tag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post7093848738972372440..comments2023-07-14T03:07:31.572-07:00Comments on सृजन: हिन्दी ब्लॉग जगत, एक सवाल ?Rakesh Singh - राकेश सिंहhttp://www.blogger.com/profile/03770667837625095504noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-3176482388792735622009-10-31T03:29:46.009-07:002009-10-31T03:29:46.009-07:00kya baat haikya baat haiAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-78250752849438419452009-07-15T11:51:51.916-07:002009-07-15T11:51:51.916-07:00बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्...बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-1211774556709593702009-07-14T08:33:57.730-07:002009-07-14T08:33:57.730-07:00हरकीरत जी मेरे मित्र कमलेश सिंह जी ही वो पत्रकार ...हरकीरत जी मेरे मित्र कमलेश सिंह जी ही वो पत्रकार हैं जिनकी हमलोग चर्चा कर रहे थे | और उनके ब्लॉग का लिंक ये है : http://kamleshksingh.blogspot.com/Rakesh Singh - राकेश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/03770667837625095504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-16712994743342822402009-07-14T03:20:08.766-07:002009-07-14T03:20:08.766-07:00राकेश जी ,
आप लोगों के वार्तालाप हमें भी उस ...राकेश जी ,<br /><br /> आप लोगों के वार्तालाप हमें भी उस गजब का लिखने वाले बॉस ( वह मेरे बास हैं। चूंकि अभी तक अंग्रेजी अखबार में थे, इसलिए अंग्रेजी में लिखते थे। उन्होंने अब हिंदी में लिखना शुरू किया है। और गजब का लिखते हैं। ) को पढने कि इच्छा हो रही है कृपया लिंक दें ....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-52813744689033461982009-07-14T03:12:38.484-07:002009-07-14T03:12:38.484-07:00ये हिन्दी प्रेम कितने दिनों का है ? अभी जो कोई भी ...ये हिन्दी प्रेम कितने दिनों का है ? अभी जो कोई भी लिख रहे हैं उनकी मातृभाषा ही हिन्दी है, हिन्दी मैं ही इनलोगों ने खेला, हशा, रोया, सपने देखे ओर बड़े हुए | किन्तु यही बात हम आने वाली पीढी (अगले ५-१० वर्ष ) के बारे मैं नहीं कह सकते | हमारे बच्छे तो अब अंग्रेजी मैं ही जी रहे हैं | हिंदी तो बमुश्किल ये लोग पढ़-लिख पाते हैं ...<br /><br />आपकी ये बात सच -मुच चिंता का विषय है ...आज की पीढी तो हिंदी से यूँ दूर भागती है कि कभी - कभी सा डर लगता है कि हिंदी का भविष्य क्या होगा .....ब्लॉग में लिखने वाले भी अधिकतर पत्रकार ही हैं.... जो हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हैं ....ऐसे में हिंदी का भविष्य तो अंधकारमय ही लगता है ....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-91873570528253511172009-07-11T11:56:02.552-07:002009-07-11T11:56:02.552-07:00Aap ki rachana bahut achchhi lagi...Keep it up.......Aap ki rachana bahut achchhi lagi...Keep it up....<br /><br />Regards..<br /><a href="http://dev-palmistry.blogspot.com/" rel="nofollow">DevPalmistry : Lines teles the story of ur life</a>Devhttps://www.blogger.com/profile/07812679922792587696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-3071714421042724872009-07-11T08:54:35.512-07:002009-07-11T08:54:35.512-07:00नमस्कार जगदीश भाई ,
