Tuesday, December 15, 2009

हिन्दू आक्रामक हो या नहीं ?


हिन्दुओं के लिए दिन-ब-दिन जब परिस्थितियाँ विपरीत होती जा रही हों तो क्या इस अवस्था मैं भी हमारा सहनशील (वास्तविक तौर पे कायर) बने रहना उचित है? मैं समझता हूँ की आज की अवस्था में यदि हिन्दू आक्रामक हो कर दुस्प्रचारियों से लड़े तभी कुछ सुधार आएगा | आज हिन्दुओं का आक्रमणशील होना क्यों जरुरी है, जरा निम्न बिन्दुओं पे गौर करें :

* पिद्दी सा देश पाकिस्तान हमारी नाक मैं दम किये रहता है, क्यूँ ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - आक्रामक पाकिस्तान |

* भारत - ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट मैच, किसके जितने की संभावना ज्यादा है ? शायद  ऑस्ट्रेलिया, क्यूँ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - आक्रामक खेल |

* छोटी सेना लेकर मुहम्मद गौरी ने शक्तिशाली पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया | ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - आक्रामक मुहम्मद गौरी |

* हिन्दुस्तान लीवर का साबुन या अन्य उत्पाद बाजार मैं अब तक टिका है पर टाटा का साबुन और अन्य प्रसाधन उत्पाद गायब क्यूँ ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण हिन्दुस्तान लीवर का - आक्रामकप्रचार और मार्केटिंग |

* भारत - चीन युद्ध, चीन से हमारी सर्मनाक हार, क्यूँ ?   ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - चीन का आक्रामक होना |

* विश्व के उच्चतम तकनीक से लैस पाकिस्तान और अमेरिकी सेना तालिबान को वर्षों की लम्बी लड़ाई के बाद भी ख़तम नहीं कर पाया है, क्यूँ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - तालेबान का आक्रामक होना है |

* मैक्रोसोफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टम से कहीं अच्छा एपल का ऑपरेटिंग सिस्टम है, फिर भी बाजार मैं मैक्रोसोफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टमकी ही धूम है, क्यूँ? ढेर दारे कारणों मैं एक मुख्य कारण - मैक्रोसोफ्ट का आक्रामक प्रचार और मार्केटिंग होना है |
......

ऐसे हजारों उदाहरण हैं | ऐसा भी नहीं है की आक्रामक हो जाने भर से ही जीत निश्चित हो जाती है, पर ये भी उतना ही सत्य है की आक्रामकता के अभाव मैं अंततः विजय दूर भागती तो है ही , साथ ही आक्रामक लोग प्रतिदिन सर का दर्द बने रहते हैं |

क्रिस्चन मिसनरी दिनों-दिन बेहद सुनियोजित रणनीती से हिन्दुओं को हूक्स & क्रूक्स के सहारे धर्म परिवर्तन करवा रही है | जाकिर नायक जैसे इस्लामी प्रचारक भी आये दिन हिन्दू धर्मग्रंथों का खुल्लम खुल्ला मजाक उड़ा रहे हैं | ब्लॉग जगत को ही लीजिये सलीम खान, मुहम्मद उमर खैरान्वी, अंजुमन, कासिफ आरिफ जैसे लुच्छे रोज हमारी धर्म ग्रंथों का मजाक उड़ा रहा है | कोई हिन्दू यदि ब्लॉग के जरिये ही सही उनके साजिशों का पर्दाफास करता है तो कई सम्माननीय हिन्दू ब्लॉगर शांति-शांति या उनको ignore कीजिये या आलेख को कीचड़/मैले मैं पत्थर कहकर साजिशों का पर्दाफास करने वालों को हतोत्साहित करते हैं | सम्माननीय ब्लॉगर की सुने तो मतलब यही निकलता है की यदि कोई गन्दगी फैला रहा है तो उसे फैलाने दो आप गन्दगी फैलाने वालों को कुछ मत कहो | महात्मा गाँधी ने भी कहा था की "पाकिस्तान उनकी लाश पे ही बनेगा" .. पाकिस्तान उनके जीते-जी बन गया गाँधी जी देखते रह गए | संतों की भाषा संत और सज्जन ही समझते हैं, दानवों से दानवों की भाषा मैं ही बात की जानी चाहिए | अलबेला खत्री जी ने कुछ दिनों पहले बहुत सही अपील की थी वही अपील दुहराता हूँ  "पत्थर उठाओ और गन्दगी फैलानेवालों के ऊपर चलाओ" |

