Wednesday, October 14, 2009

कामसूत्र विवेचन : आम धारणाओं से अलग

आम तौर पे कामसूत्र को सिर्फ़ काम और यौन क्रियाओं का पुस्तक माना जाता है | ये सत्य है कि काम क्रियाओं का विस्तार वर्णन है इस ग्रन्थ में, पर धर्म, अर्थ और मोक्ष पर भी चर्चा रोचक और सुन्दर है | आम धारणा (काम क्रियाओं) से हट कर महर्षि वात्सयायन रचित कामसूत्र को देखने का प्रयास है ये पोस्ट | कामसूत्र की कुछ मुख्य बातें बिन्दुवार रुप मैं इस प्रकार रखा है :  

• भारतीय सभ्यता की आधारशिला चतुर्वर्गिय – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है | मनुष्य की समस्त अभिलाषाएँ इन्हीं चारों के अन्तर्गत रहती हैं| इसमें मोक्ष अन्तिम लक्ष्य है | मनुष्य के शरीर के पोषन और संवर्धन के लिए अर्थ की; मन तुष्टि के लिए काम की; बुद्धि के लिये धर्म की और आत्मा के लिए मोक्ष की आवश्यकता पङती है | ये आवश्यकताएं अनिवार्य हैं, अपरिहार्य हैं | क्योंकि बिन भोजन-वस्त्र के शरीर कृश निष्क्रिय बन जाता है | काम बिना स्त्री का मन कुण्ठित – निकम्मा बन जाता है | बिना धर्म (सत्य, न्याय) के बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है | और बिन मोक्ष के आत्मा पतित बन जाता है |  

बिना शरीर के मोक्ष साधना नहीं हो सकती और मोक्ष साधना के बिना अर्थ, काम को सहयोग नहीं मिल सकता | इसलिए मोक्ष की सच्ची कामना रखकर ही अर्थ और काम का उपभोग करना चाहिए | बिना मोक्ष कामना के अर्थ और काम का उपभोग स्वार्थी और कामी लोग ही करते हैं | ऐसे लोगों को समाज, राष्ट्र का शत्रु बताया गया है | ये तो प्रकट ही है की जहां स्वार्थ और कामलोलुपता बढ जाती है, वहीं समाज और राष्ट का पतन हो जाता है |  

• महर्षि वात्सयायन कहते हैं, अर्थ सिद्धि के लिये तरह-तरह के उपाय करने पडते हैं इसलिये उन उपायों को बतानेवाले अर्थशास्त्र की आवश्यकता पडती है | सम्भोग के पराधीन होने के कारण स्त्री और पुरुष को उस पराधीनता से बचने के लिये कामशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता पड़ती है | महर्षि वात्सयायन ने कामसूत्र में मुख्यतया धर्म, अर्थ और काम की व्याख्या की है |  

• कामशास्त्र से ही ये जाना जाता है की संभोग का सर्वोत्तम और आध्यात्मिक उद्देश्य है – पति-पत्नी की आध्यात्मिकता, मनव प्रेम और परोपकार तथा उदात्त भावनाओं का विकास| हिंदू सभ्यता की बुनियाद वेद की शिक्षा ही है | संसार से उतना ही अर्थ और काम लिया जाय जिससे मोक्ष को सहायता मिले | मुमुक्षु को उतने ही भोग्य पदार्थ को लेना चाहिए जितने के ग्रहण करने से किसी प्राणी को कष्ट ना पहुंचे |  

• काम का प्रमुख भाग आकर्षण है अथवा आकर्षण का प्रमुख अंग काम है | यही आकर्षण जब बड़ों के प्रति होता है तो ये श्रद्धा, भक्ति आदि पुनीत भावों मैं दिखाई पड़ता है; यही आकर्षण बराबर वालों के प्रति मित्रता, प्रेम और सखाभाव के रुप मैं परिणत होता है | यही अपनों से छोटों के प्रति दया, अनुकम्पा के रुप मैं प्रकट होता है | वही काम, माता के स्तनों मैं वात्सल्य के रुप मैं, प्रेमी का आलिंगन करते समय कामरुप में और वही काम दिन-दुखियों के प्रति करुणा कृपा के रुप में अवतरित होता है |  

