राजकुमार जी ने आपने पोस्ट मैं मंदिर मैं फोटो खींचने की मनाही को गलत ठहराते हैं | उनकी पूरी पोस्ट यहाँ पढ़ी जा सकती है मंदिरों में फोटो खींचना क्यों मना है?
उन्होने फोटो खींचने की मनाही को धार्मिक स्थलों के व्यापारिकरन से जोड़ा है | कुछ हद तक उनकी बात भी सही है और मेरा भी मानना है की धार्मिक स्थलों के व्यापारिकरन का विरोध होना ही चाहिए, पर गलत तरीके से फोटो खींचने के प्रचालन को बढावा देकर नहीं |
जिस किसी भी मंदिर मैं फोटो खींचने की कोई मनाही नहीं रहती है, वहां अक्सर लोगों का नंगापन देखने को मिलता है | लगभग ९०% लोग अपना नितंभ (अपना पिछवाडा) भगवान की मूर्ति की तरफ करके ही फोटो खिंचवाते हैं | फोटो खिंचवाने वाला बड़ा और भगवान् पीछे छोटे | फोटो भगवन की मूर्ति के आगे बैठ कर या मूर्ति के बगल मैं खड़े रह कर भी खिंचवाई जा सकती है | पर ऐसा कोई करता नहीं, क्योंकि हर आदमी को भगवान् के फोटो से ज्यादा अपना फोटो बड़ा दिखाना है |
भले ही गिने-चुने समझदार लोग सिर्फ भगवान् का फोटो खींचते हो और इसपे कोई मना करे तो बुरा जरुर लगेगा ... पर जरा दुसरे दृष्टिकोण से भी सोचें की मंदिर प्रशासन कितने लोगों को ये समझता फिरे की किस तरह की फोटो allowed होगी और किस तरह की नहीं ?
एक दूसरा बड़ा कारण ये भी है की आम भारतीय किसी पर्यटन स्थल या अन्य जगहों का वास्तविक आनंद ना लेकर फोटो खींचने मैं ही मशगुल रहते हैं | खैर लोग फोटो खींचे या कुछ और करें ये तो उनका व्यक्तिगत मामला है | पर मंदिर जाने का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए इश्वर से सन्निकटता | इस सन्निकटता मैं मोबाइल फ़ोन या कैमरे की क्या आवश्यकता?
आये दिन ये देखने को मिलता है की मंदिर मैं भी पूजा के समय भी मोबाइल फ़ोन पे लोग बात करते रहते हैं, इससे अन्य भक्तों को असुविधा होती है | क्या मंदिर मैं २०-१५ मिनट के लिए मोबाइल फ़ोन बंद नहीं रखा जा सकता ? यही कहानी कामो बेश कैमरे पे भी लागू होती है | भगवान् - भक्ति, पूजा पाठ छोड़ कर ज्यादातर लोग फोटो खींचने मैं ही मशगुल हो जाते हैं |
उन्होने फोटो खींचने की मनाही को धार्मिक स्थलों के व्यापारिकरन से जोड़ा है | कुछ हद तक उनकी बात भी सही है और मेरा भी मानना है की धार्मिक स्थलों के व्यापारिकरन का विरोध होना ही चाहिए, पर गलत तरीके से फोटो खींचने के प्रचालन को बढावा देकर नहीं |
जिस किसी भी मंदिर मैं फोटो खींचने की कोई मनाही नहीं रहती है, वहां अक्सर लोगों का नंगापन देखने को मिलता है | लगभग ९०% लोग अपना नितंभ (अपना पिछवाडा) भगवान की मूर्ति की तरफ करके ही फोटो खिंचवाते हैं | फोटो खिंचवाने वाला बड़ा और भगवान् पीछे छोटे | फोटो भगवन की मूर्ति के आगे बैठ कर या मूर्ति के बगल मैं खड़े रह कर भी खिंचवाई जा सकती है | पर ऐसा कोई करता नहीं, क्योंकि हर आदमी को भगवान् के फोटो से ज्यादा अपना फोटो बड़ा दिखाना है |
भले ही गिने-चुने समझदार लोग सिर्फ भगवान् का फोटो खींचते हो और इसपे कोई मना करे तो बुरा जरुर लगेगा ... पर जरा दुसरे दृष्टिकोण से भी सोचें की मंदिर प्रशासन कितने लोगों को ये समझता फिरे की किस तरह की फोटो allowed होगी और किस तरह की नहीं ?
एक दूसरा बड़ा कारण ये भी है की आम भारतीय किसी पर्यटन स्थल या अन्य जगहों का वास्तविक आनंद ना लेकर फोटो खींचने मैं ही मशगुल रहते हैं | खैर लोग फोटो खींचे या कुछ और करें ये तो उनका व्यक्तिगत मामला है | पर मंदिर जाने का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए इश्वर से सन्निकटता | इस सन्निकटता मैं मोबाइल फ़ोन या कैमरे की क्या आवश्यकता?