वरिष्ट और सम्माननीय ब्लोग्गरों से नम्र निवेदन है की आप वरिष्ट हैं और आप जाकिर नायक, सलीम खान ......जैसे लोगों की साजिशों का पर्दाफास करने में उर्जावान लेखकों का मार्गदर्शन कीजिये, प्रोत्साहन दीजिये | मोर्चे पे जवान ही लड़ता है  अब उर्जावान ब्लॉगर (जवान) को यदि वरिष्ट ब्लॉगर (कर्नल, लेफ्टिनेंट ...) से प्रोत्साहन नहीं मिलेगा तो जवान लडेगा कैसे?

29 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

राकेश जी,
आपने एक ज्वलंत मुद्दा उठाया था, मैं भी बीसियों बार इस तरह के मुद्दों पर लिख चुका ! मगर अफ़सोस कि यह सब लिखे किसके लिए ? दुःख के साथ लिखना पड़ता है कि खंडित हिन्दू स्वार्थी, और अधर्मी( भ्रष्ट) है ( अधिकाँशत, ६० और ४० का अनुपात मान लीजिये ) और इल्जामों से बचने एवं अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए उसने छद्म धर्म निरपेक्षता का आवरण पहन रखा है ! यह आज से नहीं बल्कि आदि काल से चला आ रहा है जिसकी परिणिति में हमने अनेको बाहरी लोगो की गुलामियाँ की, फिर तो आप समझ सकते है कि भैंस के सामने बीन बजाने का क्या परिणाम होगा ?

Saleem Khan said...

कोई भी अगर आक्रामक होता है तो उसकी वजह अति-आक्रामकता या ज़ुल्म के खिलाफ हो... तो ही अच्छा है. वरना बेवजह आक्रामकता हमेशा ऋणात्मक परिणाम ही देती है और हम अगर अपने देश के इतिहास पर नज़र डालें तो हम ऐसे ऋणात्मक परिणाम कई बार झेल चुके हैं.

हम आक्रामक हो...सुधार के लिए. हम आक्रामक हो...विकास के लिए. हम आक्रामक हो...सही सभ्यता के विस्तार के लिए. हम आक्रामक हो...भेदभाव उंच-नीच, ज़ात-पांत के विरुद्ध. हम आक्रामक हो........

Anonymous said...

You blemed!

ब्लॉग जगत को ही लीजिये सलीम खान, मुहम्मद उमर खैरान्वी, अंजुमन, कासिफ आरिफ जैसे लुच्छे रोज हमारी धर्म ग्रंथों का मजाक उड़ा रहा है

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

@सलीम जी सबसे मुख्य बात तो आप भूल ही गए .... हिन्दू आक्राम हो अपनी अस्मिता, संस्कृति ... की रक्षा के लिए

@Anonymous जी इसमें ब्लेम वाली क्या बात है? ... मैंने वही कहा है जो सत्य है .... अब इस सत्य को आप ब्लेम समझ सकते हैं पर इससे सत्य नहीं बदलने वाला ...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

आपकी हर बात से बिलकुल सहमत हूँ...... विचारनीय लेख और मुद्दा.....


आप कहाँ थे ? बहुत दिनों के बाद....................?

Pramendra Pratap Singh said...

एक बात को तो मानना पड़ेगा कि जब जब हिन्‍दू शक्ति कमजोर हुई है बाहरी शक्तियाँ प्रभाव छोड़ने पर कामयाब हुई है। हिन्‍दूओ को अपनी शक्तिशाली होना होगा किन्‍तु शक्ति के मद मे नही जाना चाहिये, हमें अतीत से सीखना चाहिये।

दुष्‍ट की दुष्‍टता का मान मर्दन जरूरी है, कुछ आधुनिक सुधार के मसीहा खुद नंगे घूम रहे है और दूसरो को अर्द्ध नग्न देख कर हँस रहे है किन्‍तु वो भूल जाते है कि दुनिया उनकी सब असलियत जानती है कि कितने बडे पैदाइसी नंगे हो तुम लोग।