• सूर्य अपनी शक्ति से पृथ्वी का रस ग्रहण करता है और चन्द्रमा धरती पर सुधावर्षण करता है | सौरतत्व स्त्री का रज चन्द्रतत्व मय पुरुष के वीर्य को खींच कर अपने अन्दर धारण करता है | यही स्त्री - पुरुष के परस्पर आकर्षण का मुख्य कारण है |

11 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

कामसूत्र यह बताता है कि स्त्री-पुरुष काम संबंध पूर्ण रूप से प्रेम और स्वेच्छा से स्थापित होने चाहिए और उन में किसी तरह की बाध्यता नहीं होनी चाहिए।

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

From E-mail (By Subrat)
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Bhai, bilkul sahi likha hai aapne, kam aur kamsutra ka uddeshya, jeevan ko balance main laane aur aage badhane ke kaam aata hai...

Unknown said...

ज्ञानवर्धक लेख!

मोक्षप्राप्ति के पूर्व वंशवृद्धि आवश्यक है इसीलिए पाणिग्रहण संस्कार का विधान बनाया गया। और परिणय सूत्र में बंधने वालों के लिए कामसूत्र की रचना हुई।

Mishra Pankaj said...

भाई धन्यवाद , अभे तक तो मै भी कामसूत्र का सिर्फ एक ही मतलब जानता था , कामसूत्र फिल्म देखने के बाद वही मतलब सत्य जान पडा :)
धन्यवाद राकेश भाई

Arvind Mishra said...

आपने वात्सायन कामसूत्र को उसके समग्र परिप्रेक्ष्य में सामने रखा -धन्यवाद !

अजय कुमार said...

achchhi byakhya

Atmaram Sharma said...

कामसूत्र की व्यापक संदर्भों की व्याख्या आपने सरल और संक्षिप्त रूप में दी. अच्छा लगा पढ़कर.

DIVINEPREACHINGS said...

प्रिय राकेश,

आप जो भी चिंतन करतें हैं, लिखते हैं....भर पूर मनोयोग के साथ करते हैं... काम भावना ऐसी ईश्वरीय शक्ति है जो संतति के माध्यम से विश्व का निरंतर नियमन करती है ...मनुष्यों के बीच यही शक्ति संबंधों की नियंता भी है...मातृत्व और स्नेह का जन्म इसके अगले चरण से होता है । पैशाचिक वृत्ति के लोग अपने पापपूर्ण सोच के चलते इसे यंत्रणा और कुकर्म का माध्यम बना देते हैं । प्राचीन काल में राजकुमारों को धर्म,दर्शन के साथ-साथ सामाजिकता की शिक्षा भी दी जाती थी जिसमें इस प्रकार के विषय भी सम्मिलित रहते थे । विवेकशील आलेख के लिए बधाई ।

योगेन्द्र मौदगिल said...

Jai Ho....

दीवाली हर रोज हो तभी मनेगी मौज
पर कैसे हर रोज हो इसका उद्गम खोज
आज का प्रश्न यही है
बही कह रही सही है

पर इस सबके बावजूद

थोड़े दीये और मिठाई सबकी हो
चाहे थोड़े मिलें पटाखे सबके हों
गलबहियों के साथ मिलें दिल भी प्यारे
अपने-अपने खील-बताशे सबके हों
---------शुभकामनाऒं सहित
---------मौदगिल परिवार

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

सच में आपने तो इसकी बहुत ही गहन विवेचना कर डाली......
आशा है कि बहुत से लोगों का भ्रम दूर हुआ होगा ।
दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!!!!!!!!!

SHIVLOK said...

bahut achha lekh hai, bhrantiyon ka nash karke vaicharik shuddhikaran karne vala, tathya parakh lekh hai, unnat bhawon ka vikas karne vala shreshth lekh hai .
dhanyavad