी तो सारे यात्री बिना अगले पडाव का इन्तजार किये चैन पुलिंग कर जहाँ तहां कूदते नजर आयेंगे |  धर्मं-अध्यात्म वाली लाइन से उतारते ही एक लम्बी साँस छोड़ते हैं, जान बची तो लाखों पाए | खैर हमारी बातचीत भाग्य या दुर्भाग्यवास धर्मं-अध्यात्म वाली लाइन पे चैन पुल्लिंग होने से पहले तक चली | एक मित्र ने पते की बात कही - "देखिये भाई मैं पहले धर्मं-अध्यात्म, गुरु आदी मैं बड़ा विश्वास करता था, किन्तु जिस दिन से फलां 'बाबा' के बारे मैं सुना की वो गलत काम करते थे उसी दिन से  धर्मं-अध्यात्म, गुरु आदी को त्याग दिया ओर अब इसपे विश्वास नहीं करता" | मन तो हुआ की इसका जवाब दें पर सब लोगों के मन की बात को भांप कर चुपपी मार गया |  मित्र से पूछना था कि भाई सलमान खान, सहरुख खान, कारन जौहर ...  (और ना जाने कितने ..) की फिल्में तो जरुर देखते होंगे, उनकी एक-दो बकवास फिल्में देखने के बाद आगे की सारी फोल्मों को तिलांजलि दे देते हो क्या? यदि नहीं, तो फिर एक-दो बाबा के गलत हो जाने से क्या इश्वर-अध्यात्म का अस्तित्व को नकारना जा सकता है क्या ?  क्या हमारी आस्था बस एक-दो बाबा पे ही आ टिकी हैं की वो गलत साबित हुए नहीं की अपनी आस्था गई?

4 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

राकेश जी,

आपके दोस्त कि बातों से यह प्रतीत हुआ कि उन्हें धर्म क्या है यही नहीं मालूम है, धर्म और कर्म दोनों ही बहुत व्यक्तिगत हैं, जिसतरह खून मैं करुँ तो पडोसी को सजा (आम तौर ) पर नहीं मिलेगी, वैसे ही आपकी आस्था या धर्म पालन से आपको उसका परिणाम मिलगा, ना कि तथाकथित बाबा को, उन 'बाबा' को तो उनके अपने कर्मों का और धर्म का परिणाम भुगतना होगा, उसकी बेवकूफी से अपनी ज़िन्दगी के फैसले लेना मूर्खता के सिवा और कुछ नहीं कहा जा सकता है, और जैसे कि आपके लेख ने खुलासा किया है कि आम तौर पर लोग धर्मं-अध्यात्म इत्यादि कि विवेचना से दूर भागते हैं, तो इस मामले हमें उनकी भावनाओं को आदर करना चाहिए, धर्म बहुत ही व्यक्तिगत भाव है, हर व्यक्ति का अपने ईश्वर से अपना सम्बन्ध होता है और उसे वैसा ही रहने देना चाहिए ...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत अच्छा लिखा है मित्र. जारी रखना.वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें.

जगदीश त्रिपाठी said...

आप की बात सौ प्रतिशत सही है। लेकिन जिन्हें धर्म और अध्यात्म के विरोध में कुतर्क करना है, वे इस तरह के बाबाओं का हवाला देंगे ही। क्योंकि उन्हें तो सब बुरा-बुरा ही दिखता है। कारण वे खुद भी वैसे ही हैं।

Gyan Darpan said...

दरअसल इन बाबाओं ने जितना धर्म का प्रचार नहीं किया उससे ज्यादा नुक्सान किया है ज्यादातर बाबा धर्म के नाम पर अपनी दुकान चलाते है लेकिन इनके क्रियाकलापों का जिम्मेदार धर्म नहीं | इसके भी जिम्मेदार हम खुद है जो इन ढोंगियों को भगवान् मान इनकी पूजा करते है और इनके द्वारा ठगे जाने पर धर्म को जिम्मेदार ठहरा देते है | मेरी नजर में धर्म की सही समझ नहीं रखने वाला ही इन बाबाओं के चक्कर में पड़ता है |