समाज सुधार का ढ़ोग करने वालो पहले अपने गिराबान मे झाककर देखो की खुद कितनी गंदगी समेटे हुये हो, हिन्‍दू पतितो न भवेत का मंत्र हम जानते है, आज जो दलित हिन्‍दू है वह सिर्फ इस्‍लाम के प्रभाव के कारण है क्‍योकि जो मुस्लिम न बना उसे इस्‍लाम शासन मे यह सब काम करना पड़ा।

अगर अब दोबारा हिन्दू धर्म में अपना सफाई अभियान चालने की कोशिश की तो इस्लाम को भी दूसरे पलड़े मे रखकर तौलने मे कोई कोताही नही बरती जायेगी। सौहार्द के साथ रहने मे ही भलाई है।

महाशक्ति

Anonymous said...

पहले घर का कूड़ा साफ़ कर लें, हम उसी 'आक्रामकता'से, फिर देखते हैं कि और क्या काम करना है। पहले अपने पोंगा संतों के ख़िलाफ़ आक्रामक बनें, फिर हरियाणा और राजस्थान जैसे प्रदेशों में भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़, फिर ओछी राजनीति के ख़िलाफ़, दहेज के ख़िलाफ़, महिलाओं से भेदभाव के ख़िलाफ़। हां, ये आक्रामकता 'उस' आक्रामकता से थोड़ी मुश्किल ज़रूर है पर शुरुआत यहीं से करें तो बेहतर होगा।
बाक़ी, महात्मा गांधी को आप सभ्य भाषा में गरिया गए तो कोई बात नहीं, उन्हें गाली देना आजकल फ़ैशन में है!

अजय कुमार झा said...

राकेश जी आजकल जिस तरह का माहौल और परिस्थितियां जबरन पैदा की जा रही हैं उसके बावजूद भी हिंदू आक्रामक नहीं होगा तो ये उनके लिए आत्मघाती साबित होगा , ये सिर्फ़ हिंदू सहिष्णुता का ही दुष्परिणाम है कि कभी कोई ब्रितानी कंपनी किसी हिंदू देवी देवता का चित्र अपने जूते चप्पलों पर छाप देता है तो कभी कोई और किसी बहाने से गरिया के चला जाता है । हां आक्रामकता , यदि अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी के प्रति भी उतनी ही बनाए रखी जाए तो क्या बात हो । रही बात गांधी जी की नीतियों की तो समय के साथ सिद्धांतों और विचारों को व्याख्या करनी पडती है तभी उन्हें अपनाने या ठुकराने की बात की जाए । राकेश जी आप बिल्कुल सही रास्ते पर हैं और हमें अपने साथ ही पाएंगे ....

Pramendra Pratap Singh said...

@ isibahane गांधी का जैसा रूप जब दिखेगा, उसी हिसाब से उनके प्रति आचरण भी होगा, गांधी को दूध के धुले नही थे जो कृत्‍य उन्‍होने आजादी की लड़ाई के समय थे वह कताई समर्थन योग्‍य नही थे। हाँ उनके दक्षिण अ‍फ्रीका सम्बन्धित क्रिया कलापो की मै भी प्रशंशा करता हूँ, मानूँगा कि बंदे में दम था, पर भारत में वह दम गांधी की महत्‍वकांक्षा बन गई और उसके परिणाम स्‍वरूप आज परिणाम हमारे समाने है।

गांधी वाद खडा चौराहे पर !
क्‍या गांधी को राष्‍ट्रपिता का दर्जा दिया जाना उचित है?
गांधी का अहं
महात्‍मा गांधी - एक आधुनिक कटु सत्‍य
गांधी का ब्रह्मचर्य और स्‍त्री प्रसंग

गांधी जी के आफ्रीका प्रवाह के दौरान जो साहस था, जो एक आम को अंग्रेजो के समाने खड़ा होने की ताकत दी पर वह ताकत भारत मे उनका अभिमान बन गई थी, इस पर जल्‍द लिखने वाला हूँ, वैसे गांधी जी से प्रभावित हुये नही रहा जा सकता है, हर व्‍यक्ति मे कमी होती है।

Unknown said...