आये दिन ये देखने को मिलता है की मंदिर मैं भी पूजा के समय भी मोबाइल फ़ोन पे लोग बात करते रहते हैं, इससे अन्य भक्तों को असुविधा होती है | क्या मंदिर मैं २०-१५ मिनट के लिए मोबाइल फ़ोन बंद नहीं रखा जा सकता ? यही कहानी कामो बेश कैमरे पे भी लागू होती है | भगवान् - भक्ति, पूजा पाठ छोड़ कर ज्यादातर लोग फोटो खींचने मैं ही मशगुल हो जाते हैं |
21 comments:
बात तो आपने सोलह आने सही कही है |
आपकी ये प्रेरणादायी बातें निश्चित रूप से एक नयी ऊर्जा का संचार करेगी.
राजकुमार जी भी सार्थक कारण गिनवाया और आपने भी सार्थक ,
आपकी बातों में भी दम है.
राकेश जी,
आपने उन बातों को सामने रखा है जो बातें हमसे छूट गई हैं। आपने बिलकुल सही कहा है। लेकिन यहां पर मुद्दा यह है कि मंदिर के बाहर भगवान की फोटो बिक रही है, पर मंदिर में फोटो खींचना मना क्यों है। कम से कम भगवान की फोटो खींचने की मनाही नहीं होनी चाहिए। वैसे भी भगवान से बढ़कर कोई नहीं है। अगर कोई मंदिर में जाकर बेहुदगी करता है तो यह उसकी मानसिकता है। लोग तो मंदिरों में बलात्कार तक कर डालते हैं। अब जिसकी जैसी मानसिकता वह तो वैसा ही करेगा। आपने अच्छी बातों को सामने रखा है, आप साधुवाद के पात्र हैं।
बिल्कुल सटीक बात है !!
राजकुमार जी इस समस्या का हल निकल सकता है यदि मंदिर प्रशाशन और भक्त थोडा सहयोग करें| मंदिर मैं बड़े बड़े अक्षरों मैं यदि ये लिखा जाए की - इस मंदिर मैं आप अपनी या किसी अन्य की फोटो नहीं खिंच सकते | सिर्फ और सिर्फ भगवान् की मूर्ति की फोटो खिंची जा सकती है |
लेकिन ऐसा मंदिर के पांडे लोग करेंगे नहीं, क्योंकि इसमे उनका स्वार्थ सिद्ध नहीं होगा | और आम जन भी मौका मिलते ही अपनी औकात पे आ जायेंगे ... | पर इन पांडे और नागापन दिखानेवाले लोगों के बीच अच्छे लोग पिस रहे हैं ... ऐसा मंदिर के अलावा कई अन्य जगहों पे भी हो रहा है | फिर भी गन्दगी साफ़ करने के लिए पहल तो करनी ही होगी ..
राकेश जी सहमत हूं आपसे।
good ! very valid argument .
सटीक पोस्ट.
सच कहा है .............. आस्था के स्थान पर आस्था होनी चाहिए ..........
लगभग ९०% लोग अपना नितंभ (अपना पिछवाडा) भगवान की मूर्ति की तरफ करके ही फोटो खिंचवाते हैं | फोटो खिंचवाने वाला बड़ा और भगवान् पीछे छोटे | फोटो भगवन की मूर्ति के आगे बैठ कर या मूर्ति के बगल मैं खड़े रह कर भी खिंचवाई जा सकती है |
Valid point.
आपके कथन से शब्दश: सहमति है । ऎसा करने के पीछे कुछ तो धार्मिक स्थलों का व्यापारीकरण है ओर कुछ लोगों की नासमझी....
Your Reasons are very logical however, security could be one of the reason as well....
..May be not . But that's waht i think atleast for few of the temples.
Rakesh ji, Sahmat hoon aapki baat se Darpan bhai ka kahna bhi sahi hai...
sacha hai ....... aastha ki jagah astha hi honi chahiye..........
achcha laga yeh lekh........
Rakesh bhai...... aaj aapka poora blog dekha...... aur padha..... yeh mujhe bahut achcha laga ki mere aur aapke vichaar kaafi hadd tak samaan hain.....
bahut achcha laga.....
आपने ठीक ही कहा
ये बात ज्यादातर लोग जानते है परन्तु इस बारे में किसी न सोचा नहीं
आशा करता हूँ आगे से कमसे कम हम और हमरे संपर्क वाले ऐसा न करे
धन्यबाद !
निद्रा तोड़ने वाली पोस्ट.शुक्रिया आपने आँखे खोल दी.
hummmm........
सार्थक प्रयास
आप जैसे जागरूक नागरिक की देश को बहुत
ज़रुरत है
डॉ.शालिनिअगम
shalini8989@gmail.com
www.aarogyamreiki.com
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