रीमिक्स गाना लगा वो थिरकने लगती है
कहती है तुम भी थिरको ना ! तुम तो कभी मेरा साथ देते ही नहीं |
मैं कहता हूँ कोई ठुमरी, कजरी, होरी, चैता लगाओ मन आनंद विभोर हो जावेगा
कहती है क्यों अभी तक बासी-पुराणी ठुमरी, कजरी पे ही अटके हो ?
उनकी कान खडी हो जाती है जब मैं नमस्कार करता और रिप्लाय हाय मैं आता
कहती है देखो वो कितने शिष्टाचारी हैं, तुम्हें तो हाय बोलना भी नहीं आता |
मैं चुप रहता हूँ, वो कहती किस पुराने आदमी से पाला पड़ा है !
तुम तो निरा मुर्ख हो परिवर्तन को समझ नहीं पाए हो अब तक
क्या कृष्ण ने गीता मैं नहीं कहा - परिवर्तन प्रकृति का नियम है
फिर इसे परिवर्तन मान, क्यों नहीं अपने को कहलाते माडर्न ?
रीमिक्स, हाय, हेलो भी तो आज का परिवर्तन है, क्यों नहीं हमारी तरह मानते ये गीता की बात ?
समझाऊं कैसे ? शुद्ध नक़ल को कैसे मानु परिवर्तन ?
कैसे बताऊँ कि मौलिकता बिना परिवर्तन, परिवर्तन नहीं
आखिर नक़ल और परिवर्तन मैं कुछ तो फर्क करो |
समझाने की सारी कोशिशें नाकाम गई
आप भी कोशिश कर लो, शायद समझा सको तो बता देना |