@ isibahane - हिन्दू पोंगापंथियों के खिलाफ़ तो जब-तब आवाज़ें उठती रही हैं, समाज सुधार भी हुए हैं, छुआछूत-दहेज-बाल विवाह-भ्रूण हत्या आदि विकार, खत्म नहीं तो कम अवश्य हुए हैं। यह सही है कि उतनी आक्रामकता के साथ नहीं हुए जितने होने चाहिये थे। मुझे लगता है कि अपनी आन्तरिक समस्याओं से निपटने में हिन्दू खुद सक्षम हैं, परन्तु जब कोई "बाहरी" व्यक्ति उसे उपदेश देने लगता है तब उसे अपनी समस्याएं भूलकर उस "दुषप्रचारक" खिलाफ़ निश्चित रूप से आक्रामक हो जाना चाहिये।

Unknown said...

इतिहास गवाह है कि हिन्दुओं ने कभी भी किसी पर बिना किसी कारण के आक्रमण नहीं किया है। किन्तु यह भी सही है कि अत्याचार को भी उसने नहीं सहा है। यदि रावण ने सीता का हरण नहीं किया होता तो राम कभी उस पर आक्रमण नहीं करते। उसी प्रकार से कौरवों ने पाण्डवों पर अत्याचार न किया होता तो कृष्ण कभी भी अर्जुन सहित पाण्डवों को कौरवों के संहार का उपदेश न देते।

हिन्दुओं ने सदैव ही अत्याचार का दमन किया है। आज भी हिन्दुओं को अपनी परम्परा के अनुसार अत्याचार का दमन अवश्य करना चाहिये किन्तु बिना किसी कारण के जबरन आक्रामक बनना कदापि उचित नहीं है।

Anonymous said...

आक्रमण का आह्वान करने वालो पहले ठीक से हिंदी तो लिखना सीख लो...
मरता गरीब का बेटा है और सुर्खरू रहनुमा होते हैं...सरहद पर कभी किसी सिंघल, तोगड़िया या ठाकरे या आडवाणी का बेटा नहीं मरता है। मरता हमेशा गरीब का बेटा है। क्या यूरोपीय देशों की तरह ये महानुभाव अपने बेटों को सेना में भर्ती करेंगे?

हिन्दू आक्रामकता की बात करने वालो तमाम आह्नवान, तमाम फीलगुड के बावजूद पिछले दो लोकसभा चुनाव से हिंदूवादी ताकतें लगातार हास्यास्पद होती जा रही हैं.

DIVINEPREACHINGS said...

प्रिय राकेश,

आपने बहुत ही विचारणीय विषय को उठाया है । इस विषय पर किसी कुतर्क को स्वीकार ही नहीं किया जा सकता है । यह लडाई कई स्तरों पर लडनी पडेगी । जहाँ तक ब्लॉग्स का प्रश्न है, हमारे पास दो रास्ते हैं -- पहला जो हम उन्हें बताते बताते थक गए हैं कि आपके पास जो भी जैसा भी इस्लामिक सामान है उसे बेचो अगर खरीदार मिले तो, लेकिन हम कुरान पाक को अपने तरीके से तोड-मरोड कर पेश करने का पाप नहीं कर रहे हैं और अगर आप भी इंसान के बच्चे हो तो हमारे धर्म ग्रंथों का कहीं ज़िक्र भी मत करो । हमारे धर्म ग्रंथों में क्या लिखा है हम अपने मतावलम्बियों को समझा लेंगे । पर लगता यह है कि यह एक खास गुट दूसरे पाकिस्तान के सपने देख रहा है .. तो इन्हें जान लेना चाहिए कि चाहे किसी का राज हो हिन्दुओं में अब इतनी शक्ति है कि किसी भी राष्ट्रद्रोही का सिर कुचल दिया जाएगा और सरहदों पर ऐसा हो भी रहा है । हमारे सैनिक चौकन्ने हैं और हम सतर्क ।

कष्ट इन विधमियों की गतिविधियों से कम होता है....ज़्यादा दुख अपने छ्द्मधर्मनिरपेक्ष बच्चों के घटिया सोच पर होता है जो बिना इतिहास को जाने अपने आप को हिन्दुत्व का हितैषी समझते हैं ।
आप एक समुचित रणनीति तैयार करें... हमारे पास विवेकशील मार्गदर्शक जैसे आदरणीय अवधिया जी, चिपलूनकर जी, गोदियाल जी, स्मार्ट इंडियन और अदा जी हैं ...जोशीले नौजवान तो बहुतेरे हैं .... अपने सनातनधर्मी बन्धुओं को जागृत करने में तथा हमारे यज्ञ में बाधा पहुँचाने वाले राक्षषों से निपट लिया जाएगा । बस श्री राम को शिव जी की पूजा भर करनी होगी । जय श्रीराम ।

Anand G.Sharma आनंद जी.शर्मा said...