कुछ लोग सामने वाले को ऐसे प्...नमस्कार जगदीश भाई , <br /><br />कुछ लोग सामने वाले को ऐसे प्रेरित करते हैं की सामने वाला दुगुनी ऊर्जा से प्रेरित होकर काम आरम्भ कर देता है | मैं आपको उसी श्रेणी मैं रखता हूँ | बचपन से ही हिन्दी साहित्य, संस्कृति (ओर अब जाकर अध्यात्म से भी) से लगाव रहा | ओर इस लगाव को कुछ हद तक दिशा दिया हमारे कमलेश जी ने, हालांकी वो उम्र मैं मुझसे एक-आध साल छोटे होंगे पर मैंने उनसे बहुत कुछ सिखा है | भागलपुर मैं कॉलेज के बाद तो मैं कंप्यूटर वाली लाइन पे आ गया क्योंकी मेरी लेखनी ससक्त नहीं है ओर वैसे भी कमलेश को इतना सुन्दर लिखता देखकर ही खुस था | कॉलेज से लेकर आज तक बस अपनी रोजी रोटी मैं ही व्यस्त हूँ | सच पूछें तो कंप्यूटर वाले काम मैं कभी १०० प्रतिशत रम नहीं पाया | ये मल्टीनेसनल कम्पनी का सर से लेकर पाव तक पूरा पाश्चात्य माहौल अपने अन्दर उतार नहीं पाया | दिल को ऐसी चोट लगती है की क्या बताऊँ ? लेकिन मैं इस पाश्चात्य माहौल को बदल नहीं सकता सो अपने बस एक कोने मैं पड़े रहे | धीरे-धीरे कुछ सार्थक नहीं करने की पीडा बढ़ती रही | ब्लॉग पे प्रतिक्रिया करता था ओर इसी बीच आपका "कैसे पनपीं जातियां" पढी ओर मंत्रमुग्ध हो गया | phir आपने आदेश दिया ओर हम भी पीछे-पीछे हो लिए| <br /><br />मैं आपको तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ , यदि कोई गलती हो तो कान पकड़ कर एक चाटा मार कर मुझे ठीक कीजिये |ओर आपके स्नेह भरे सुझाव, आलोचना का अधिकारी तो मैं शायद बन गया हूँ?<br /><br />- राकेशRakesh Singh - राकेश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/03770667837625095504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-38411922816909347222009-07-11T06:39:59.781-07:002009-07-11T06:39:59.781-07:00ये वक्त का फेर है कि हिंदी कि ये हालात हो गई है जि...ये वक्त का फेर है कि हिंदी कि ये हालात हो गई है जिसका आधिकारिक रुप पिछले 200 सालो में सामने आया है। लेकिन इतिहास में 200 साल बहुत नहीं होते। जबतक अमेरिका का वर्चस्व अर्थव्यवस्था पर रहेगा तबतक तो अंग्रेजी ठीक है लेकिन सीमाहीन भविष्य में निगाहें जमाईये। कई नए क्षत्रप पनप रहे हैं, आश्चर्य नहीं कि हमारा देश भी 100-150 साल में उसमें जगह बना ले। और तबतक अगर हम हिंदी को जिंदा रखने में कामयाब हो गए-जो हम होंगे-तो फिर हमारी भाषा भी लहलहाएगी...क्योंकि हम दुनिया को रोजगार देंगे। मैं हिंदी की विशालता की वजह से इसे मरता हुआ अभी नहीं देखता, भले ही इसका प्रभाव बहुत कम हो। मैं मानता हूं कि आनेवाले वक्त में चीनी और हिंदी फिर से जिंदा होंगे--पश्चिम का किला कमजोर होने का इंतजार कीजिए। हमारे देश में लोग अंग्रेजी इसलिए सीखते हैं कि उन्हे उसमें रोजगार नजर आता है। एक बार ये मुलम्मा हटा तो फिर कुत्ते भी इसमें भौंकना पंसद नहीं करेंगे।sushant jhahttps://www.blogger.com/profile/10780857463309576614noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-63712064410092801662009-07-11T01:16:09.998-07:002009-07-11T01:16:09.998-07:00भाई राकेश
आपकी यात्रा मंगलमय हो। आप शिखर को स्पर्श...भाई राकेश<br />आपकी यात्रा मंगलमय हो। आप शिखर को स्पर्श करें। आपने अनुरोध स्वीकार किया। इसके लिए धन्यवाद। आपके सारे आलेख पढ़ लिए हैं और उन पर टिप्पणी भी लिख दी है। कुछ पारिवारिक व्यस्तताओं के कारण इधर एक सप्ताह से लैपटाप खोलने का मौका नहीं ही मिला था। आपका यह कथन कि हिंदी में पत्रिकाएं नहीं हैं। सही है। इसका कारण भी हमारी अंग्रेजी परस्ती ही है। लेकिन यह ज्यादा दिन नहीं चलने वाला। अगले दस वर्षों में अच्छी हिंदी के जानकार नहीं मिलेंगे। और बाजार को उनकी बेहद जरूरत होगी। क्योंकि तब वेब मीडिया उस बाजार ( हिंदी भाषी प्रदेशो के जनपदीय शहरों और कस्बों ) में भी अपना जाल फैला चुका होगा, जो हिंदी में ही सोचते हैं, हिंदी में ही बोलते हैं और हिंदी जिनकी रग-रग में है। मैं आप से आज की हालत बताऊं। अंग्रेजी अखबार में तो नौकरी पाने के लिए आवश्यक होता है कि आपकी अंग्रेजी अच्छी हो। लेकिन हिंदी अखबार में इस पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता कि आपकी हिंदी अच्छी होनी चाहिए। हिंदी अखबार में कितने लोग ऊंचे पदों पर