प्रिय राकेश जी , आपका विश्लेषण प्रतिक्रियात्मक है, सामायिक है, प्रासंगिक है, सराहनीय है, ऐवम विचारणीय है . सर आइजक न्यूटन के भौतिकी के तृतीय सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक क्रिया की एक समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है. परन्तु यह सिद्धांत भौतिकी है और हिन्दुओं का मस्तिष्क भौतिक न हो कर पराभौतिक है, पारलौकिक है. आम हिन्दू इन सब आक्रमणों को विधि का विधान मान कर अथवा अपने पूर्व जन्म का पाप मान कर स्वीकार करता आया है और इसीलिए किसी भी आक्रमण का प्रतुत्तर नहीं दिया. यही कारण है की कोई भी ऐरा गैरा टुच्चा दुश्मन हिन्दू को लतिया जाता है क्योंकि उसे पूरा विश्वास है कि पूरे ब्रह्माण्ड में हिन्दू से ज्यादा विभाजित कोई भी समाज ऐवम संस्कृति नहीं है और यदि किसी स्वाभिमानी हिन्दू ने आक्रमण का प्रतुत्तर देने की कोशिश की तो उन्हीं में से कोई भेदिया, कोई छुद्रमति, कोई लोलुप, कोई चाटुकार, कोई लम्पट, कोई सिद्धान्तहीन, कोई कापुरुष अवश्य ही उस कोशिश को निष्क्रिय कर देगा. और फिर हिन्दू समाज में तो उपरोक्त विशेषणयुक्त महानुभावों की कभी भी कोई कमी नहीं रही है. हे विद्वत्त्जनों, आक्रमण करने के पहले किसी एक चाणक्य जैसे देशभक्त व्यक्ति को अपना गुरु ऐवम नेता बनाना पड़ता है, आपसी भेदभाव भुलाना नहीं - बल्कि सदैव के लिए मिटाना पड़ता है, संगठित होना पड़ता है, व्यूह रचना करनी पड़ती है. कोई भी आक्रमण विधिवत होता है - न कि मन में आया और पत्थर फेंक दिया - लो हो गया आक्रमण. मूर्खतापूर्ण प्रतुत्तर के भयंकर ऐवम दूरगामी दुष्परिणाम होते हैं और विजय श्री तो मिलने से रही. अतः हे विद्वत्त्जनों, सबसे पहले किसी चाणक्य को खोजो अथवा पैदा करो. अभीष्ट स्वतः सिद्ध होने लगेगा.

Anand G.Sharma आनंद जी.शर्मा said...

पुनश्च : सर्व प्रकार से संगठित हुए बिना किसी भी आक्रमण कि परिकल्पना मनमैथुन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है. मनमैथुनपर कोई रोक नहीं है - चाहे जितना करो.

रंजना said...

बात तो सही है..लेकिन बात जब सभ्यता संस्कृति के संरक्षण की हो तो अन्य धर्मावलम्बियों की अपेक्षा सोचनीय स्थिति हिन्दुओं की ही है,जो अपने ही हाथों अपनी सभ्यता संस्कृति का क्रिया कर्म करने का कोई उपक्रम नहीं छोड़ते..अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति आक्रामक होने भर में मुझे इस समस्या का हल नहीं दीखता..इसके लिए बहुत व्यापक स्टार पर प्रयास की आवश्यकता है,जिसमे से उन लोगों का मुखर विरोध भी शामिल है जो हिन्दुओं का मखौल उड़ाते हैं,या धर्म परिवर्तन के सघन अभियान छेड़े हुए हैं...

मैं साधुवाद देती हूँ...आज जब सहिष्णुता के नाम पर लोग कायरता का वरण कर चुके हैं,निर्भीक होकर तुमने आवाज उठाया है...

उम्दा सोच said...

हिन्दुओ के विरुद्ध जो षड़यंत्रकर दमनकारी मार्ग पर चल रहे है उनके दमन के लिए आक्रामक होना क्या दोषपूर्ण है ??

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

@पंकज जी जब आप जैसे हिन्दू सच के प्रति सुतुर्मुर्गी रवैया अपनाए रहेंगे ... तो हिंदूवादी शक्तियां हास्यास्पद होंगी ही | रही बात हिंदी सिखने की... तो हिंदी नहीं सिखने के बावजूद भी कई प्रखर हिन्दू हैं | हमने तो ये नहीं देखा की हिन्दू होने के लिए हिंदी आवश्यक ही है ...|

देश पे ६० वर्षों तक सासन करने वाले सीमा पे लड़ने के लिए नहीं गए बल्कि हमारे जाबाज सनिकों द्वारा जीते गए जमीं को भी ये ससक दान मैं दे आये |

वैसे भी जी हजुरी करने वाली मानशिकता वालों को आक्रामकता और देशभक्ति कहाँ समझ मैं आती है ...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सपेरे की बीन पर
मत नाचो
सर्प बन..
धर्म छोड़ो
सिर्फ सोंचों
इंसानियत का कैसे हो भला
आदमी बन।

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

@देवेन्द्र जी आलेख का एक सन्देश ये भी है की सेकुलर सपेरों की बीन पे हिन्दू ना नाचे |

माफ़ कीजिएगा मैं धर्म छोड़ने के पक्ष मैं नहीं हूँ .... क्योंकि धर्म के छोड़ने से अधर्म को अंगीकार करना पड़ता है | और जहाँ तक इंसानियत की बात है तो इंसानियत धर्म की पहली सीढ़ी है | धर्म इंसानियत से आगे की बात ही करता है | धर्म का सही अर्थ तो हमने यही समझा है ... पता नहीं आपने धर्म का संकुचित अर्थ क्यों लगा रखा है?

धर्म और इंसानियत ये कहता है की आत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाओ .... | इंसानियत ने ऐसा तो कहीं नहीं कहा है की आत्याचार का विरोध मत करो ..

सुनील दत्त said...

हिन्दूओं के पास सैनिकीकरण के सिवाय अब और कोइ रास्ता नहीं बचा है

अजित वडनेरकर said...

बेहद सतही पोस्ट।
गंभीर सामाजिक राष्ट्रीय समस्या के निराकरण के लिए आपने
प्रबंध गुरु के अंदाज में जो नुस्खा रखा है वह हास्यास्पद है।
ऐसी सतही सोच के चलते ही बिना पढ़े लोग प्रेमचंद और तुलसीदास के साहित्य से भी चार पंक्तियों पर बवाल मचा सकते हैं। चाहे दोनों की एक लाइन उन्होंने न पढ़ी हो।
आक्रामकता न हुई, बोर्नविटा की इंस्टैंट शक्ति हो गई। आपने फर्माया और उधर फतह मिली।

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

अजित जी आप जैसे पत्राकार लोगों का विचार ही महान है ... बाकी सबका विचार तो सतही ही है... वाह बहुत खूब .. ?

और हाँ 6M वालों को बाकी सबकी बात हाश्यास्पद ही लगती है | वैसे मुझे एक बात समझ में आ गई है की आप भी 6M थैले के चट्टे बट्टे हैं |

Ganesh Prasad said...

अंततः भारत पाकिस्तान से बहुत आगे है. ! उन्हें और उनके परस्तो को हकलान हो लेने दो.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

'धर्म छोड़ो' से आशय यह कि धर्म के झगड़े में मत पडो..सभी धर्म अच्छे कर्म की ही शिक्षा देते हैं...इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है.

ZEAL said...

@-हिन्दू आक्राम हो अपनी अस्मिता, संस्कृति ... की रक्षा के लिए

I agree.

An element of aggression is indeed required. How long we can live like spineless creatures.

Timely decisions based of experience and circumstances may solve issues.

Regards,

Anonymous said...

To claim that "every religion preaches peace" is equivalent to claiming that "every Nation has same foreign policy".

We should not miss to "investigate" what others are preaching...because their preachings may result in threatening our existence itself...

D. M. BARCO DETECTIVE AGENCY said...

Very nice