पहुंच गए हैं और सगर्व उद्घोषित करते हैं कि मेरी हिंदी कमजोर है। लेकिन आप विश्वास मानें ज्यादा दिन ऐसा नहीं चलेगा। आपने अंग्रेजी के जिन पत्रकार की चर्चा की है। वह मेरे बास हैं। चूंकि अभी तक अंग्रेजी अखबार में थे, इसलिए अंग्रेजी में लिखते थे। उन्होंने अब हिंदी में लिखना शुरू किया है। और गजब का लिखते हैं। ऐसा इसिलए कि अंग्रेजी के शीर्ष पत्रकारों में होने के बावजूद उन्होंने हिंदी से नाता नहीं तोड़ा। अपनी जड़ों से जुड़े रहे। हिंदी साहित्य का पठन-पाठन करते रहे। अभी उनकी उम्र बमुशिकल ३०-३५ की है। अंग्रेजी की तो बात छोड़िए हिंदी के भी उनसे ज्यादा उम्र के पत्रकार न तो हिंदी का न हिंदी साहित्य की इतनी जानकारी रखते हैं और न इतनी उत्कृष्ट हिंदी लिख सकते हैं।जगदीश त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/08107791926096635566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-82971126093665134402009-07-10T18:15:48.346-07:002009-07-10T18:15:48.346-07:00hindi to hindustan ke mathe ki bindi hai.narayan n...hindi to hindustan ke mathe ki bindi hai.narayan narayanगोविंद गोयल, श्रीगंगानगर https://www.blogger.com/profile/04254827710630281167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-25937816427480441312009-07-10T12:12:24.891-07:002009-07-10T12:12:24.891-07:00ब्लॉग जगत में हिंदी और देवनागरी लिपि अपने कंप्यूटर...ब्लॉग जगत में हिंदी और देवनागरी लिपि अपने कंप्यूटर पर साक्षात् देखकर जो ख़ुशी होती है, जो सुख मिलता है, जो गौरव प्राप्त होता है यह बताना असंभव है, अंतरजाल ने हिंदी की गरिमा में चार चाँद लगाये हैं, लोग लिख रहे हैं और दिल खोल कर लिख रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता है मानो भावाभिव्यक्ति का बाँध टूट गया है और यह सुधा मार्ग ढूंढ-ढूंढ कर वर्षों की हमारी साहित्य तृष्णा को आकंठ तक सराबोर कर रही है, इसमें कोई शक नहीं की यह सब कुछ बहत जल्दी और बहुत ज्यादा हो रहा है, और क्यों न हो अवसर ही अब मिला है, <br />इन सबके होते हुए भी हिंदी का भविष्य बहुत उज्जवल नहीं दिखता है, विशेष कर आनेवाली पीढी हिंदी को सुरक्षित रखने में क्या योगदान देगी यह कहना कठीन है और इस दुर्भाग्य की जिम्मेवारी तो हमारी पीढी के ही कन्धों पर है, पश्चिम का ग्लैमर इतना सर चढ़ कर बोलता है की सभी उसी धुन में नाच रहे हैं, आज से ५०-१०० सालों के बाद 'संस्कृति' सिर्फ किताबों (digital format) में ही मिलेगी मेरा यही सोचना है, जिस तरह गंगा के ह्रास में हमारी पीढी और हमसे पहले की पीढियों ने जम कर योगदान किया उसी तरह भारतीय संस्कृति को गातालखाता, में सबसे ज्यादा हमारी पीढी ने धकेला है, हमारे बच्चे तो फिर भी हिंदी फिल्में देख-देख कर कुछ सीख ले रहे हैं लेकिन उनके बच्चे क्या करेंगे? <br />लगता है एक समय ऐसा भी आने वाला है जब सिर्फ एक भाषा और एक संस्कृति रह जायेगी, जिसमें 'संस्कृति' होगी ही नहीं, <br />अच्छी बात यह है की इस समय कमसे कम लोग लिख रहे हैं, वर्ना हम जैसे लोग, जो विज्ञानं के छात्र थे कहाँ मिलता था हमें हिंदी लिखने को, एक पेपर पढ़ा था हमने हिंदी का MIL(माडर्न इंडियन लैंग्वेज), न तो B.Sc में हिंदी थी न M.Sc. में, हिंदी लिखने का मौका तो अब मिला है, युवावों को भी हिंदी में लिखते देखती हूँ तो बहुत ख़ुशी होती है, लगता है की भावी कर्णधारों ने अपने कंधे आगे किये हैं, हिंदी को सहारा देने के लिए, जो बच्चे विदेशों में हैं उनसे हिंदी की प्रगति में योगदान की अपेक्षा करना ठीक नहीं होगा, <br />हिंदी की सबसे बड़ी समस्या है उसकी उपयोगिता, आज हिंदी का उपयोग कहाँ हो रहा है, शायद 'बॉलीवुड' के अलावा और कहीं नहीं, 'बॉलीवुड' ने भी अब हाथ खड़े करने शुरू कर दिए है, संगीत, situation सभी कुछ पाश्चात्य सभ्यता को आत्मसात करता हुआ दिखाई देता है, अब सोचने वाली बात यह है की 'बॉलीवुड' समाज को उनका चेहरा दिखा रहा है या की लोग फिल्में देख कर अपना चेहरा बदल रहे हैं, वजह चाहे कुछ भी हो सब कुछ बदल रहा है, और बदल रही है हिंदी, सरकारी दफ्तरों में भी सिर्फ अंग्रेजी का ही उपयोग होता है, मल्टी नेशनल्स में तो अंग्रेजी का ही आधिपत्य है, बाकि रही-सही कसर पूरी कर दी इन 'कॉल सेंटर्स' ने, अब जो बंदा दिन या रात के ८ घंटे अंग्रेजी बोलेगा तो अंग्रेजी समां गयी न उनसके अन्दर तक, इस लिए हिंदी का भविष्य अन्धकारमय ही दिखता है, भारत में मेरे घर जो बर्तन मांजने आती है उसके बच्चे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ते हैं, और क्यों न पढ़े ? तो हिंदी पढने वाला है कौन, और पढ़ कर होगा क्या, सरकार के पास ऐसी योजना होनी चाहिए जिससे हिंदी पढने वालों को कुछ प्रोत्साहन मिले, आर्थिक एवं सामाजिक तभी बात नहीं बनेगी...<br />उनको अपना भविष्य उज्जवल नज़र आना चाहिए, तिमिरता में लिप्त भविष्य कौन चाहेगा भला....स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-15533511353619832982009-07-10T10:59:11.468-07:002009-07-10T10:59:11.468-07:00बात हर किसी की मातृभाषा को बचाए रखने की है...
जैसे...बात हर किसी की मातृभाषा को बचाए रखने की है...<br />जैसे हमारी हिंदी...<br /><br />पर प्रभुत्व उसी भाषा का होता है, जिसमें की राज्य कामकाज करता है, जो कि रोजगार की भाषा है...<br /><br />हिंदी या कोई भी भाषा जब तक इनमें जरूरी नहीं होगी, कोई खास मतलब नहीं...<br /><br />इक्का-दुक्का लोग यूं ही झंडाबरदार बने रहेंगे...<br /><br />शुभकामनाएं...रवि कुमार, रावतभाटाhttp://ravikumarswarnkar.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-69834449025826508572009-07-10T08:14:28.709-07:002009-07-10T08:14:28.709-07:00आपकी चिन्ता अपनी जगह जायज है। लेकिन मेरा मानना है ...आपकी चिन्ता अपनी जगह जायज है। लेकिन मेरा मानना है कि हिन्दी में जिस प्रकार अन्य भाषा के प्रति स्वीकार्यता और ग्राह्यता बढ़ी है, इससे हिन्दी का निरन्तर विकास ही होगा।<br /><br />सादर <br />श्यामल सुमन <br />09955373288 <br />www.manoramsuman.blogspot.com<br />shyamalsuman@gmail.comश्यामल सुमनhttps://www.blogger.com/profile/15174931983584019082noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-43105111243454717842009-07-10T07:41:09.377-07:002009-07-10T07:41:09.377-07:00जो बात आपके जहन में आई है ... वो मैं बहुत सालों से...जो बात आपके जहन में आई है ... वो मैं बहुत सालों से सोचता रहा हूँ ! <br />राष्ट्र्री स्तर पर हिंदी पत्रिकाओं का अभाव बेहद खलता है ! ले-देकर सिर्फ कादम्बिनी ही बची है जो हिंदी का परचम उठाये हुए है ! <br /><br />वैसे मैं सर्वोत्तम रीडर्स डाईजेस्ट का नियमित पाठक रहा हूँ ! पता नहीं ये पत्रिका अब हिंदी में क्यों नहीं आती ? <br /><br /><b><a href="http://aajkiaawaaz.blogspot.com" rel="nofollow"> आज की आवाज </a></b>प्रकाश गोविंदhttps://www.blogger.com/profile/15747919479775057929noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-66648981632216715392009-07-10T00:29:42.780-07:002009-07-10T00:29:42.780-07:00आपने सही मुद्दा उठाया है. इस बारे में सभी को विचार...आपने सही मुद्दा उठाया है. इस बारे में सभी को विचार करना होगा.Sushma Sharmahttps://www.blogger.com/profile/16417973848956082693noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4406012885557107227.post-3436292229459627862009-07-10T00:25:35.467-07:002009-07-10T00:25:35.467-07:00सहमत. अच्छी पोस्ट.सहमत. अच्छी पोस्ट.Atmaram Sharmahttps://www.blogger.com/profile/11944064525865661094noreply@blogger.com